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बुधवार, मार्च 23

अक्सर सबको अपनी समस्या दूसरे से बड़ी लगती है |

अक्सर सबको अपनी समस्या दूसरे से बड़ी लगती है |


सिख पंथ के प्रथम गुरु श्री नानक जी ने कहा था,"नानक दुखिया सब संसार", यह विश्व भिन्न,भिन्न प्रकार के दुखों से भरा पड़ा है,और इस संसार मैं, सदा सत्य तथ्य ,मृत्यु,असाध्य रोग,और जरा,को छोड़ कर, लोगों के दुखों के अनेकों कारण हैं,परन्तु किसी को अपना दुःख दुसरे से बड़ा लगता है |
और इस संसार मैं,अनेकों महान,व्यक्तिव का अभिर्भाव हुआ था,हुआ है,और होता रहेगा,जो अपने कष्टों को भूल कर,प्राणियों का दुख दूर करतें रहें हैं,यह ऐसी महान आत्माएं हैं,जो वास्तव मैं जन्म,मरण के बन्धनों से मुक्त हो चुकीं हैं,यह लोग अपनी इच्छा से,औरों के कष्टों को दूर करने उनके आसूँ पोछने के लिए इस संसार मैं,आतें हैं,और अपनी इच्छा से अपना शारीर छोड़ देतें हैं |
सबसे पहले मैं, गौतम बुद्ध का नाम लेता हूँ,राजा शुद्धोदन के याहं इनका जन्म हुआ,और राजकुमार थे,राजा शुद्धोदन ने,ऐसा प्रबंध कर दिया,कि गौतम बुद्ध को,सांसारिक,सत्य तथ्य,रोग,वृधावस्था और मृत के दर्शन ना हों, परन्तु होनी तो बलवान है ही है, और एक दिन गौतम बुद्ध रथ पर बैठ कर जा रहे थे,तो इन्होने किसी मृत व्यक्ति को देखा,सारथी से पुछा तो उसने अन्यम्स्क सा उत्तर दिया,कि यह मृत्यु है,इसी प्रकार शने:,शने गौतम बुध को वृधावस्था,रोगी के दर्शन हुए तो,लग गए इन तथ्यों के अन्वेषण मैं,और आखिरकार इनको एक दीव्य प्रकाश दिखाई दिया,और एक मन मैं,सत्य,अहिंसा,प्रेम के बीज उत्पन्न हुए,और इन्होने संसार को यही सन्देश दिया |
प्रेम जो कि दीव्य प्रेम होता है,मन्युश को किसी वस्तु की इच्छा नहीं होती,कोई अपेक्षा नहीं होती, एक बार गौतम बुध अपने शिष्यों के साथ,एक वृक्ष के नीचे बैठे हुए थे,इनके मुख मंडल पर दीव्य तेज था,एक स्त्री इनके तेज से आकर्षित होकर आई और इनको यह 'प्रियतम,प्रियतम",कह कर उनके मुख को चूमने लगी,और उसने कहा "आप मुझे क्यों नहीं छु रहे",तो गौतम बुध ने कहा मैं तुम्हे अवश्य छूऊंगा,जब तुम्हे आवश्यकता होगी,समय बीतता गया और,एक दिन गौतम बुध अपने शिष्यों के साथ बैठे थे, अचानक चिल्लाने लगे "मेरी प्रियतमा मुझे बुला रही है",और उठ कर चल पड़े एक वृक्ष के नीचे रोग के कारण उस सुंदर स्त्री का स्वरुप कुरूप हो चूका था,तब गौतम बुध ने कहा,प्रिये मैं आ गया और उस स्त्री को छुआ और उसका उपचार किया",यह था दीव्य प्रेम |
कहते हैं,"पूत के पैर पलने मैं दिख जातें हैं",अहिंसा तो बचपन से ही,इनके मन मैं थीं,एक बार इनके बड़े भाई ने एक हंस को वाण मार के घायल कर दिया',और गौतम बुध ने जब उसको देखा तो उसका उपचार किया,बाद मैं दोनों भईयों मैं,इस झगडे ने जन्म ले लिया है,बड़ा भाई कहने लगा यह मेरा है,मैंने इसे मारा है,गौतम बुध कहने लगे यह मेरा है,मैंने इसका उपचार किया है,आखिर फैसला राजा के पास गया,तो निर्णय यह हुआ जिसके पास हंस जायेगा,हंस उसका होगा,तब हंस गौतम बुध की गोद मैं जा कर बैठ गया,ऐसा था इनका पशु,पक्षी और मानव से प्रेम का सन्देश |
अक्सर इन महान पुरषों,स्त्रियों की आयु अधिक नहीं होती,यह तो निस्वार्थ मानव को प्रभु का रूप मान कर उनकी सेवा प्रभु की सेवा करतें हैं,और अपना काम समाप्त करके चले जातें हैं |
 यही सन्देश था स्वामी विवेकाननद जी का,उनका कहना था,"अपने आस पास देखो,जिसको भी किसी भी चीज की आवश्यकता है,उसको पूरा करो,यही परमेश्वर की सबसे बड़ी आराधना है,"मानव की सेवा ही प्रभु सेवा है",यह सन्देश था स्वामी विवेकाननद जी का |
 दुःख या कष्ट के,प्रमुख कारण होतें हैं |


अलग,अलग समाज,अलग,अलग परिवेश,अलग,अलग आयु के हिसाब से,शारीरिक,मानसिक,भावनात्मक और आत्मिक दुःख,अलग,अलग प्रकार के होतें हैं,और हर कोई,दुसरे का कष्ट अपनी सोच,और निगाह,तथा,अलग,अलग,समाज,अलग,अलग,परिवेश,अलग,अलग आयु के हिसाब से देखने और समझने तथा सोचने वालों के हिसाब से सब को अपना,अपना कष्ट दुसरे से बड़ा लगता है,जब तक दुसरे की संवेदना मन्युष्य अपने हिर्दय मैं नहीं,अनुभव करेंगे तो अपना दुःख दुसरे से बड़ा लगेगा,मैंने कभी एक लेख लिखा था,अपना आत्मविश्लेषण कैसे करें,उसका स्वयम ही उत्तर दे रहा हूँ,दुसरे पर आपके व्यक्तिव का क्या प्रभाव पड़ता है,वोह हैं स्वयम का आत्मविश्लेषण,और उसके अनुसार अपने बारें मैं सोच कर अपनी कमियां दूर करें,तो होगा आपके व्यक्तिव का विकास |
यहाँ पर श्री राजीव कुमार कुल्श्रेसठ जी का धन्यवाद् भी दूंगा,मैं तो भाई ५८ वर्ष को हो चूका हूँ,उन्होंने मेरे दोनों ब्लॉग "www.vinay-mereblogspot.com", और "www.snehparivar.blogspot.com",को चमकाया,मुझे तो इस प्रकार ब्लॉग को चमकाना तो आता नहीं हैं,हमारा जमाना ७० के दशक का था,जिसको अब रेट्रो,रेट्रो कहतें हैं,क्यों कहते हैं,मुझे तो नहीं,मालूम क्यों कहतें हैं,अगर किसी को मालूम हो तो मुझे अवगत बताइयेगा, राजीव जी की निस्वार्थ सेवा का आभारी हूँ |
जो मेरे इस ब्लॉग के आरम्भ मैं लिखा है,वोही मेरा सन्देश है |
अगले भाग मैं, चर्चा करेंगे दुःख या कष्टों के क्या,क्या कारण होतें हैं, सबसे प्रमुख कारण तो किसी से अपेक्षा करना होता है |
और इस कष्ट या दुःख को किसी के मनोभावों को,दिमाग से नहीं,दिल से अनुभव करकें,उस व्यक्ति को जिस तरह से भी आपको उपुयक्त लगता है,उसको स्नेह दें,तो उसका कष्ट कुछ हल्का हो सकता है,आपको लग सकता है,यह तो बिना कारण के परेशान आपकी समझ से,परन्तु उसको अपना कष्ट गमभीर लग सकता है,इसीलिए ही कहता हूँ,दिल से अनुभव करके |
और सबसे बड़ी मूक भाषा प्रेम की है,जो पशु,पक्षी तक समझते हैं |
पशु,पक्षिओं का तो इतना ही स्वार्थ होता है,आप उनको खाने को देतें हैं,तो वोह बदले मैं,आपको प्रेम ही देता है,और यह प्रेम की मूक भाषा बनी रहती हैं |



क्रमश:











4 टिप्‍पणियां:

रमेश कुमार जैन उर्फ़ निर्भीक ने कहा…

श्रीमान जी, मैंने अपने अनुभवों के आधार ""आज सभी हिंदी ब्लॉगर भाई यह शपथ लें"" हिंदी लिपि पर एक पोस्ट लिखी है. मुझे उम्मीद आप अपने सभी दोस्तों के साथ मेरे ब्लॉग www.rksirfiraa.blogspot.com पर टिप्पणी करने एक बार जरुर आयेंगे. ऐसा मेरा विश्वास है.

रमेश कुमार जैन उर्फ़ निर्भीक ने कहा…

मेरा बिना पानी पिए आज का उपवास है आप भी जाने क्यों मैंने यह व्रत किया है.

दिल्ली पुलिस का कोई खाकी वर्दी वाला मेरे मृतक शरीर को न छूने की कोशिश भी न करें. मैं नहीं मानता कि-तुम मेरे मृतक शरीर को छूने के भी लायक हो.आप भी उपरोक्त पत्र पढ़कर जाने की क्यों नहीं हैं पुलिस के अधिकारी मेरे मृतक शरीर को छूने के लायक?

मैं आपसे पत्र के माध्यम से वादा करता हूँ की अगर न्याय प्रक्रिया मेरा साथ देती है तब कम से कम 551लाख रूपये का राजस्व का सरकार को फायदा करवा सकता हूँ. मुझे किसी प्रकार का कोई ईनाम भी नहीं चाहिए.ऐसा ही एक पत्र दिल्ली के उच्च न्यायालय में लिखकर भेजा है. ज्यादा पढ़ने के लिए किल्क करके पढ़ें. मैं खाली हाथ आया और खाली हाथ लौट जाऊँगा.

मैंने अपनी पत्नी व उसके परिजनों के साथ ही दिल्ली पुलिस और न्याय व्यवस्था के अत्याचारों के विरोध में 20 मई 2011 से अन्न का त्याग किया हुआ है और 20 जून 2011 से केवल जल पीकर 28 जुलाई तक जैन धर्म की तपस्या करूँगा.जिसके कारण मोबाईल और लैंडलाइन फोन भी बंद रहेंगे. 23 जून से मौन व्रत भी शुरू होगा. आप दुआ करें कि-मेरी तपस्या पूरी हो

KAVITA ने कहा…

bahut hi badiya prastuti...
AApko janamdin kee bahut bahut haardik shubhkamnayen!

Vinashaay sharma ने कहा…

धन्यवाद कविता जी ।

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अभी तो एक प्रश्न चिन्ह ही छोड़ा है ? (1) आत्मा अंश जीव अविनाशी (1) इन्ही त्योहारों के सामान सब मिल जुल कर रहें (1) इश्वर से इस वर्ष की प्रार्थना (1) इसके उज्जवल भविष्य की कामना करता हूँ | (1) उस अविनाशी ईश्वर का स्वरुप है | (1) एक आशियाना जिन्दगी का (1) कब बदलोगे अपनी सोच समाज के लोगों ? (1) कहाँ गया विश्व बंधुत्व और सदभावना? (1) कहीं इस कन्या का विवाहित जीवन अंधकार मय ना हो | (1) किसी का अन्तकरण भी बदला जा सकता है (1) किसी की बात सुन कर उसको भावनात्मक सुख दिया जा सकता है | (1) कैसे होगा इस समस्या का समाधान? (1) चाहता हूँ इसके बाद वोह स्वस्थ रहे और ऑपेरशन की अवयाक्ष्ता ना पड़े | (1) जय गुरु देव की (1) जीत लो किसी का भी हिर्दय स्नेह और अपनेपन (1) डाक्टर साहब का समर्पण (1) पड़ोसियों ने साथ दिया (1) बच्चो में किसी प्रकार का फोविया ना होने दें (1) बस अंत मे यही कहूँगा परहित सम सुख नहीं | (1) बुरा ना मानो होली है | (1) मानवता को समर्पित एक लेख (1) मित्रों प्रेम कोई वासना नहीं है (1) में तो यही कहता हूँ (1) यह एक उपासना है । (1) राधे (2) राधे | (2) वाह प्रभु तेरी विचत्र लीला (1) वोह ना जाने कहाँ गयी (1) शमादान भी एक प्रकार का दान है | (1) सब का नववर्ष सब प्रकार की खुशियाँ देने वाला हो | (1) समांहुयिक प्रार्थना मैं बहुत बल है | (1)