गतांक से आगे
फेसबुक का सिलसिला तो चलता ही रहेगा,अभी मैंने फेसबुक का जो खाता फकीरा.चन्द के नाम से बनाया था,जैसे राजीव जी की मंत्रणा मुझे टिप्पणी के रूप में मिली थी,उस पर विचार करके उस खाते को अस्थायी रूप से बंद कर दिया है,और उसके बाद भी जो मेरा फेसबुक का खाता vinay532007@gmail.com के नाम से है,इस खाते को तुरंत खोल कर देखा,तो वोही फिशिंग की समस्या,फेसबुक को फकीरा चंद वाले खाते में,यह भी बता दिया है, कि मैंने इस खाते को क्यों अस्थायी रूप से बंद किया है, राजीव जी फकीरा वाले खाते में,मैंने स्वयं को अपना मित्र बना रखा है,और जब में फकीरा वाला खाता खोलता हूँ,में स्वयं को और अपने मित्रों को उसमें पाता हूँ, वोह मेरा फकीरा वाला खाता सुचारू रूप से चल रहा है,सम्भवत: आपने मेरा फकीरा वाला खाता देखा होगा,एक दो दिन बाद देखेंगे ऊंट किस करवट वैठेगा, और फेसबुक द्वारा बतये हुए,एंटी फिशिंग में रिपोर्ट भी
दे दी है, इस मसले को तो छोड़ते हैं बिहारी जी के पास जैसा उचित समझेंगे वोह करेंगे |
अब वोह समय प्रभु कृपा से आ ही गया,कि उन सज्जन की कहानी बताऊँ,जिनोहने अपने को सम्पुरण रूप से बिहारी जी की शरण में छोड़ दिया है, मुझे तो उनके सम्पुरण व्यक्तिव के विरोधाबस ने आश्चर्य में डाल दिया है,वोह सज्जन उसी संस्था में एक उच्च अधिकारी के रूप में काम करते थे जिसमे में था मोदीपोन मोदीनगर में , क्योंकि में तो तकनिकी बिभाग में था,परन्तु वोह थे संस्था के संचालन बिभाग में,तो यह तो ज्ञात नहीं कब उनकी मोदीपोन संस्था को छोड़ने की अवधि आ गयी, हाँ उनका एक दम शानदार व्यक्तिव भौतिक रूप में,शानदार वस्त्र उनके शरीर पर,और संस्था के द्वारा दी हुई,ड्राइवर सहित एक एम्बेसेडर गाड़ी,जब उनकी संस्था छोड़ने की अवधि आयी,तो वोह और मालिकों के द्वारा अनेको प्रकार के प्रलोभन देने के बाद भी और संस्था को सेवा नहीं देना चाहते थे,उनका यही कहना था "अब तो में जाऊंगा गोवर्धन बिहारी जी की शरण में ",मालिक बोले फिर तो तुम्हे कोई पहचानेगा नहीं",उनका उत्तर "यही तो में चाहता हूँ", यह लेख लिखते,लिखते मुझे मीराबाई जो की एक राज कुमारी थीं,उनके पद की पंक्तिया याद आ रहीं हैं,जिनमे से प्रमुख तो यही है,"जिसके सिर पर मोर मुकुट है,मेरा तो पति सोई", और "लोक लाज खोई संतन के ढिग बैठ के",हैं तो बहुत सारी पर इस बात को यहींकह कर समाप्त करता हूँ, "ऐसी लगी लगन मीरा प्रभु के गुण गाने लगी",एक राजकुमारी मीराबाई जिन्होंने सब कुछ त्याग कर एक सन्यासिन हो गयीं,संभवत: ऐसा ही उनका भाव था, और स्वामी परमहंस योगानन्द की यह पंक्तिया याद आ रही हैं,जब हम इस जग में आते हैं,तो हमको कुछ चीजे अस्थायी रूप से प्रयोग करने को दे दी जातीं हैं,और फिर ले लीं जातीं हैं, महान योधा सिकंदर जिसने दुनिया पर विजय प्राप्त की थी,उसने यह इच्छा जाहिर की थी,मेरी मृत्यु के समय पर मेरे दोनों हाथ ताबूत से बहार निकाल कर रखना,जिससे जग को यह पाता चले की में खाली हाथ आया था और खाली हाथ जा रहा हूँ, यह मैंने इस लिए उदहारण दिए कि संभवत: उनके मन में यहीं भाव होंगे,उन्होंने तो गोवर्धन की परिक्रमा के रास्ते में अपना घर बना लिया था,और अपनी पत्नी के साथ वहाँ रह रहें हैं,चूँकि मेरे पिता जी मथुरा के हैं,इसलिए मुझे गोवर्धन जाने का और उनसे मिलने का सोभ्याग्य मिला,और उनके वस्त्र अस्त,व्यस्त थोड़ी,थोड़ी दाड़ी बड़ी हुई,और उनके घर में ही उनका साधना कक्ष, और हमारा सौभाग्य था,उन दिनों उनका मौन ब्रत नहीं था,नहीं तो वोह माह में १५ दिन का मौन ब्रत रखते हैं, अपने घर पर उन दोनों पति,पत्नी ने हमारा सत्कार घड़े के पानी पिला कर बाकि तो चाय इत्यादि पिला कर किया, बातों,बातों में पता चला कि उन्होंने फ्रिज रखा था, लेकिन एक दिन वोल्टेज अधिक आने पर उनका फ्रिज ख़राब हो गया, उन लोगों ने यह सोच कर फ्रिज ठीक नहीं करवाया,कि बिहारी जी नहीं,चाहते कि फ्रिज रखे ,उन लोगों ने दूरदर्शन भी रखा था,उसको बन्दर तोड़ गये,और उन्होंने यही सोच कर दूरदर्शन ठीक नहीं करवाया बिहारी जी नहीं चाहते दूरदर्शन रखें बस केवल एक ट्रांजिस्टर ही है उनके पास, उनका कहना है कि यह इसलिए रखा है कि बहार का समाचार मिलता रहे और उनकी पत्नी की प्रशंसा करनी पड़ेगी कि वोह भी उनका साथ बखूबी निबाह रहीं हैं,यदा कदा वोह अपने बच्चो के पास चले जाते हैं,या उनके बच्चे उनके पास आ जातें, उनके घर के पास ही मोदिभावन हैं,जो भी उन लोगों के निमंत्रण आते हैं, यही सोच कर मोदिभावन के कर्मचारी उनको नहीं देते, कहीं मौन ब्रत में तो नहीं है |
बस उनकी आस्था के बारे में बात करके इस लेख को पूरण विराम देता हूँ, वोह स्वयं दिल के रोगी हैं, और एक बार वोह और उनके बच्चे पास ही बरसाने में,राधा रानी के दर्शन करने आये थे,वोह इतनी अधिक सीडिया चढ़ कर राधारानी के मंदिर में हिर्दय रोगी होते हुए भी सबसे पहले राधारानी के मंदिर में पहुँच गये,और कहना यह था आप एक कदम स्वयं चलते हो और प्रभु दस कदम चलाते हैं |
समाप्त
राधे,राधे |
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3 टिप्पणियां:
अब क्या कहे इसे... लेख बहुत सुंदर लिखा, पुर्ण जानकारी के संग, धन्यवाद
विनय जी अब मैं फ़ुल्ली sure हूं । मैंने आपका विनय वाला ही खाता
खोला था । जो पूरी तरह से ठीक कार्य कर रहा था । मेल द्वारा मैं
आपको अपने फ़ेसबुक की ID और PW भेज रहा हूं । आप खुद मेरे
खाते से खोलकर देख लें । यदि आप गलत न समझें । तो विनय
वाली आपकी फ़ेसबुक की ID और PW मेल से मेरे पास भेज दें । तब
मैं किसी टाइम उसको देख लूंगा ।
राजीव जी मेरा फेसबुक का खाता अब खुल गया है,इस विषय में आपको
मेल भी भेजा है ।
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