प्रभु इश्वर, क्यों करता है मानव की भावना से खिलवाड़ ।
परमपिता परमात्मा, इन्सान को क्यों दी तूने भावना,और यह भावना ही मन को व्यथित करती है, क्यों रचता है,ऐसे खेल कि मानव हो जाता है,व्यथित,अधिकतर लोग इतने ज्ञानी तो नहीं होते,जो सुख और दुःख में सम रहें,और लोग कह देते है,पूर्वजन्म के कर्म,पर है,इश्वर कौन जनता है,पूर्वजन्म के कर्म,कभी किसी को उसके जीवन साथी को दूर कर देता है,और किसी के जीवन साथी को सदा के लिए दूर कर देता है, कि दूसरा जीवनसाथी रोता,बिलखता रह जाता है,कीसी को दे देता है संतान का वियोग ।
प्रभु क्यों बनाता है,एसे सयोंग,कि कुछ समय के लिए दो लोगों को एसे मिला देता है,कि कभी वियोग नहीं होगा,परन्तु एक ही तुषारपात ऐसा कर देता है,ऐसा वियोग हो जाता है,पता ही नहीं चलता भविष्य में सयोंग होगा कि नहीं,और किसी को भी नहीं ज्ञयात होता,भविष्य मैं क्या होगा,यह अनिश्चितता दे कर,क्यों असमंजस मैं पड़ जाता है ।
कहते है,सदगुरु से ज्ञयान मिलता है,परन्तु क्यों नहीं मिलता है हर किसी को सदगुरु,और मिलता भी तो साधारण मनुष्य कैसे समझ सकता है,कौन है सदगुरू,और मानव को पता चल जाये कि,भविष्य में,हानि होगी तो मानव सम्भल जाए ।
बस इस लेख का समापन इस कथा से करता हूँ,जब कृष्ण भगवन ने उधो को कृष्ण वियोग मैं,जलती हुई गोपियों के पास भेजा,तब जब उद्धव जी ने गोपियों को ज्ञयान देने का प्रयत्न किया तो गोपियों ने कहा,'ऊधो तुम्हारे जोग हम नहीं ।
वाह प्रभु तेरी विचत्र लीला
परमपिता परमात्मा, इन्सान को क्यों दी तूने भावना,और यह भावना ही मन को व्यथित करती है, क्यों रचता है,ऐसे खेल कि मानव हो जाता है,व्यथित,अधिकतर लोग इतने ज्ञानी तो नहीं होते,जो सुख और दुःख में सम रहें,और लोग कह देते है,पूर्वजन्म के कर्म,पर है,इश्वर कौन जनता है,पूर्वजन्म के कर्म,कभी किसी को उसके जीवन साथी को दूर कर देता है,और किसी के जीवन साथी को सदा के लिए दूर कर देता है, कि दूसरा जीवनसाथी रोता,बिलखता रह जाता है,कीसी को दे देता है संतान का वियोग ।
प्रभु क्यों बनाता है,एसे सयोंग,कि कुछ समय के लिए दो लोगों को एसे मिला देता है,कि कभी वियोग नहीं होगा,परन्तु एक ही तुषारपात ऐसा कर देता है,ऐसा वियोग हो जाता है,पता ही नहीं चलता भविष्य में सयोंग होगा कि नहीं,और किसी को भी नहीं ज्ञयात होता,भविष्य मैं क्या होगा,यह अनिश्चितता दे कर,क्यों असमंजस मैं पड़ जाता है ।
कहते है,सदगुरु से ज्ञयान मिलता है,परन्तु क्यों नहीं मिलता है हर किसी को सदगुरु,और मिलता भी तो साधारण मनुष्य कैसे समझ सकता है,कौन है सदगुरू,और मानव को पता चल जाये कि,भविष्य में,हानि होगी तो मानव सम्भल जाए ।
बस इस लेख का समापन इस कथा से करता हूँ,जब कृष्ण भगवन ने उधो को कृष्ण वियोग मैं,जलती हुई गोपियों के पास भेजा,तब जब उद्धव जी ने गोपियों को ज्ञयान देने का प्रयत्न किया तो गोपियों ने कहा,'ऊधो तुम्हारे जोग हम नहीं ।
वाह प्रभु तेरी विचत्र लीला
1 टिप्पणी:
बहुत से प्रश्नों के उत्तर मांगती हुई सार्थक पोस्ट
एक टिप्पणी भेजें