कुछ समय पहले मैंने एक पोस्ट लिखी थी, स्नेह परिवार जिसमे मैंने उस संस्था की संचालिका प्रियम मित्तल बारे मैं लिखा था, किस प्रकार वोह निराश्रित बच्चो की देखभाल एक ममतामई माँ की तरह करती हैं, उस पर मुझे शमा जी की टिप्पणी मिली थी कि वोह इस प्रकार कि संस्था से जुड़ने की इछुक हैं,पर जुड़ नहीं पाती, तत्पश्चात मुझे यह जानकारी प्राप्त हुई थी, उनके आस पास काफी NGOs जिनके साथ मिलके वोह काम कर सकती थी पर वोह लोग उनके नाम से बिदक जाते हैं, जबकि वोह अपनी ईमानदारी और साफगोई के कारण परिसिध हो गई थी, यह सोच के मन उदास हो गया, और यह पोस्ट लिखने का मन मैं विचार आया था, यह मानवता की सेवा तो समपर्ण की भावना से ही होती हैं, अगर मन्युष का मन संवेदनशील हैं तो उसका दिल दिमाग पर अभावग्रस्त जीवन को देख कर स्वयं ही प्रवाहाव पड़ता है, परन्तु अगर संवेदना ही ना हो तो क्या प्रवाहाव पड़ेगा, संवेदनहीन लोगो ने तो अपना मतलब सिद्ध करने के लिए यह व्यापर बना लिया है, तो उन मैं तो संवेदना का नितांत आभाव हैं, वोह लोग क्या मानवता को समर्पित होंगे, यह लोग या तो नाम के लिए या दाम के लिए करते हैं।
शायद इन्ही कारणों से मेरी जानकारी मैं अधिकतर से सच्ची मानवता की सेवा करने वाले अकेले ही हैं, या किसी अकेले इन्सान ने मानवता की सेवा करने वालो का समूह बनाया हैं।
प्राय: अगर कुछ करना का मन हैं तो रास्ते मैं कांटे बिखरने वाले मिल जाते हैं, मेरे एक परिचित ने कम पैसे मैं दवाइयों का वितरण प्रारम्भ किया तो उनके विरोध मैं कुछ झोला छाप चिकत्सक आ गए और उनको यह नेक काम बंद करना पड़ा, अगर आप किसी जरूतमंद इन्सान के लिए कुछ करते हो, तो छदम भेष मैं अनेको बिना जरूरतमंद के लोग अपने लाभ के लिए आ जायेंगे, रंगे सियार की भांति असली और नकली की पहचान करना नितांत कठिन हैं, कौन असली हैं और कौन नकली हैं इसके लिए उन लोगो की जानकारी करना और वोह भी इस प्रकार की उनको कोई संदेह ना हो नितांत आवश्यक है।
बहुत से नगरो मैं बच्चे भीख मांगते दिखाई दे जायेंगे, परन्तु यह नही पता चलता कि उनको यथार्त मैं अव्यश्यकता है या नहीया उनका कोई मुखिया हैं,जिसको वोह मासूम बच्चे अपनी कमाई देते हैं,और निर्धारित पैसे मुखिया को ना मिलने पर निर्ममता से पिटते है, और तो और बहुत से बच्चो को वोह मुखिया अंग भंग करके जीवन भर को उनको लाचार करके अपना उल्लू सीधा करते हैं, ना जाने किस किस प्रकार से लोगो ने मानवता को बदनाम करके व्यापर बना रखा हैं।
कुछ दिन पहले मैंने समाचार पत्र मैं आशा नाम कि संस्था के विषय मैं पड़ा था, जो कि जीवन कि ढलती संध्या के वोह बुजुर्गो के बारे मैं था, जिनके लिए इस संस्था ने आवास बनाया था, जो की नाम के लिए ही था, इस मैं निर्धारित लोगो से अधिक वास कर रहे थे, संक्रमण रोगों से ग्रसित लोग एक ही साथ रह रहे थे,जिनके लिए अलग व्यवस्था होने की अवयाक्श्ता हैं, परन्तु एक साथ रह रहे हैं, सफाई की कोई व्यवस्था नहीं हैं,यह तो केवल नाम के लिए है,यह तो उस वृक्ष की भांति हैं पौधारोपण तो कर दिया पर उसको सम्पुरण वृक्ष बनने ही नही दिया, खाद पानी की कोई व्यवस्था नहीं, तो उस पौधे की वृक्ष बनने की सम्भावना कहा तक हैं, यदि खाद पानी मिल भी गया तो रोग निरोधक दवाइयों के बिना उसकी जर्जर वृक्ष ना बनने की सम्भावना कहाँ तक हैं?
अंत मैं रबिन्द्रनाथ टेगोर जी की पंक्तियों "एकला चलो रे एकला चलो के साथ इस विषय को विराम दे रहा हूँ, और साथ मैं इस संदेश के साथ लेखनी को विराम दे रहा हूँ, फूल की सुगंध तो चारो ओर फेल ही जाती हैं,बस मानवता की सेवा का निस्वार्थ प्र्यतन करते रहने पर फूल की सुगंध बातावरण मैं व्यापत हो ही जायगी।
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4 टिप्पणियां:
bahut khub.narayan narayan
Sahee kaha aapne..mai ab akele hee, mujhse jo ban padta hai,karne lagee hun..!
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Aapki tippaneeke liye dhanywad ! " sansmaran" blogpe...!
Bahut adhik zaroorat hai,is jaagruktaakee...
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aapne bilkul shi kha hai manne bhi bdi bdi sansthao ke sath kam kiya hai par sbhi jgh log apna mtlab nikalte hai .isliye mai akele hi apni samrthynusar jitna ban skta hai kam krti hoo .bina paisa lgaye aur bina paisa liye .
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