इम्पसल्सिव व्यव्हार के बारे में,लिखने से पहले में लवली जी, और अन्य ब्लॉगर का शमाप्रर्थी हूँ, क्योंकि में लवली जी की पोस्ट "अन्धविश्वासी लोगों में पाए जाने वाले स्किजोफ्रेनिया के लक्षण को पड़ कर में इम्पपलसिव हो गया था, और एक प्रकार से तीखी टिप्पणी कर बैठा, वोह टिप्पणी सीधा प्रहार नहीं था,पर मेरे अनुसार वोह तीखी टिप्पणी थी, जिस टिप्पणी मुझे अधिक इम्पलसिव कर दिया था, वोह स्किज्फ्रोनिया से पीड़ित ब्लॉगर को इंजेक्शन दे कर उन्नयन के लिए लिखी गयी थी, मनुष्य ऐसा सामाजिक प्राणी है, जिसमें अनेकों प्रकार के मनोभाव जन्म लेते रहते हैं,पता नहीं किस बात से वोह इम्पलसिव हो जाये,यही मेरे साथ हुआ, इम्पलसिव का अर्थ है, किसी भी बात को बिना सोचे समझे उस पर पर्तिक्रिया देना, और इंसान का यह इम्पलसिव व्यव्हार उम्र की बड़ती अवस्था के साथ कम होती जाती है, और यह इम्पलसिव व्यव्हार अधिकतर भावुक लोगों में पाया जाता है, भावुक लोगों के मन पर दिमाग की अपेक्षा दिल का राज्य अधिक होता है,और वोह किसी भी क्रिया की पर्तिक्रिया बिना विचारे दे देतें है|
युवावस्था में,में बहुत अधिक इम्पलसिव था, और में किसी से अपने मधुर सम्बन्ध बिगाड़ बैठा था, यह घटना इस प्रकार हुई थी, मेरी एक रिश्तेदार को नर्वस ब्रेक डाउन हो गया था, इन्जिनीर होने के बाबजूद मुझे मनोविज्ञान और परम्परागत में बचपन से बहुत अधिक रुचि थी, तो मनोविज्ञान में रुचि होने के कारण मैंने अपनी उन रिश्तेदार पर बीहविएर थरेपी का अधकचरा प्रयोग आरम्भ कर दिया,और उनको अपने एक मानसिक चिकत्सक के पास ले गया और साथ में मैंने अपना प्रयोग जारी रखा,और वोह ठीक हो गयीं, परन्तु उनमे एक विचत्र सा परिवर्तन हो गया,पहले उनका व्यक्तिव बहुत शांत और धेर्य वाला था,परन्तु अब वोह किसी पर भी अपनी वाणी का तीखा प्रहार करने लगीं, अब में बताने जा रहा हूँ,कैसे मेरे मधुर सम्बन्ध उनके साथ उस प्रकार के नहीं रहें, जैसे पहले थे, एक बार मेरी पत्नी को एक ऐसा स्वपन आया जिसके कारण वोह डर गयी थी, सयोंग से हमारी वोह रिश्तेदार उसी दिन आ गयीं थी,और मेरी पत्नी और उनके बीच में, उस स्वपन की बात होने लगीं,मेरी पत्नी ने उनसे अपने स्वपन का वर्णन करते हुए अपना डर उन को बताने लगी,और में बस अपना ज्ञान बखारने लगा कि स्वपनाव्स्था में जीव विचरण करता है,और कहीं पर भी चला जाता हैं, वोह कहने मुझे कहने लगीं कि इस बात को रहने भी दो,पर मुझे तो झक सवार और उस बात को बार,बार दोहराने लगा,इस पर हमारी वोह रिश्तेदार चिड गयीं और तबसे हम दोनों के मधुर सम्बन्ध बिगड़ गए |
यह मानव स्वाभाव है कि अच्छी बात तो किसी पर इतना प्रभाव नहीं डालती जितनी की गलत बात, अगर इंसान इम्पलस के प्रभाव में आकर के कोई गलत व्यव्हार या गलत बात करता है,तो उसका प्रभाव दूसरे पर तुंरत पड़ता है, कहा जाता है, अगर किसी में कोई अवगुण नहीं होता तो वोह भगवान्,कोई गुण नहीं होता तो वोह हैवान और किसी में गुण,अवगुण दोनों होतें हैं तो इंसान|
दूसरी बार में तब इम्पलसिव हुआ जब हमारी सिने जगत की तारिका शिल्पा शेट्टी पर बिग ब्रदर में जतिवादक शब्दों के साथ,दुरव्यव्हार किया गया था,उस समय मैंने एक लेख अंग्रेजी में लिख दिया " Difference between fair and Black and White Skin", हो सकता है,लोगों ने पड़ा नहीं या किसी अंग्रेज की उसपर निगाह नहीं पड़ी हो,मुझे उस लेख पर किसी प्रकार की अच्छी,बुरी टिप्पणी नहीं मिली, नहीं तो यह पूरे ब्रिटिश लोगों से सम्बन्ध बिगाड़ने की बात हो जाती|
मेरे को कहीं ये शिक्षा मिल चुकी है,अपने शत्रुओं को आर्शीवाद देना सीखो,इस बात को सदा अपने मस्तिष्क में रखता हूँ, जो कि किसी से शमा मांगने और शमा करने से अधिक कठिन हूँ, अभी लवली जी मनोविगानिक विषयों पर लिख रहीं हैं,और मानवियों विसंगतियों को दूर करने का अच्छा प्रयास कर रहीं हैं, में किसी के विषय में हस्तक्षेप नहीं करना चाहता, बस मेरा यह लेख इम्पलसिव व्यव्हार रिश्ते बिगाड़ सकतें हैं, लिखने का कारण यही था में इम्पलसिव हो गया था, और में तीखी टिप्पणी कर बैठा |
अभी लवली जी के लेख कला और मनोविज्ञान की पर्तीक्षा कर रहा हूँ, कला को एक प्रकार का कंटरोल हीसटीरीया कहते हैं, शमा मांगने में छोटे बड़े कि शर्म कैसी, बस मेरा यह लेख अपने इम्पलसिव व्यव्हार के कारण शमा मांगने के लिए था |
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10 टिप्पणियां:
क्षमा मांगने में छोटे बड़े की शर्म कैसी-सही कहा!!
मुझे आपकी किसी टिप्पणी पर कोई आपति नही है ..अतः क्षमा मँगाने जैसी कोई बात ही नही है . अगर आप मेरा लिखा लगातार पढ़ रहे हैं तब आप देखेंगे की मैंने कहीं भी "पागल " जैसे शब्द का इस्तेमाल नही किया ..मनोरोग एक सामान्य सी मानसिक दशा अथवा अवस्था में उत्पन्न सामान्य विकार है. जैसे की शारीरिक आयामों में जुकाम ..कृपया कोई दुर्भाव मन में ला पालें ..मेरा उद्देश्य जागरूकता फैलाना है किसी को निचा दिखाना अथवा अपमानित करना नही . आपने इस पर लिखा अच्छा लगा. किसी पोस्ट का लिंक दे देते तब पाठकों को आसानी होती .
सादर
लवली
भाई विनय,
आपका यह असली अपराधी भी हाज़िर है। सामाजिक मनोव्यवहार से जुड़ा सा लगता आपकी इस प्रविष्टि का शीर्षक यहां खींच लाया।
वहां भी लगा था कि आप इस प्रसंग को अन्यथा ले रहे हैं, पर प्रतिक्रिया नहीं दी।
यहां देखा तब समझ में आया कि आप की व्यथा का कारण तो यह नाचीज़ ख़ुद है। मुआफ़ी की दरकार है।
मेरे भाई, अरविंद मिश्रा जी ने वह मनोविनोद शुरू किया था जिसे और भी कई मानवश्रेष्ठों ने अपनी विनोदप्रियता का परिचय देते हुए चुटकियां भरी थी।
इसी को आगे विस्तार देने की धृष्टता हो गई।
पर उसमें व्यक्त एक कठोर सच्चाई पर ध्यान खींचने की मंशा अधूरी रह गई। अपरिपक्व मानसिक अवस्था वाले व्यक्तियों से जिस तरह आज यह समाज निपट रहा है, यानि दिमाग़ को सुन्न करने वाली दवाइयों के जरिए, इशारा उसकी तरफ़ था।
दूसरा इशारा इससे कैसे निपटा जाना चाहिए, इसके लिए था, यानि कि मानसिक परिपक्वता के उन्नयन हेतु जतन, प्रयास, कौंसिलिंग बगैरा।
आप अन्यथा ले गए। समय आपका अपराधी है।
आप एक संवेदनशील व्यक्ति लगे, इसलिए आपके यहां सफ़ाई पेश करने की इच्छा हो गई। वैसे आप भी यहां आत्मविश्लेषण ही कर रहे हैं, अतएव मेरी भी जुंबिश स्वीकारें।
शुक्रिया।
विनय आपने अपनी व्यथा कथा के साथ ही अच्छा लिखा -इस पोस्ट पर आयी टिप्पणियों को भी देखा ! सभी समीचीन हैं -मानव मन बहुत जटिल और संवेदनशील है और अनगिनत रहस्य की गुत्थियां है -आप अकेले ही नहीं हम भी भुक्त भोगी बने हैं !
समय भाई मेंने अपने उपर नहीं लिया था,बस मेरा ईशारा पूरे बलोगर समाज के उपर था,मैने तो सर्वजनहिताय के लिये लिखा था,हाँ में इमपलसिव हो गया था,और आप अपने अपराधबोध से बहार निकलिये,मेरे मन में आपके लिये और किसी और बलोगर के लिये दुर्भावना नहीं है ।
अरविन्द जी अपने इस विषय पर अपने इस मन की व्यथा को,को कहीं भी जहाँ आप उचित समझते है प्रकट कर दीजिये,विशवास के साथ कहता हूँ,आप हलका महसूस करेगें ।
लवली जी मुझे लिकं देना नहीं आता,अगर बलोग एडडरेस को लिकं कहते हैं तो मेरा इस ब्लोग का एडडरेस है, www.snehparivar.com,अगर आप मेरी इस बारे में सहायता कर सकतीं हैं,तो क्रिपा कर के करिये,धन्यवाद,और आप यह अच्छा करतीं हैं,कहीं भी पागल शब्द का प्रयोग नहीं करतीं,यह शब्द तो जो मानसिक रोग को नहीं समझते वोह लोग करतें हैं ।
जिस शब्द पर लिंक लगना है उसे हाईलाईट करिए ब्लोग्गर के एडिटर में फिर उपर लिंक लगाने का एक ओपसन है उसपर क्लीक करिए, एक बक्सा आएगा ..और जिस पेज को जोड़ना है उसका पूरा पता उस बक्से में पेस्ट कर दीजिए.बहुत आसन है ..कर के देखिए
यह सब पढने पर लगता है आप खुद झक्की हैं.
धन्यवाद लवली जी ।
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