हमारे देश की संस्कृति बहुरंगी है, वैसे तो इस भारत देश में,अनेकों पर्व मनाये जाते हैं, लोहड़ी,वैसाखी,खिचड़ी,करवाचौथ, ईद,क्रिसमस इस्टर,गुड फ्राईडे गंगा नाहन,बट अमावस्या,गुरु पूर्णिमा,गुरु नानक देव का जन्मदिन,गुरु गोविन्दसिंह का जन्मदिन,प्रकाशौत्सव,ओणम,मकर संक्रांति और भी बहुत सारे तीज,त्यौहार, सभी धर्मो हिन्दू,मुस्लिम,सिख,इसाईओं के त्यौहार, यह है सभी धर्मो के मिलुजुले बहुरंगी रंगों से सजे त्यौहार, और इसके साथ,साथ विदेशी परम्परा के त्यौहार वेलेनटाइन डे,फाथर डे,मदर डे,फ्रेंडशिप डे इत्यादि, यह जो डे हैं,वोह तो विदेशों में एक ही दिन के लिए हैं,परन्तु हमारे देश में तो नित,प्रतिदिन के लिए हैं, ऐसे है,सब बहुरंगी पर्वो का मिला,जुला रूप हमारे देश में है |
अगर हम सब प्रान्तों के त्य्होरों को लेकर चले,तो वोह भी एक इन्द्रधनुषी छटा विखेरते हैं,असम में देखो तो बिहू का नृत्य, पंजाब में लोहड़ी और वैसाखी का ढोल पर थ्रिकते भंगरा और गिद्दे पर लोगों के कदम,और नीचे के प्रान्त उत्तर परदेश में आओ तोखिचड़ी का त्यौहार, और नीचे केरल में आओ तो ओणम की नौका दोड़ का दृश्य, एक अनूठी ही रंगबिरंगी छटा विखेरती हैं कि देखते ही बनता है ,मिल जुल कर इस देश के प्रान्त, और भी अनेकों प्रान्तों में होने वाले त्यौहार,और सहसा ही,मुख से इस गीत की पंक्तिया मुख से निकलती हैं,"मिले सुर हमारा तुम्हारा तो बने के सुर न्यारा", यह गीत भी तो अनेकों प्रांतीय भाषाओँ का मिला जुला स्वरुप है |
हमारे इस भारत के चार प्रमुख त्यौहार हैं,होली,दिवाली,दशेहरा और रक्षाबंधन,हर त्यौहार के साथ कथा जुड़ी हुई है, और इन चारों त्योहारों में से तीन त्यौहार,अलग,अलग ऋतुओं में मनाये जाते हैं, दशहरे के बाद शरद ऋतू में आती है,दीपों से सजी दिवाली, और जैसे,जैसे शरद ऋतू का समापन होता है,तो ना अधिक शीत और ना ही अधिक गर्मी होती है,तो मादक करने वाला आता हैं बसंत,और बसंत जब अपनी समाप्ति की ओर होता है,और फागुन ऋतू आती है,तब आती है,यह होली, और इस होली का भी कृष्ण भगवान के ब्रज में तो अलग,अलग सवरूप हैं, बरसाने में लठमार होली,जिसमें गुज्रियों के लठो से बचते हुए पुरष होतें हैं , इस लठमार होली में भी सदभावना होती हैं,पहले तो इन पुरषों को यह गुजरियां,खिलाती,पिलाती हैं, फिर इन पुरषों पर होता है लठो से प्रहार,यह लोग पगड़ी बांधे होते हैं,और थाल नुमा ढाल से अपने को बचाते हैं अपने पर होने वाला प्रहार, और यह गुजरियां इन पुरषों का ख्याल रखती हैं,कहीं इनको चोट ना लग जाये, ऐसी होती है,लठमार होली, वृन्दावन में बांके बिहारी जी की मूर्ति बहार रख दी जाती है,मानो की बिहारी जी होली खेलने के लिए बहार आ गएँ हो,और यह होली तो चलती है,सात दिन पहले प्रारंभ होता है,गुलाल से,फिर चलते हैं सुखें रंग,और फिर आती है,गीले रंगों से सरोबर करने वाली होली |
होली में गुब्बारे मरने का चलन हो गया है, जिसमें चोट लगने की सम्भावना होती है,क्या होली में ऐसी सदभावना नहीं हो सकती,जैसे बरसाने की होली में लठमार होली में होती ही है,जहाँ पर लठ मरने वाली स्त्रिया यह ध्यान रखती हैं,कहीं चोट ना लग जाये, और इस लठमार होली में भाग लेने वाले यह पुरुष भी प्रक्षिशित होतें हैं, क्यों होली में हानि पहूचाने वाले अवीर,गुलाल होतें हैं |
साधारणत: होली में,गुजिया और कांजी से मेहमानों की आवभगत की जाती है, और आपस में बैर,वेम्नसेय मिटा के गले मिलते हैं, दुश्मन को भी दोस्त बनाने वाला है,यह पर्व, क्यों लोग भूल गयें हैं,इन पर्वो का महत्व,क्यों लोग दिवाली पर,जुआ खेल कर किसी का दिवाला निकालते हैं,क्यों नहीं, होली को जहरीले रंगों को छोड़ कर,साधारण गुलाल,अबीर और गीले रंगों का उपयोग नहीं करते,क्यों गुब्बारे मारते हैं,जिस से चोट लग जाये ?
हाँ होली पर हल्का,फुल्का मजाक तो चलता है, पर कोई बुरा नहीं मानता, आपस में गले मिल कर सब गिले,शिकवे दूर कर लेते हैं |
शायद यह लेख अधिक लम्बा हो गया है, अगर भाई,बहिन,माता,पिता,दादा,दादी,बेटे,बेटियां बोर हो रहें है,तो हों |
बुरा ना मानो होली है
Khaa key gujiya, pee key bhaang,
laaga k thora thora sa rang,
baaja ke dholak aur mridang,
khele holi hum tere sang.
HOLI MUBARAK!
बुधवार, फ़रवरी 24
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