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बुधवार, जनवरी 4

प्रभु इस वर्ष सब के दुःख,दर्द पहचानने की और उनके दुःख दर्द दूर करने की क्षमता दो



प्रभु इस वर्ष सब के दुःख,दर्द पहचानने की और उनके दुःख दर्द दूर करने की क्षमता दो 


आज बहुत दिनों के बाद,कुछ समय मिला तो सोचा,गूगल टोक पर अपने परिचितों से,कुछ बात चीत कर लूं,है तो,दो लोग इस प्रकार के मिलें,जिनको कोई,ना कोई दुख था,एक ने तो स्पष्ट बताया,और एक ने बात करते,करतेकुछ कहा,और जब मेने कारण पूछने की चेष्टा करी तो,कुछ न  कह कर गूगल टोक से साईंन आउट कर लिया,संभवत: बहुत अधिक दुख था,नाम तो मे नहीं लिखूंगा,उसको दो तीन बार फ़ोन करने का प्रयत्न किया तो उसने फ़ोन नहीं उठाया,संभवत: वेदना अत्यधिक होगी,और जब वेदना अत्यधिक होती है,तब इंसान अपने पर काबू नहीं रख पाता,यही कभी ऐसे अवसाद का रूप ले लेता है, इंसान को कुछ अच्छा नहीं लगता,कुछ करने को मन नहीं करता,लाख उसको समझाने का प्रयत्न कर लो,पर अवसाद इतना तीव्र होता है,जो उसको मरनासन सा कर देता है,और वोह इस अवस्था से बहुत ही कठनाई से निकल पाता है,आस पास के लोग,उसके मित्र,उसके सगे सम्बन्धी उस की इस दशा को नहीं समझ पाते,वास्तव में सब अपने समझ के हिसाब से उसको देखते हैं,या उसकी बातें सुनते हैं,अपनी,अपनी समझ के अनुसार,शारीर पर लगी चोट और शारीरिक बीमारियाँ तो सब को दिखाई देतीं है,पर हिर्दय पर हुआ आघात,जो मानसिक दशा को उद्देलित कर देता है,वोह किसी को नहीं दिखाई देता है,और बहुत बार तो इंसान अपना मानसिक संतुलन खो बैठता है,प्रभु,इश्वर,परमपिता परमेश्वर ,गोड,जिसेउस,अल्लाह,मुझे ऐसी शक्ति दो में उन लोगों की मानसिक दशा को अनुभव कर सकूँ,और फिर उनकी व्यथा दूर कर सकूँ,चाहयें वोह पास हो या दूर हो |
शारीरिक दशा के बारें में भी यह कहा जाता है,"जाकी ना फटे विवाई सो क्या जाने पीर पराई",में तो परमपिता परमेश्वर में तो आपसे मांगता हूँ,उनकी पीर का मुझे वैसा ही अनुभव हो चाहयें मानसिक हो या शारीरक ,जैसा वोह कर रहें हैं,और उन व्यथाओं को अनुभव करके दूर कर सकूं |
इस प्रकार की शारीरिक और मानसिक व्यथाओं को नहीं अनुभव कर पाता हूँ,तो बहधा स्वार्थी हो जाता हूँ,केवल अपने बारें में सोचता हूँ,तो है परमेश्वर में उन तकलीफों को अनुभवों कर सकूं,और उनको दूर कर सकूं |
 इस नववर्ष में मैंने,अपनी कोलोनी में,कुछ लोगों को असाध्य विमारियों से ग्रसित देखा,है सर्वशक्तिमान मुझे उनकी विमारियों को अनुभव करने और उनको दूर करने की शक्ति दो |
 जब कोई कुछ कहता है,या उसके हाव भाव से ऐसा लगता है,उसको कोई तकलीफ है,तो मुझको वैसा ही अनुभव हो जैसा उसको हो,तभी तो है इश्वर उसकी व्यथा दूर कर सकूंगा |
 इस वर्ष इश्वर से मेरी यही प्रार्थना है |
अंत मे,गुरु जी परमहंस की इन पंक्तियों के साथ इस लेख का समापन करता हूँ |

"प्रभु मुझे अज्ञान से ज्ञान की और
  अशांति से शांति की और
 इच्छाओं से संतुष्टि की और ले चलो





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लेबल

अभी तो एक प्रश्न चिन्ह ही छोड़ा है ? (1) आत्मा अंश जीव अविनाशी (1) इन्ही त्योहारों के सामान सब मिल जुल कर रहें (1) इश्वर से इस वर्ष की प्रार्थना (1) इसके उज्जवल भविष्य की कामना करता हूँ | (1) उस अविनाशी ईश्वर का स्वरुप है | (1) एक आशियाना जिन्दगी का (1) कब बदलोगे अपनी सोच समाज के लोगों ? (1) कहाँ गया विश्व बंधुत्व और सदभावना? (1) कहीं इस कन्या का विवाहित जीवन अंधकार मय ना हो | (1) किसी का अन्तकरण भी बदला जा सकता है (1) किसी की बात सुन कर उसको भावनात्मक सुख दिया जा सकता है | (1) कैसे होगा इस समस्या का समाधान? (1) चाहता हूँ इसके बाद वोह स्वस्थ रहे और ऑपेरशन की अवयाक्ष्ता ना पड़े | (1) जय गुरु देव की (1) जीत लो किसी का भी हिर्दय स्नेह और अपनेपन (1) डाक्टर साहब का समर्पण (1) पड़ोसियों ने साथ दिया (1) बच्चो में किसी प्रकार का फोविया ना होने दें (1) बस अंत मे यही कहूँगा परहित सम सुख नहीं | (1) बुरा ना मानो होली है | (1) मानवता को समर्पित एक लेख (1) मित्रों प्रेम कोई वासना नहीं है (1) में तो यही कहता हूँ (1) यह एक उपासना है । (1) राधे (2) राधे | (2) वाह प्रभु तेरी विचत्र लीला (1) वोह ना जाने कहाँ गयी (1) शमादान भी एक प्रकार का दान है | (1) सब का नववर्ष सब प्रकार की खुशियाँ देने वाला हो | (1) समांहुयिक प्रार्थना मैं बहुत बल है | (1)