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गुरुवार, नवंबर 17

इस बार के अंतिम के.बी.सी सीजन 4 ने आम आदमी को निश्चित ही प्रोत्सहित किया |

इस बार के अंतिम के.बी.सी सीजन 4 ने आम आदमी को निश्चित ही प्रोत्सहित किया 


जब भी कार्यों के बीच मैं, समय मिलता है,तो बहुत सी अपनी रुचियों मैं दूरदर्शन देखना भी मेरी एक रुचि है,
ऐसा कुछ विशेष कार्यकर्म दूरदर्शन मैं देखना मेरी रुचि मैं शामिल नहीं हैं, पहले प्रज्ञा चेनल आया करता था,

जिसमें मेरी रुचि थी,लेकिन अब वोह चेनल बंद हो चूका है, अब तो रिमोट पर उंगलिय चलती रहतीं हैं,और चेनल बदलते रहते हैं, लेकिन जब मैंने के.बी.की का इस सीजेन का अंतिम चेनल,संभवत:4 पर तो मेरी रिमोट पर उंगलिया स्थिर सी हो गयीं,एक तो अमिताभ बच्चन जी,जिनकी गरिमामय हिंदी,और उनके हाव,भाव मेरे मन को छूतें हैं,और दूसरा आमआदमी का हॉट सीट पर होना,अमिताभ बच्चन जी का उनको प्रोत्साहित करना,और आम आदमी के सपने पूरे होते हुए,सचमुच मन को भा गए |
पाठक गण मुझे क्षमा करें,क्योंकि अधिक्तारों के में नाम नहीं जानता,केवल पाँच करोड़ जितने वाले सुशील कुमारके,जो कि आम इन्सान की श्रेणी में ही आतें हैं,जब सुशील कुमार का नाम यहाँ लिखा है,तो उन्ही से प्रारंभ करताहूँ,एक साधारण से कम्प्यूटर ओपरेटर,उनका सपना,उन बच्चों को शिक्षित करना,जिनमे प्रतिभा तो है,
पर धन की कमी के कारण उनकी प्रतिभा मुखरित नहीं हो पाती हैं,ऐसे बच्चों की परतिभा को मुखरित करना |
 एक और ऐसे इंसान का वर्णन करूंगा,जिनमे प्रतिभा तो थी,परन्तु उनकी हकलाहट ने तो जैसे उनकी प्रतिभा
को ग्रहण लगा दिया था,जो लिखित परीक्षा में तो वोह उत्तीर्ण हो जाते थे,परन्तु मौखिक परीक्षा में असफल,और उनोहने एक अच्छी राशी के.बी.सी में पचास लाख,जीत कर समाज के उन लोगों को आइना दिखा दिया,कि उनमे सामान्य ज्ञान की कोई कमी नहीं है,बस एक हकलाहट के कारण उनको असफल घोषित कर दिया जाता रहा ,उनलोगों को इनोहने दिया करारा उत्तर,अब तो बदल जाओ समाज के ऐसे लोग |
 उनकी इस सफलता पर उनके,बरबस निकले अश्रुओं ने मेरे मन पर ऐसा,प्रभाव छोड़ा,कि बार,बार
उनके गालों पर टपकते आंसू,और उनका बार,बार अपने को हताश,निराश कहना,बार,बार मेरे सामने आता
है,(उन सज्जन से कर बध,क्षमा,चाहता हूँ,पर क्या करूं अपने को यह लिखने से रोक नहीं पाया) |
कब बदलोगे अपनी सोच समाज के वोह लोगों,जिन्होंने,उस सफल व्यक्ति को असफल घोषित कर दिया
केवल,और केवल एक हकलाहट के कारण |
मुझे तो यह दो घटनाये याद हैं,पाठकगनों,के,बी,सी चार में,और इस प्रकार की घटनाएँ,ज्ञात हों,तो आप लोगों
को सहेज अनुमति हैं,मेरे इस संक्षिप्त से आलेख में जोड़ने के लिए |








रविवार, नवंबर 6

क्या बहुराष्ट्रीय संस्थाओं मैं ऐसा ही होता है |

क्या  बहुराष्ट्रीय संस्थाओं मैं ऐसा ही होता है |
बहुत  दिनों के बाद, यह लेख लिख रहा हूँ,और इस लेख के शीर्षक के समान नहीं सोच पा रहा हूँ, यह मेरे बलोग में लिखूं या इसी स्नेह परिवार में, आज कल मेरा सम्बन्ध एक बहुराष्ट्रीय संस्थासे है,जिसमे  मैं कार्यरत हूँ, इस संस्था मैं अनुभव करता हूँ, जो मुल्य आदर्श, हमारी पुरानी पीड़ी के महान व्यक्तियों ने जैसे कि महात्मा गाँधी मुख्यत: ने दिए हैं,और आज अन्ना हजारे जो उनके अनुयाई हैं, और जो उन्होंने भ्रष्टाचार विरोध की ज्वाला प्रजुल्ल्वत की उसको बिना जाने सोचे समझे, हमारी संस्था ने एक अभियान प्रारंभ किया है,और जिसका नाम रक्खा गया है,
"i am the change",और यहाँ यह कहना अनुचित न होगा,यह केवल और केवल अपने स्वार्थ के लिए धन उपार्जन के लिए, कहाँ वोह आन्दोलन निस्वार्थ और यहाँ स्वार्थ, क्या आज का यही परिवेश हैं ?
यहाँ उदहारण देते हैं, व्यगानिकों की खोजों का, अभिनेताओं के संघर्षो का जिसमे वरसो लग गए, जो कि यहाँ समय सीमा मैं निर्धारित है, हाल ही मैं हमारी इस संस्था मैं,एक आयोजन हुआ था,जिसका नाम रक्खा गया था,
"fire starter", और उसमें बहुत से उदहारण उधृत किये गए थे, जिसका मैं अपने लेखों मैं,अपने पूज्य गुरु जी 
स्वामी परमहंस योगंनद जी ने जो शिक्षा दी है,जैसे कि इंसान की विचारधाराओं पर प्रभाव पड़ता है,देश काल,लालन पालन समाज और परिवेश का, इसमें नया क्या है ? जो कि "fire starter" मैं बताया गया था
फिर यह बताया गया था ,कि इंसान के कुछ पुरबाग्रह होतें है, जिसके बारे मैं गुरु जी कहतें हैं,इसको बदलने मैं आठ वर्ष लागतें हैं, और इसमें तो हमारी संस्था ने दो तीन वर्ष निर्धारित कर दिए हैं |
 हम लोग तो खैर संस्था की और नियमित आय पर नहीं हैं, जो नियमित आये पर हैं,जब दो या इससे अधिक
 नियमित आये वाले मिलते है, तो हम अनियमित आये वालों से ऐसे मुहं फेर लेते हैं,जैसे कि हम अपरिचित हैं |
जब यह नियमित आये वाले आदर्शों की बात करतें हैं,तो ना तो इनकी भाव भंगिमा उसके अनुरूप दिखती है, ना ही वाणी |
क्या यही बहुराष्ट्रीय संस्थाओं मैं होता है ? 
समय मिला तो अपनी इस संस्था की अच्छी बांतो के बारें मैं भी लिखूंगा |

अभी तो एक प्रश्न चिन्ह ही छोड़ा है ?








 




 

बुधवार, मार्च 23

अक्सर सबको अपनी समस्या दूसरे से बड़ी लगती है |

अक्सर सबको अपनी समस्या दूसरे से बड़ी लगती है |


सिख पंथ के प्रथम गुरु श्री नानक जी ने कहा था,"नानक दुखिया सब संसार", यह विश्व भिन्न,भिन्न प्रकार के दुखों से भरा पड़ा है,और इस संसार मैं, सदा सत्य तथ्य ,मृत्यु,असाध्य रोग,और जरा,को छोड़ कर, लोगों के दुखों के अनेकों कारण हैं,परन्तु किसी को अपना दुःख दुसरे से बड़ा लगता है |
और इस संसार मैं,अनेकों महान,व्यक्तिव का अभिर्भाव हुआ था,हुआ है,और होता रहेगा,जो अपने कष्टों को भूल कर,प्राणियों का दुख दूर करतें रहें हैं,यह ऐसी महान आत्माएं हैं,जो वास्तव मैं जन्म,मरण के बन्धनों से मुक्त हो चुकीं हैं,यह लोग अपनी इच्छा से,औरों के कष्टों को दूर करने उनके आसूँ पोछने के लिए इस संसार मैं,आतें हैं,और अपनी इच्छा से अपना शारीर छोड़ देतें हैं |
सबसे पहले मैं, गौतम बुद्ध का नाम लेता हूँ,राजा शुद्धोदन के याहं इनका जन्म हुआ,और राजकुमार थे,राजा शुद्धोदन ने,ऐसा प्रबंध कर दिया,कि गौतम बुद्ध को,सांसारिक,सत्य तथ्य,रोग,वृधावस्था और मृत के दर्शन ना हों, परन्तु होनी तो बलवान है ही है, और एक दिन गौतम बुद्ध रथ पर बैठ कर जा रहे थे,तो इन्होने किसी मृत व्यक्ति को देखा,सारथी से पुछा तो उसने अन्यम्स्क सा उत्तर दिया,कि यह मृत्यु है,इसी प्रकार शने:,शने गौतम बुध को वृधावस्था,रोगी के दर्शन हुए तो,लग गए इन तथ्यों के अन्वेषण मैं,और आखिरकार इनको एक दीव्य प्रकाश दिखाई दिया,और एक मन मैं,सत्य,अहिंसा,प्रेम के बीज उत्पन्न हुए,और इन्होने संसार को यही सन्देश दिया |
प्रेम जो कि दीव्य प्रेम होता है,मन्युश को किसी वस्तु की इच्छा नहीं होती,कोई अपेक्षा नहीं होती, एक बार गौतम बुध अपने शिष्यों के साथ,एक वृक्ष के नीचे बैठे हुए थे,इनके मुख मंडल पर दीव्य तेज था,एक स्त्री इनके तेज से आकर्षित होकर आई और इनको यह 'प्रियतम,प्रियतम",कह कर उनके मुख को चूमने लगी,और उसने कहा "आप मुझे क्यों नहीं छु रहे",तो गौतम बुध ने कहा मैं तुम्हे अवश्य छूऊंगा,जब तुम्हे आवश्यकता होगी,समय बीतता गया और,एक दिन गौतम बुध अपने शिष्यों के साथ बैठे थे, अचानक चिल्लाने लगे "मेरी प्रियतमा मुझे बुला रही है",और उठ कर चल पड़े एक वृक्ष के नीचे रोग के कारण उस सुंदर स्त्री का स्वरुप कुरूप हो चूका था,तब गौतम बुध ने कहा,प्रिये मैं आ गया और उस स्त्री को छुआ और उसका उपचार किया",यह था दीव्य प्रेम |
कहते हैं,"पूत के पैर पलने मैं दिख जातें हैं",अहिंसा तो बचपन से ही,इनके मन मैं थीं,एक बार इनके बड़े भाई ने एक हंस को वाण मार के घायल कर दिया',और गौतम बुध ने जब उसको देखा तो उसका उपचार किया,बाद मैं दोनों भईयों मैं,इस झगडे ने जन्म ले लिया है,बड़ा भाई कहने लगा यह मेरा है,मैंने इसे मारा है,गौतम बुध कहने लगे यह मेरा है,मैंने इसका उपचार किया है,आखिर फैसला राजा के पास गया,तो निर्णय यह हुआ जिसके पास हंस जायेगा,हंस उसका होगा,तब हंस गौतम बुध की गोद मैं जा कर बैठ गया,ऐसा था इनका पशु,पक्षी और मानव से प्रेम का सन्देश |
अक्सर इन महान पुरषों,स्त्रियों की आयु अधिक नहीं होती,यह तो निस्वार्थ मानव को प्रभु का रूप मान कर उनकी सेवा प्रभु की सेवा करतें हैं,और अपना काम समाप्त करके चले जातें हैं |
 यही सन्देश था स्वामी विवेकाननद जी का,उनका कहना था,"अपने आस पास देखो,जिसको भी किसी भी चीज की आवश्यकता है,उसको पूरा करो,यही परमेश्वर की सबसे बड़ी आराधना है,"मानव की सेवा ही प्रभु सेवा है",यह सन्देश था स्वामी विवेकाननद जी का |
 दुःख या कष्ट के,प्रमुख कारण होतें हैं |


अलग,अलग समाज,अलग,अलग परिवेश,अलग,अलग आयु के हिसाब से,शारीरिक,मानसिक,भावनात्मक और आत्मिक दुःख,अलग,अलग प्रकार के होतें हैं,और हर कोई,दुसरे का कष्ट अपनी सोच,और निगाह,तथा,अलग,अलग,समाज,अलग,अलग,परिवेश,अलग,अलग आयु के हिसाब से देखने और समझने तथा सोचने वालों के हिसाब से सब को अपना,अपना कष्ट दुसरे से बड़ा लगता है,जब तक दुसरे की संवेदना मन्युष्य अपने हिर्दय मैं नहीं,अनुभव करेंगे तो अपना दुःख दुसरे से बड़ा लगेगा,मैंने कभी एक लेख लिखा था,अपना आत्मविश्लेषण कैसे करें,उसका स्वयम ही उत्तर दे रहा हूँ,दुसरे पर आपके व्यक्तिव का क्या प्रभाव पड़ता है,वोह हैं स्वयम का आत्मविश्लेषण,और उसके अनुसार अपने बारें मैं सोच कर अपनी कमियां दूर करें,तो होगा आपके व्यक्तिव का विकास |
यहाँ पर श्री राजीव कुमार कुल्श्रेसठ जी का धन्यवाद् भी दूंगा,मैं तो भाई ५८ वर्ष को हो चूका हूँ,उन्होंने मेरे दोनों ब्लॉग "www.vinay-mereblogspot.com", और "www.snehparivar.blogspot.com",को चमकाया,मुझे तो इस प्रकार ब्लॉग को चमकाना तो आता नहीं हैं,हमारा जमाना ७० के दशक का था,जिसको अब रेट्रो,रेट्रो कहतें हैं,क्यों कहते हैं,मुझे तो नहीं,मालूम क्यों कहतें हैं,अगर किसी को मालूम हो तो मुझे अवगत बताइयेगा, राजीव जी की निस्वार्थ सेवा का आभारी हूँ |
जो मेरे इस ब्लॉग के आरम्भ मैं लिखा है,वोही मेरा सन्देश है |
अगले भाग मैं, चर्चा करेंगे दुःख या कष्टों के क्या,क्या कारण होतें हैं, सबसे प्रमुख कारण तो किसी से अपेक्षा करना होता है |
और इस कष्ट या दुःख को किसी के मनोभावों को,दिमाग से नहीं,दिल से अनुभव करकें,उस व्यक्ति को जिस तरह से भी आपको उपुयक्त लगता है,उसको स्नेह दें,तो उसका कष्ट कुछ हल्का हो सकता है,आपको लग सकता है,यह तो बिना कारण के परेशान आपकी समझ से,परन्तु उसको अपना कष्ट गमभीर लग सकता है,इसीलिए ही कहता हूँ,दिल से अनुभव करके |
और सबसे बड़ी मूक भाषा प्रेम की है,जो पशु,पक्षी तक समझते हैं |
पशु,पक्षिओं का तो इतना ही स्वार्थ होता है,आप उनको खाने को देतें हैं,तो वोह बदले मैं,आपको प्रेम ही देता है,और यह प्रेम की मूक भाषा बनी रहती हैं |



क्रमश:











मंगलवार, मार्च 15

आइये जापान को और विनाश से बचाने के लिए प्रार्थना करें

आइये जापान को और विनाश से बचाने के लिए प्रार्थना करें 

आदिम युग से उस परम पिता परमात्मा की सृष्टि के नियम बिना किसी बदलाव के आज तक चलते आ रहें हैं, और भविष्य मैं चलते रहेंगे, या यह भी कहा जा सकता है,जब तक यह सृष्टि रहेगी परमात्मा के नियम वोही रहेंगे,सूर्य देवता सदा पूरब से निकल कर पश्चिम मैं ही अस्त होंगे जैसे की होता आया है,चंद्रमा पश्चिम से निकल कर पूर्व मैं ही अस्त होता आया है,और होता ही रहेगा,दिन के बाद रात, ग्रीष्म,वर्षा और शीत काल का मोसम,सदा की तरह यह अटल नियम ही रहेंगे, उस कलाकार ने इसी रचना कर दी है, जो कि सदा और सर्वथा एक सी है |
 कोई भी वस्तु ऊपर से पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण की सीमा मैं गिरेगी तो नीचे ही गिरेगी, जन्म मिरतु का यह क्रम भी लगातार चल रहा है, और धर्म ग्रन्थ गीता के अनुसार,आत्माएं शरीर रुपी चोला ही,बदलती है,और हमें पूर्वजन्म की स्मृति नहीं रहती है, और हमको बार,बार अपने मैं  सुधर लाने का अवसर दिया जाता है, यदि हमें पुर्ब्जन्म की समिर्ती रहती तो हम अपने मैं सुधार इसलिए नहीं लाते कि हमें अवसर तो मिलेगा ही,और हमारा जीवन कष्टों मैं बीता होता,तो हममें नया जीवन जीने का साहस नहीं होता, यह प्रभु का नियम चलता ही चला आ रहा है |

सर आइजेक न्यूटन ने तीन नियम बनाये  

1. जो भी वस्तु ऊपर से गिरेगी वो नीचे ही गिरेगी |

२. जो वस्तु  गतिमान है, वोह गतिमान ही रहेगी, और जो वस्तु स्थिर है,वोह स्थिर ही रहेगी |

३. हर क्रिया की पर्तिक्रिया होती है |

यह न्यूटन के तीनो नियम,ऐसे ही चलते रहे |

परन्तु जब आइन्सटीन का युग आया तो उन्होंने न्यूटन के  तीनो नियमो को संशोधित किया |

१. जो वस्तु गुरुत्वाआकर्षण की सीमा मैं है,वोह वस्तु ऊपर से नीचे ही गिरेगी |

२. जो वस्तु गतिमान है,वोह गति मैं ही रहेगी  और जो वस्तु स्थिर है,वोह स्थिर ही रहेगी,जब तक उस पर बल ना लगाया जाये |

३. हर क्रिया के विपरीत उसी के बराबर की प्रतिक्रिया होती है |

परमात्मा को कभी भी अपने बनाये हुए नियोमो को संशोधित करने की आवश्यकता नहीं पड़ी, परन्तु मानव को कभी विज्ञानं के नियोमों को संशोधित करना पड़ा,और कभी तो एक थ्योरी के विपरीत दूसरी थ्योरी देने की
आवश्यकता पड़ी|

परमात्मा के नियम तो सदा ही स्थिर थे,और बहुत सी बातों का ज्ञान इंसान को नहीं था,तभी तो अर्केमेदेज़ टब मैं स्नान करने गये,तो उनको अनुभव हुआ,द्रव किसी वस्तु के आयतन जो उसमे डाली जाती है,अपने उतने ही आयेतन  को विस्थापित करता है |
परमात्मा का यह नियम तो सदा ही चला आ रहा है |

वोह मालिक प्रोटोपलास्म मैं जान डाल कर विभिन्न प्रकार के जीव बनता है,कीड़े,जानवर और इंसान,जबकि प्रोटोपलास्म को अगर माईकरोस्कोप के नीचे देखो तो एक से ही लगते हैं,वेशक इन्सान ने जानवरों के क्लोन बनाने मैं सफलता प्राप्त कर ली,जो कि बिलकुल ही स्वंतत्र रूप से नहीं बना था, परमात्मा की तरह स्वंतत्र रूप से 
नहीं बना था,जैसे सांसारिक जीवों से कोई भिन्न  जीव |

और उस कलाकार की रचना तो देखो, स्त्री पुरुष के शरीर,और हार्मोन मैं,बदलाव करके,बल्कि प्रत्येक जीव मैं,नर मादा बना कर इसी रचना कर दी, जिससे उन्ही के स्वरुप के जीव उत्पन्न होते रहे हैं,होते रहेंगे,केवल एक अमीबा को छोड़ कर जो की एक सेल का बना होता है,और जब उसका दूसरा सेल बनता है,तो दूसरा अमीबा बन जाता है, पुरुष वर्ग मैं टेस्टटरोन की अधिकता और स्त्री वर्ग मैं ओस्ट्रोजन की अधिकता होने के कारण,एक दुसरे के स्वाभाव मैं अंतर है  जो उनकी संतानों के लिए आवश्यक है,ऐसी  सरंचना की है,उस प्रभु ने |

मानव वैज्ञानिको ने बहुधा किसी एक विषय पर मतभेद प्रकट किया है, परन्तु प्रभु के नियोमों मैं कोई मतभेद नहीं है |
आज दूरभाष,दूरदर्शन, रेडियो,मोबाइल जितने भी संचार माध्यम हैं,वोह वायुमंडल मैं ध्वनि,और प्रकाश की तरंगे छोड़ने और प्राप्त करने पर आधारित हैं, जो इन वस्तुओं के अविष्कार होने से ही पहले वायुमंडल मैं थीं,

वायुमंडल मैं कोई भी तरंग जाती है,चाहें वोह मानसिक विचारों की हों,ध्वनि की या प्रकाश की हों,वोह वायुमंडल मैं उपस्थित इथ र को प्रभावित करतीं हैं,और उसका प्रभाव विश्व और विश्व के जीवो को प्रभावित करता है,आइये हम सब मिल कर, जापान के लिए प्रार्थना करें,और और अधिक से अधिक लोग प्रार्थना करेंगे तो,जापान को और त्रासदी से बचाया जा सकता है |

"परम पिता परमात्मा,भगवान कृष्ण, जीसिसस,सभी धर्मो के संत महानुभाव, हम अपने हिर्दय मैं,अपने भाई,बहनों का दुःख अनुभव कर सकें और हम आपका दिव्य प्यार अनुभव करें और उन अपने भाई,बहिन जो आपकी ही संतान है,जैसे की हम आपकी संतान है,आपका प्यार हमारे हिर्दय मैं हो,और वोह हम अपने भाई,बहनों को बाँट के इस भयानक त्रासदी से बचा सकें |"

यह प्रार्थना समूह मैं एक साथ एक ही समय पर करें तो वायुमंडल मैं इथर प्रभावित होगा,और इस प्रार्थना का प्रभाव  अवश्य पड़ेगा |

स्नेह परिवार की ओर से प्रार्थना 

समांहुयिक प्रार्थना मैं बहुत बल है |
   

शुक्रवार, फ़रवरी 4

परम पिता परमेश्वर एक रास्ते अनेक फिर क्यों विवाद |

   परम पिता परमेश्वर खुदा,अल्लाह,गोड सभी तो परमात्मा की ओर पहुचने के रास्ते हैं,फिर यह मजहब,धर्म को लेकर विवाद क्यों ?, हिन्दू धर्म में साकार,निराकार,और भिन्न देवी देवता हैं,जिसकी परमात्मा की ओर पहुचने की रूचि है,वोह उसी प्रकार से उस सर्वशक्तिमान की ओर पहुचने के लिए प्र्यतानशील है,हिन्दू धर्म में साकार स्वरूप की भक्ति करने वालों का विवाद निराकार भक्ति करने वालों से श्रेष्ठता को लेकर विवाद होता रहता है,और साकार स्वरुप की भक्ति करने वालों में भी अपने,अपने स्वरुप के ईश्वर को लेकर विवाद होता रहता है,और नवधा भक्ति को लेकर विवाद होता रहता है कि कर्म योग,भक्ति योग,ध्यान योग इत्यादि में इस प्रकार की भक्ति श्रेष्ठ है या उस प्रकार की भक्ति श्रेष्ठ है, फिर पन्थो को लेकर विवाद कबीरपंथ,जैन पंथ,बौध धर्म इत्यादि में यह पंथ श्रेष्ठ है या वोह पंथ|
सब में ईश्वर का अंश अविनाशी आत्मा है,और फिर क्यों ब्राहमण,क्षत्रिय,वैश्यों और शुद्र में क्यों यह जाती सबसे ऊपर है,या वोह  जाती निम्न है, जब सब में ईश्वर का अंश आत्मा है,तो इन जातियों में भेद भाव तो होना ही नहीं चाहिए,सब जातियां बराबर हैं
संत कबीर दास के अनुसार तो "हरी को जो भजे हरी का होई" |
 इसलाम को लिया जाये तो वहाँ शिया और सुन्नी में मतभेद समझ में नहीं आता है ऐसा क्यों है ?हैं तो आखिर दोनों मुस्लिम संप्रदाय,एक पहले से शिया जो मुस्लिम संप्रदाय में आतें हैं,और सुन्नी जो कि सुन कर मुस्लमान हुएं हैं,क्या इनके लिए खुदा,अल्लाह पीर,पैगम्बर जुदा है ? यदि खुदा,अल्लाह पैगम्बर,पीर जुदा नहीं हैं,तो आपस में क्यों एक मुस्लिम सम्प्द्रय एक दुसरे को अपने को बेहतर  क्यों बतातें हैं ?
इसी प्रकार अगर इसाई धर्म को मानने वोलों में भी,मतभेद क्यों ? इस इसाई धर्म की भी अनेक शाखाएँ हैं, केथोलिक,
प्रोटेस्टेंट,एडवेनटिस्ट,इत्यादि क्या इन इसाई धर्म को मानने वालों के लिए जिसयस अलग है,या खुदा कहें या गोड कहें क्या वोह अलग है,फिर आपस में यह कहना कि यह रास्ता अच्छा है,या वोह रास्ता अच्छा है,कहाँ तक ठीक है ?|
सबकी रगों में खून का रंग एक,सब के लिए धुप,छाओं,गर्मी,सर्दी बरसात एक,ईश्वर,भगवान,गोड,खुदा ने तो कोई पक्षपात नहीं किया,फिर कब समझोगे,सब इंसान एक हैं,परम पिता,परमेश्वर,गोड,खुदा के सब बच्चे हैं,धर्म तो उस सर्वशक्तिमान के पहुचने की,अलग,अलग सिड़ी है,जो परमेश्वर से मिलाने के जरिये हैं,परन्तु आपस में,मतभेद,बैर,लड़ाई,झगड़ा धर्म को लेकर और इंसानियत को भूल जाने पर,यह सिड़ी कहीं भी नहीं ले जाएगी |
अंत में इस कहानी से करता हूँ, एक महावत के पॉँच   अंधे बेटे थे,एक दिन महावत ने अपने बेटों से  कहा,इस हाथी को स्नान करा दो,उसके अंधे बेटे लग गये उस महावत के हाथी को नहलाने में,जब उसके बेटे हाथी को नेहला चुके तो उस महावत के अंधे  बेटों में हाथी को लेकर  झगड़ा होने लगा हाथी ऐसा,हाथी वैसा है,जिसके हाथ में हाथी के पैर आये उसने कहा हाथी  चार खम्बो जैसा है,जिसके हाथ में हाथी के कान आये उसने कहा हाथी,केले के बड़े,बड़े  पत्तों की तरह है, जिसके हाथ में हाथी की सूंड आयी उसने कहा,हाथी एक उस तरह के खम्बे की तरह है जो नीचे से पतला होकर जैसे,जैसे ऊपर जाओ तो मोटा होता जाता है,जिसके हाथ में हाथी के दांत आये वोह बोला हाथी तो हड्डियों से बना हुआ है,जिसके हाथ में हाथी की पूँछ आयी वोह बोला हाथी एक रस्सी की तरह है,जो स्वर्ग,जन्नत,हेवन से लटक रही है, क्योंकि हाथी की पूँछ ऊंचाई पर थी इसलिए उसने ऐसा कहा |
महावत ने जब उनको झगड़ा करते हुए देखा तो उसने कहा तुम सब आंशिक रूप से ठीक कह रहे हो, हाथी इन सब वस्तुओं का सम्मिलित रूप है,तो भाई बहनों, हाथी को उन महावत के बेटो ने अलग,अलग तरह से पहचाना तो यह अलग,अलग तरह के धर्म,सम्पर्दाय अलग रास्ते हैं,उस परम पिता परमेश्वर की ओर पहुचने के,जैसे नदी सागर में मिलने के बाद अपना सवरूप भूल जाती है, उस नदी में बहुत,वेग होता है,इठलाती है,अलग,अलग नदियाँ होतीं हैं, और जब उस शांत सागर में मिलती हैं,तो अपना स्वरुप भूल जातीं हैं,ऐसे ही जब मानव परमात्मा में लीन हो जाता है,तो इन धर्म,सम्पर्दय इत्यादि का कोई महत्व नहीं रह जाता है, और जब आत्मा जो की परमात्मा का स्वरूप है,उसी में लीन हो जाती है,तो मानव निर्मित धर्म,सम्प्रदाय को कोई महत्व नहीं रह जाता है |
आत्मा अंश जीव अविनाशी,उस अविनाशी ईश्वर का स्वरुप है | 

लेबल

अभी तो एक प्रश्न चिन्ह ही छोड़ा है ? (1) आत्मा अंश जीव अविनाशी (1) इन्ही त्योहारों के सामान सब मिल जुल कर रहें (1) इश्वर से इस वर्ष की प्रार्थना (1) इसके उज्जवल भविष्य की कामना करता हूँ | (1) उस अविनाशी ईश्वर का स्वरुप है | (1) एक आशियाना जिन्दगी का (1) कब बदलोगे अपनी सोच समाज के लोगों ? (1) कहाँ गया विश्व बंधुत्व और सदभावना? (1) कहीं इस कन्या का विवाहित जीवन अंधकार मय ना हो | (1) किसी का अन्तकरण भी बदला जा सकता है (1) किसी की बात सुन कर उसको भावनात्मक सुख दिया जा सकता है | (1) कैसे होगा इस समस्या का समाधान? (1) चाहता हूँ इसके बाद वोह स्वस्थ रहे और ऑपेरशन की अवयाक्ष्ता ना पड़े | (1) जय गुरु देव की (1) जीत लो किसी का भी हिर्दय स्नेह और अपनेपन (1) डाक्टर साहब का समर्पण (1) पड़ोसियों ने साथ दिया (1) बच्चो में किसी प्रकार का फोविया ना होने दें (1) बस अंत मे यही कहूँगा परहित सम सुख नहीं | (1) बुरा ना मानो होली है | (1) मानवता को समर्पित एक लेख (1) मित्रों प्रेम कोई वासना नहीं है (1) में तो यही कहता हूँ (1) यह एक उपासना है । (1) राधे (2) राधे | (2) वाह प्रभु तेरी विचत्र लीला (1) वोह ना जाने कहाँ गयी (1) शमादान भी एक प्रकार का दान है | (1) सब का नववर्ष सब प्रकार की खुशियाँ देने वाला हो | (1) समांहुयिक प्रार्थना मैं बहुत बल है | (1)