इस लेख का प्रारम्भ तुलसीदास जी के रामायण ग्रन्थ की इन पंक्तियों से आरंभ कर रहा हूँ, " उपदेश कुशल बहुतेरे", किसी के अन्तकरण पर अगर प्रभाव डालना है,तो केवल उपदेश देने से कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता है, इस सन्दर्भ में मुझे किसी के द्वारा रचित एक कहानी याद आ रही है |
इस सन्दर्भ में एक किसी के द्वारा लिखी हुई एक कहानी मेरे मानस पटल पर उभर रही है,एक कलाकार ने एक चित्र बनाया और रात्रि में एक स्थान पर टांग दिया,जहाँ से आते जाते राहगीरों की दृष्टि सहज ही उस स्थान पर पड़े जहाँ पर चित्र टंगा हुआ था,और उस कलाकार ने उस चित्र के नीचे लिख दिया, "जिस किसी को इस चित्र में जिस स्थान पर त्रुटी दिखाई दे,उस स्थान पर निशान लगा दे",अगले दिन सुबह जब उस चित्रकार ने अपने बनाये हुए चित्र को देखा तो,उसको चित्र तो किसी भी कोण से दृष्टिगोचर नहीं हुआ,बस विभिन्न प्रकार के निशान ही उसको चित्र के स्थान दिखाई दिए |
उस चित्रकार ने पुन: हुबहू वोही चित्र बनाया और रात्रि में पुन: वोह चित्र उसी स्थान पर टांग दिया,और इस बार उसने अपने बनाये हुए चित्र के नीचे बदला हुआ वाक्य लिख दिया, " जिस किसी को भी इस चित्र में, जिस स्थान पर त्रुटी दृष्टिगोचर हो वहां ठीक कर दे", रात्रि के बाद पुन:प्रात:काल में जब उस चित्रकार ने उस चित्र को देखा,तो उसको चित्र बिना किसी संशोधन के वैसा ही मिला जैसा उसने बनाया था |
यह कहानी तुलसीदास जी के द्वारा रामायण में लिखी हुई, उन पंक्तियों को चरितार्थ करती है," उपदेश कुशल बहुतेरे" |
कहने का तात्पर्य है,अगर किसी का अन्तकरण बदलना है,तो केवल उपदेश से काम नहीं बनता, सब इंसानों चाहे स्त्री हो पुरुष,बालक हो या बालिका या युवक हो या युवती सब का सोचने का तरीका पृथक,पृथक होता है, किसी के द्वारा कही हुई बात को कौन किस प्रकार से लेता है,उसकी कोई निशचिता नहीं होती, कौन कही हुई बात को उस प्रकार आत्मसात करता है,जैसे कही हुई बात कहने वाले के मानसपटल पर उभरी है उसके बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता, और कोई कहने वाले के मानसपटल पर उभरी हुई बात को,उसी प्रकार नहीं ग्रहण करता है,जिस प्रकार किसी ने कही है,तो विवाद उत्पन्न हो सकता है,वैमनस्य भी पैदा हो सकती है,झगड़ा हो सकता है,कहने वाला और सुनने वाला दोनों ही आवेशित भी हो सकते हैं,आपस में बैर उत्पन्न हो सकता है, अनायास ही सम्बन्ध ख़राब हो सकते हैं, और अगर सुनने वाला उसी प्रकार से कही हुई बात को ग्रहण करता है,तो ऊपर लिखे हुए उदहारणो के विपरीत भी हो सकता है,सदभावना उत्पन्न हो सकती है, आपसी प्रेम बड़ सकता है,रिश्ते प्रगाड़ हो सकते है,अमिट अच्छे सम्बन्ध बन सकते है,कहने वाले का सुनने वाले पर किस प्रकार का प्रभाव पड़ेगा कुछ कहा नहीं जा सकता |
किसी का व्यक्तित्व देश,काल,परिवेश और लालन,पालन और घटनाओ से बनता है,जब मानव का जन्म होता है, तो वोह कुम्हार की मिटटी की प्रकार का होता है, और कुम्हार उस मिटटी से भिन्न,भिन्न प्रकार के वर्तन निर्मित करता है,उसी प्रकार जब किसी बालक अथवा बालिका का जन्म होता है,या कोई किसी बालक या बालिका को गोद लेता है,उस समय बालक या बालिका इसी प्रकार कुम्हार की कच्ची मिटटी के समान होते हैं,और उस बच्चे या बच्ची का उसके माँ,बाप उसके व्यक्तिव का निर्माण प्रारम्भ करते हैं, जन्म लेने के बाद तो बच्चे अपनी स्वाभिक क्रियाये जैसे सब से पहले अपनी गर्दन उठाना फिर बैठना उसके पश्चात बोलना,घुटनों के बल चलना फिर लडखड़ाते हुए कदम रखना और फिर चलना प्रारंभ करते हैं, बच्चा जब बोलना आरम्भ करता है,तो जिस देश,समाज में पैदा होता है,उसी के अनुरूप भाषा बोलता है, और उसके बाद प्रारंभ होता है,उस बच्चे या बच्ची के व्यक्तिव का निर्माण जैसा उसके माँ बाप उसके व्यक्तित्व को कुम्हार की कच्ची मिटटी की भांति निर्मित करते हैं,अब उस पर |प्रभाव पड़ता है,उस बालक और बालिका के देश और समाज का प्रभाव और बच्चा उसी देश और समाज के अनुरूप ढल जाता है,और शने: शने: जब बच्चा और बड़ा होता है,तब उसके संगी साथी बनते है,और प्रभाव पड़ने लगता है,बच्चे के संगी साथी का और उसका व्यक्तिव में उसके संगी साथी की संगत का प्रभाव पड़ने लगता है,इसी लिए कहा जाता है,"संगत का प्रभाव तो पड़ता ही है "|
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अति सुंदर लेख, आप से सहमत है जी, धन्यवाद
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