कल रात्रि में अलका जी मेरा समस्त लिखने वालीं से चैटिंग कर रहा था, उनकी पोस्टों में देसी जड़ी बुटीओं से इलाज के बारे में वर्णन होता
है, इसके उपयोग से कितने ही रोगीओं को आराम मिला है, मेरी पत्नी की दोनों आँखों में मोतियाबिंद हो गया है,और उनके एक लेख में मैंने उनसे मोतियाबिंद के इलाज के बारे में पूछा था,तो उन्होंने मेरी शतकीय पोस्ट पर टिप्पणी दी है,जिसमें मोतियाबिंद का इलाज लिखा है, मैंने उनसे आज दूरभाष पर बात करके पूछा था,तब उन्होंने बताया आप की शतकीय पोस्ट पर उसका इलाज लिखा है,जो कि बहुत ही सरल चिकत्सा है,इस चिकत्सा का और रोगी लाभ उठा सकतें है, क्या यह ख़ुशी देना ईश्वरीय सेवा से कम है?
दूसरा नाम लेता हूँ, सबके हितेषी पाबला जी का, उन्होंने हम सब ब्लोगरो के जन्म दिन और वैवाहिक वर्षगांठ का लेखा जोखा रखा हुआ है,
यह औरो को ख़ुशी देने का काम क्या किसी आराधना से कम है क्या? यारो के यार पावला जी बहुत अच्छा तकनिकी ज्ञान रखते हैं, कुछ समय पहले मेरे इसी www.snehparivar.com ब्लॉग में,एक कठिनाई आ गयी थी,में जो भी इस ब्लॉग में लेख लिखता उसका परतिरूप भी बन जाता था, मतलब उस पोस्ट का इसी ब्लॉग में लिंक बन जाता था, और मैंने अपने इसी ब्लॉग में लिखा था,कोई मेरी सहायता कर सकता है,पावला जी कि संभवत: उसी पोस्ट पर पड़ी और उन्होंने मेरी वोह समस्या दूर कर दी,दूसरी समस्या यह है,कि में अपनी पोस्ट का लिंक किसी और को नहीं दे पाता हूँ उसको भी पावला जी ने चेक तो किया था,और वोह वोले लिंक तो बन रहा है, यही तो छोटी,छोटी खुशियाँ है |
तीसरा नाम लेता हूँ शमा जी का, उन्होंने एक बार अपनी टिप्पणी में लिखा था, में संस्मरण में आपके लिए लिखतीं हूँ,क्योंकि आप पड़ते हैं, इस प्रकार अपनत्व की भावना उत्पन्न होती है, वोह तो बहुत सी कला की धनी है, परन्तु इस प्रकार किसी को ख़ुशी देना क्या किसी से कम है क्या?
अब लेता हूँ नाम समीर लाला जी यानि की उड़न तश्तरी जी का वोह तो, सभी लिखने वालों को टिप्पणी दे कर लिखने का प्रोत्साहन देते हैं, यह इंसान की सच्ची सेवा नहीं तो और क्या है?
अगर किसी को ज्योतिष के बारे में रुचि हैं तो संगीता जी और पंडित डी.के वत्स जी तो इसमें अग्रणी हैं, और पंडित जी को तो हमारे आदिग्रंथो का अच्छा ज्ञान है,और वोह हम सबको इस ज्ञान से अवगत करते हैं |
आशीष खंडेलवाल हम लोगों को नयी,नयी तकनिकी जानकारी देते हैं,क्या यह किसी सेवा से कम है?
यह लोग तो विवेकानंद जी के इस कथन का सच्चा मान नहीं रख रहें तो क्या है?
यह तो रहा उन ब्लोग्गोरो के बारें में जिनको हम सब लोग जानते है |
हम सब लोगों के सामने,कितने ही लोग हैं,जिनको किसी ने किसी साहरे की आवयश्कता है, आपकी काम वाली,बच्चों को स्कूल ले जाने वाला रिक्शा वाला,बस ड्राईवर या ऑटो चालक बहुत से ऐसे लोग होंगे आप के आसपास जिनको आप लाभ दे सकतें हैं |
हमारे घर के सामने थोड़ी सी चढाई है, कल मैंने देखा एक आइसक्रीम का ठेले वाला उस चढाई पर जा रहा था और एक हमारे जान पहचान का रिक्शा वाला उसको उस चढाई को पार कराने के लिए स्वयं भी उसके ठेले को धक्का दे रहा था |
अगर इंसान की सेवा करनी है,तो बड़ी,बड़ी संस्थओ से जुड़ना या लाखों करोडो का चंदा देने की सोचने की आवश्यकता ही नहीं है, आपके आस पास आपके जाने पहचाने बहुत से लोग मिल जायेंगे जिनको कुछ,कुछ ना आवश्यकता है, और ऐसे भी लोग मिल जायंगे जिनको किसी ना किसी प्रकार की मदद की वास्तव में ही आवश्यकता है,जैसे मैंने एक रिक्शा वाले और आइसक्रीम वाले का उदहारण दिया है |
बस अंत मे यही कहूँगा परहित सम सुख नहीं |
तीसरा नाम लेता हूँ शमा जी का, उन्होंने एक बार अपनी टिप्पणी में लिखा था, में संस्मरण में आपके लिए लिखतीं हूँ,क्योंकि आप पड़ते हैं, इस प्रकार अपनत्व की भावना उत्पन्न होती है, वोह तो बहुत सी कला की धनी है, परन्तु इस प्रकार किसी को ख़ुशी देना क्या किसी से कम है क्या?
अब लेता हूँ नाम समीर लाला जी यानि की उड़न तश्तरी जी का वोह तो, सभी लिखने वालों को टिप्पणी दे कर लिखने का प्रोत्साहन देते हैं, यह इंसान की सच्ची सेवा नहीं तो और क्या है?
अगर किसी को ज्योतिष के बारे में रुचि हैं तो संगीता जी और पंडित डी.के वत्स जी तो इसमें अग्रणी हैं, और पंडित जी को तो हमारे आदिग्रंथो का अच्छा ज्ञान है,और वोह हम सबको इस ज्ञान से अवगत करते हैं |
आशीष खंडेलवाल हम लोगों को नयी,नयी तकनिकी जानकारी देते हैं,क्या यह किसी सेवा से कम है?
यह लोग तो विवेकानंद जी के इस कथन का सच्चा मान नहीं रख रहें तो क्या है?
यह तो रहा उन ब्लोग्गोरो के बारें में जिनको हम सब लोग जानते है |
हम सब लोगों के सामने,कितने ही लोग हैं,जिनको किसी ने किसी साहरे की आवयश्कता है, आपकी काम वाली,बच्चों को स्कूल ले जाने वाला रिक्शा वाला,बस ड्राईवर या ऑटो चालक बहुत से ऐसे लोग होंगे आप के आसपास जिनको आप लाभ दे सकतें हैं |
हमारे घर के सामने थोड़ी सी चढाई है, कल मैंने देखा एक आइसक्रीम का ठेले वाला उस चढाई पर जा रहा था और एक हमारे जान पहचान का रिक्शा वाला उसको उस चढाई को पार कराने के लिए स्वयं भी उसके ठेले को धक्का दे रहा था |
अगर इंसान की सेवा करनी है,तो बड़ी,बड़ी संस्थओ से जुड़ना या लाखों करोडो का चंदा देने की सोचने की आवश्यकता ही नहीं है, आपके आस पास आपके जाने पहचाने बहुत से लोग मिल जायेंगे जिनको कुछ,कुछ ना आवश्यकता है, और ऐसे भी लोग मिल जायंगे जिनको किसी ना किसी प्रकार की मदद की वास्तव में ही आवश्यकता है,जैसे मैंने एक रिक्शा वाले और आइसक्रीम वाले का उदहारण दिया है |
बस अंत मे यही कहूँगा परहित सम सुख नहीं |