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बुधवार, दिसंबर 29

आते हुये दिस्म्बर महिने की अन्तिम तिथी,और मध्य रात्री के बाद नववर्ष का स्वागत ऐसे करें तो कैसा है ?

रात्रिकाल का वर्ष के अन्तिम माह की मध्य रात्रि को बुड़ा हुआ वर्ष को नवजात नये वर्ष को सदा के लिये अलविदा कह कर जाता है,और इस आते हुये नववर्ष मनाने  के लिये हम लोग सुदूर देशों या अपने ही देश में यात्रा करते है, यदि हम यह सोचे कि बहुत से लोगो का तो समय एक ही स्थान पर जन्म से मृत्यु प्रन्त अपना सम्पुर्ण जीवन बिता देते हैं,उनके लिये तो नववर्ष का कोई मोल नही है,यदि हम लोग उनके होन्ठो पर मुस्कराहट और उनकी उदास आखों मे उस दिन आशा की चमक उत्प्न्न कर सकें तो कैसा रहे ? प्राय: यह शीतकालीन समय होता है, और इन लोगों के पास तन ढकने के वस्त्र नहीं है,और शीत लहर के कारण इनके हाड़ कम्पक्म्पाते है,यह बेबस मातायें,बहने बेटिया अपने फटेहाल वस्त्रॊ से, अपने तन को ढकने का असफल प्रयत्न करतीं है,इनको अगर अपने वोह वस्त्र जो हम लोग यदा कदा पुराने समझ कर उनका उपयोग नहीं करते या फेंक देते हैं,यदि इन बेबस लोगों को यही वस्त्र दे कर इनकी असफल प्रयत्न को सफल बनाने में सहयोग दें तो कैसा रहे ?
देर मध्य रात्री से बहुत  लाउडस्पीकर की तीव्र ध्वनि से प्रारम्भ करके और भोर के पहल्रे प्रहर तक के नाच गा कर हम अपना  मनोरंजन करते है, उनका भी हम सोचें जो रोगी है या उनके यहां कोई शोक है,यदि हम उनसे संवेदना नहीं रख पाते,कम से कम उनके रोग या शोक में इस उचीं ध्वनि से उनको कष्ट ना पहुंचा कर अपनी सभ्यता का परिचय दें तो कैसा रहे ? यदि ऊँची ध्वनि पर नाच गा कर नववर्ष का स्वागत करना ही चाहते हैं,तो ऐसे उपुक्त स्थान का चयन करें जिस स्थान से किसी को कष्ट ना  पहुंचे |
जब भी नववर्ष आता है, मदिरा का अनाप शनाप सेवन होता है,और लोग इसके नशे में अपना सयंम  खो देते हैं,अगर हम उन लोगों के बारे में भी किंचित सोचे जिनको दूषित जल पीने के लिए प्राप्त हो रहा है, और जो अनेक जल जनित रोगों को उत्पन्न कर रहा है,उनके बारें में भी ध्यान दें तो कैसा रहे ? हजारो,लाखों करोड़ों इस मदिरा के सेवन पर व्यय कर देते हैं,यदि हम उनके बारे में भी सोचे जो  आज कुछ धन जुटा पायें हैं,और कल कैसे जुटाएंगे उसकी चिंता है, उनकी थोड़ी आर्थिक सहयता कर दें तो कैसा रहे ? किसी को भी विदर्भ के किसानों की तरह कर्ज के बोझ के कारण आत्महत्या ना करना पड़े |
यदि हम लोग अत्यधिक  भोजन लेकर और अन्न देवता को फ़ेंक कर माँ अन्नपूर्णा का अपमान ना करके,उन लोगों के बारें में भी किंचित ध्यान दें उन लोगों का जो भूखे पेट रह कर अपनी दिन और रात बिता देतें हैं,कोई विवश माँ अपने नवजात शिशु को भूखी रह कर अपना दूध पिला रही है,उसके बारे में सोचे तो कैसा रहे ?
आखिर कार हमारा यह भारतवर्ष दया,दान,सहनशीलता,क्षमा इत्यादि गुणों के लिए विख्यात था,जो गुण अब अब धूमिल होते जा रहे हैं,या समय की गर्त में कहीं खो गएँ हैं,उन को पुन: जीवित करें तो कैसा रहे ? राष्ट्र,जाती,प्रान्त और भाषा का विवाद मिटा  कर विश्व बंधुत्व की भावना को पुन: जीवित करें तो कैसा रहे ?
व्यावहारिक क्रियाओं के लिए यदि कुछ किसी को सबक सिखाना भी पड़े,तो विषधर सर्प की भांति फुफकारना ना छोड़ें,परन्तु विष से आघात ना करें |
सब का नववर्ष सब प्रकार की खुशियाँ देने वाला हो | 

गुरुवार, दिसंबर 16

बिहारी जी की शरण में (भाग २)

गतांक से आगे
फेसबुक का सिलसिला तो चलता ही रहेगा,अभी मैंने फेसबुक का जो खाता फकीरा.चन्द के नाम से बनाया था,जैसे राजीव जी की मंत्रणा मुझे टिप्पणी के रूप में मिली थी,उस पर विचार करके उस खाते को अस्थायी रूप से बंद कर दिया है,और उसके बाद भी जो मेरा फेसबुक का खाता vinay532007@gmail.com के नाम से है,इस खाते को तुरंत खोल कर देखा,तो वोही फिशिंग की समस्या,फेसबुक को फकीरा चंद वाले खाते में,यह भी बता दिया है, कि मैंने इस खाते को क्यों अस्थायी रूप से बंद किया है, राजीव जी फकीरा वाले खाते में,मैंने स्वयं को अपना मित्र बना रखा है,और जब में फकीरा वाला खाता खोलता हूँ,में स्वयं को और अपने मित्रों को उसमें पाता हूँ, वोह मेरा फकीरा वाला खाता सुचारू रूप से चल रहा है,सम्भवत: आपने मेरा फकीरा वाला खाता देखा होगा,एक दो दिन बाद देखेंगे ऊंट किस करवट वैठेगा, और फेसबुक द्वारा बतये हुए,एंटी फिशिंग में रिपोर्ट भी
दे दी है, इस मसले को तो छोड़ते हैं बिहारी जी के पास जैसा उचित समझेंगे वोह करेंगे |
 अब वोह समय प्रभु कृपा से आ ही गया,कि उन सज्जन की कहानी बताऊँ,जिनोहने अपने को सम्पुरण रूप से बिहारी जी की शरण में छोड़ दिया है, मुझे तो उनके सम्पुरण व्यक्तिव के विरोधाबस ने आश्चर्य में डाल दिया है,वोह सज्जन उसी संस्था में एक उच्च अधिकारी के रूप में काम करते थे जिसमे में था मोदीपोन मोदीनगर में , क्योंकि में तो तकनिकी बिभाग में था,परन्तु वोह थे संस्था के संचालन बिभाग में,तो यह तो ज्ञात नहीं कब उनकी मोदीपोन संस्था को छोड़ने की अवधि आ गयी, हाँ उनका एक दम शानदार व्यक्तिव भौतिक रूप में,शानदार वस्त्र उनके शरीर पर,और संस्था के द्वारा दी हुई,ड्राइवर सहित एक एम्बेसेडर गाड़ी,जब उनकी संस्था छोड़ने की अवधि आयी,तो वोह और मालिकों के द्वारा अनेको प्रकार के प्रलोभन देने के बाद भी और संस्था को सेवा नहीं देना चाहते थे,उनका यही कहना था "अब तो में जाऊंगा गोवर्धन बिहारी जी की शरण में ",मालिक बोले फिर तो तुम्हे कोई पहचानेगा नहीं",उनका उत्तर "यही तो में चाहता हूँ", यह लेख लिखते,लिखते मुझे मीराबाई जो की एक राज कुमारी थीं,उनके पद की पंक्तिया याद आ रहीं हैं,जिनमे से प्रमुख तो यही है,"जिसके सिर पर मोर मुकुट है,मेरा तो पति सोई", और "लोक लाज खोई संतन के ढिग बैठ के",हैं तो बहुत सारी पर इस बात को यहींकह कर  समाप्त करता हूँ, "ऐसी लगी लगन मीरा प्रभु के गुण गाने लगी",एक राजकुमारी मीराबाई जिन्होंने सब कुछ त्याग कर एक सन्यासिन हो गयीं,संभवत: ऐसा ही उनका भाव था, और स्वामी परमहंस योगानन्द की यह पंक्तिया याद आ रही हैं,जब हम इस जग में आते हैं,तो हमको कुछ चीजे अस्थायी रूप से प्रयोग करने को दे दी जातीं हैं,और फिर ले लीं जातीं हैं, महान योधा सिकंदर जिसने दुनिया पर विजय प्राप्त की थी,उसने यह इच्छा जाहिर की थी,मेरी मृत्यु के समय पर मेरे दोनों हाथ ताबूत से बहार निकाल कर रखना,जिससे जग को यह पाता चले की में खाली हाथ आया था और खाली हाथ जा रहा हूँ, यह मैंने इस लिए उदहारण दिए कि संभवत: उनके मन में यहीं भाव होंगे,उन्होंने तो गोवर्धन की परिक्रमा के रास्ते  में अपना घर बना लिया था,और अपनी पत्नी के साथ वहाँ रह रहें हैं,चूँकि मेरे पिता जी मथुरा के हैं,इसलिए मुझे गोवर्धन जाने का और उनसे मिलने का सोभ्याग्य मिला,और उनके वस्त्र अस्त,व्यस्त थोड़ी,थोड़ी दाड़ी बड़ी हुई,और उनके घर में ही उनका साधना कक्ष, और हमारा सौभाग्य था,उन दिनों उनका मौन ब्रत नहीं था,नहीं तो वोह माह में १५ दिन का मौन ब्रत रखते हैं, अपने घर पर उन दोनों पति,पत्नी ने हमारा सत्कार घड़े के पानी पिला कर बाकि तो चाय इत्यादि पिला कर किया, बातों,बातों में पता चला कि उन्होंने फ्रिज रखा था, लेकिन एक दिन वोल्टेज अधिक आने पर उनका फ्रिज ख़राब हो गया, उन लोगों ने यह सोच कर फ्रिज ठीक नहीं करवाया,कि बिहारी जी नहीं,चाहते कि फ्रिज रखे ,उन लोगों ने दूरदर्शन भी रखा था,उसको बन्दर तोड़ गये,और उन्होंने यही सोच कर दूरदर्शन  ठीक नहीं करवाया बिहारी जी नहीं चाहते दूरदर्शन रखें बस केवल एक ट्रांजिस्टर ही है उनके पास, उनका कहना है कि यह इसलिए रखा है कि बहार का समाचार मिलता रहे और उनकी पत्नी की प्रशंसा करनी पड़ेगी कि वोह भी उनका साथ बखूबी निबाह रहीं हैं,यदा कदा वोह अपने बच्चो के पास चले जाते हैं,या उनके बच्चे उनके पास आ जातें, उनके घर के पास ही मोदिभावन हैं,जो भी उन लोगों के निमंत्रण आते हैं, यही सोच कर मोदिभावन के कर्मचारी उनको नहीं देते, कहीं मौन ब्रत में तो नहीं है |
बस उनकी आस्था के बारे में बात करके इस लेख को पूरण विराम देता हूँ, वोह स्वयं दिल के रोगी हैं, और एक बार वोह और उनके बच्चे पास ही बरसाने में,राधा रानी के दर्शन करने आये थे,वोह इतनी अधिक सीडिया चढ़ कर राधारानी के मंदिर में हिर्दय रोगी होते हुए भी सबसे पहले राधारानी के मंदिर में पहुँच गये,और कहना यह था आप एक कदम स्वयं चलते हो और प्रभु दस कदम चलाते हैं |

समाप्त

राधे,राधे |

मंगलवार, दिसंबर 14

(प्रथम भाग) बिहारी जी की शरण में |

कुछ व्यस्तताओं जैसे, फेसबुक की फिशिंग समस्या के चक्रवात से निकलने का प्रयत्न, जिसको बार,बार सुलझाने का असफल प्रयत्न क्योंकि इस फेसबुक में मेरे 68 मित्र हैं,और फेसबुक कहता है,"There seems some suspicious activity,your account has been temporary suspended due to pishing", इस फिशिंग का अर्थ तो मुझे पहले ज्ञात नहीं था, परन्तु इस महान फेसबुक ने मुझे कोई सहायता तो नहीं दी, परन्तु मुझे इस फिशिंग का का ज्ञान अवश्य दिया है, जिसका अर्थ मेरे अंतर्मन को आहात कर के यह ज्ञान दिया है, फिशिंग का अर्थ होता है,किसी ने बिलकुल फेसबुक लगने वाला साईट मेरे नाम से बना लिया है,यह अवश्य है,मैंने एक फेसबुक का खाता, fakira.chand@yahoo.com के नाम से अवश्य बनाया है,और इसमें में, श्री राजीव कुमार कुलश्रेष्ठ जी के हिंदी में लिखे हुए अध्यात्मिक लेखों का अंग्रेजी अनुवाद करता हूँ,फेसबुक के शीर्ष अधिकारीयों क्या यही मेरा अपराध है ?,में तो एक साधारण सा व्यक्तिव रखने वाला साधारण व्यक्ति हूँ,औरआप लोगों ने तो मुझे असाधारण समझ कर,इस फिशिंग रोग से अवगत कराया है,और भाई लोगों मेरे मेल में, फेसबुक वालों लोगों की प्रार्थना भेज कर मेरे जले पर नमक तो नहीं छिडको की में असहाय पर कटे पंछी की तरह तडपता रहूँ, सहयता ना दो तो यह काम ना करो, बार,बार मेरा चित्र दिखा कर पूछते हो,क्या यह आप हैं,और आप लोग जो,जो पूछते हो उसका उत्तर में हीं तो देता हूँ, और इस पहचान का यही परिणाम निकलता है,वोही धाक के तीन पात,संतोषजनक उत्तर पा कर फिर वोही वाक्य दोहराना और इस ब्लॉग का स्वामी भी में हूँ, इसमें में भी मेरा वोही चित्र है, जो फेसबुक में है, मेरे पास आधुनिक डिजिटल केमरा तो नहीं है, बस वोही चित्र होतें हैं,जो हमारे बेटी,दामाद खींच जाते हैं,और उनका भी आपकी फेसबुक में खाता है,इससे अधिक क्या सबूत
दूं ? आप फिशिंग रोग से ग्रस्त हो, यह लेख लिखते,लिखते दो बार, विद्युत् प्रबाह रुक गया था,लेकिन वोह तो फिर सुचारू होकर उसने मेरे लेख के प्रबाह को वेग दे दिया,परन्तु फेसबुक वालों जब हम भारतियों का किसी समस्या का हल नहीं निकलता तब हम कहते हैं,अब समस्या का हल प्रभु ही निकालेंगे,और मजबूर होकर हम लोग अपने मुखारविंद से श्री रामचरितमानस की यह चोपाई निकालते  हैं|
"होई है सो रामराची राखा |"
को करी तर्क बड़वाही शाखा || "
मेरे मित्रगनो ने मुझे यह सलाह दी दूसरा फेसबुक का खाता बना लो,फेसबुक वालों अब में यह ना करुँ तो क्या करुँ ?
 मित्रो एक तो लेख ना लिखने का कारण उपरोक्त था कारण था ,और दूसरा कारण यह है,कि मैंने एक अपना  वेबसाइट "www.vinay-sharma.qapacity.com" बना लिया है, और वोह साईट अपनी सबसे अच्छी मित्रों में से श्रीमती सरोजिनी साहू जी,जो कि एक प्रज्ञात लेखिका हैं,और मेरे मनोबल को दिशा देतीं हैं,उनके काम से श्री गणेश किया है और उस वेबसाइट पर प्रयोग करता रहा, "आज मुझे राजीव जी का मेल मिला" विनय भाई,क्या बात है,आप कहीं नजर नहीं आ रहे और ना ही कोई लेख लिख रहें हैं ",उनको तो मैंने उत्तर दे दिया था, कहते हैं ना,जब बीज को उपजाऊ भूमि मिलती है,तो बीज अंकुरित होता है,यही कारण है,जिस कारण मेरे मन में लेख लिखने का बीज
अंकुरित हो गया,नहीं तो हम तो फेसबुक के गम में बैठे हुए थे,और छोड़ दिया था,इस फेसबुक की समस्या को बिहारी जी की शरण में कह कर |
 में तो सब देवी,देवताओं,म्हापुरशों को मानता हूँ, पर इस बिहारी जी की शरण में मुझे क्यों याद आया,अगले लेख में,बहुत से लोगों को टिप्पणियाँ प्राप्त करने का मोह होता है,में भी इस रोग से अछूता नहीं हूँ,नहीं मिलती तो बिहारी जी की शरण में, अगले लेख में,उस व्यक्ति के बारे में लिखूंगा,जो कि मोदीपोन संस्था में एक बहुत ही बड़े अधिकारी थे, जब वोह अपनी नौकरी छोड़ कर जाने लगे तो उनको मालिकों ने अनेक प्रकार के प्रोलोभन दिए,यह भी कहा कोई तुझे जानेगा नहीं, लेकिन वोह नहीं रुके और उनका उत्तर था,यही तो में चाहता हूँ,और वोह अपनी पत्नी के साथ चल पड़े गोवर्धन और गोवर्धन कि प्रक्रिमा के रास्ते में,अपना आशियाना बना लिया है,और वोह मियां,बीवी दोनों गोवर्धन में सन्यासी जीवन व्यतीत कर रहें हैं |

बस इस लेख के इस प्रथम भाग का समापन यही कह कर करता हूँ |

"राधे,राधे बोले चले आएंगे बिहारी "
राधे,राधे |
                                                                                               (क्रमश: कब ? यह ज्ञात नहीं ?)

गुरुवार, अगस्त 5

सच्चे साधू संत का संसर्ग अवगुणों को गुणों मे परिवर्तित कर देता है |

मेरे को  इस ब्रह्माण्ड के लौकिक और अलौकिक रहस्यों की जिज्ञासा सदेव रही है, पड़ाई तो विज्ञान की की है, भौतिक शास्त्र, रासयन शास्त्र और कुछ सीमा तक जीव और वनस्पति विज्ञान, स्नातक का अध्यन किया टेकनोलिजिकल  इंस्टिट्यूट ऑफ़   टेक्सटाईल्स भिवानी से मतलब की वस्त्र तकनीक जिसमे थोड़ा यांत्रिक और विद्युतीय ज्ञान भी  दिया दिया  जाता है, मुख्य उद्दशेय तो वस्त्र तकनीक का होता है,और इसमें भी तीन भाग होतें हैं, कपड़ा बनाने की तकनीक पहला भाग,कपड़ा रंगने की तकनीक दूसरा भाग,और सिंथेटिक कपड़ा बनाने की तकनीक तीसरा भाग, जब मेंवस्त्र तकनीक का  सनातक हो गया,मुझे नौकरी मिली सिंथेटिक पोलीइस्टर का रेशा या ऐसे समझिये रुई बनाने के संसथान में, जिसमें रसायन विज्ञान का अधिक उपयोग होता है, बाकि ऊपर लिखी यांत्रिक और विद्युतीय  तकनीक तो काम में आतीं ही हैं,और क्रमश उन्नति होती गयी और प्रारंभिक पद से लेकर उच्चतम पद पर पहुँच गया था,और इस बीच में मेने कुछ संसथान भी बदले और पोलीइस्टर और नाईलोन का धागा बनाने के संस्थानों में काम किया  ,यहाँ पर एक रूचिकर बात बताता हूँ, न्यूयोर्क और लन्दन में एक साथ इस धागे का एक साथ अविष्कार होने के इस धागे का नाम नाईलोन पड़ा |
काम के कारण  मुझे नई,नई मशीनों के बारें में अध्यन करना पड़ा,और देश विदेश में मशीनों से  सम्बंधित कार्यों के कारण भ्रमण करना पड़ा, और सरकारी तथा गैर सरकारी कार्यप्रणाली को समझना पड़ा  क्योंकि यह संसथान चलाने के लिए आवशयक था, संभवत: इसी कारण जीवन के 56 बसंत देखने के बाद भी नई,नई जानकारी लेने की जिज्ञासा बनी रहती है,और इस 6 अगस्त को 57 वें बसंत का प्रारंभ हो जायेगा,और में भी उन लोगों की कतार में हूँ, जो मानते हैं आयु तो मात्र एक संख्या है, और इसी कारण मैंने अपने 50 वर्ष की आयु में,कम्पुटर सॉफ्टवेर सीखा |
यह तो सब रहा वैज्ञानिक ज्ञान के बारें में, अध्यातम के बारे में जानने की ललक तो प्रारम्भ से ही थी, इस कारण मैंने,    अनेकों धार्मिक,अध्यात्मिक पुस्तकों का अध्यन किया,बहुत से सिद्ध और साधारण मंदिरों,गुर्ददवारों,चर्चों में भी गया, बहुत से धर्मगुरु,पंडितो,संतो, सड़क के और दूसरे प्रकार के साधुओं तथा ,तांत्रिकों से मिला बस ओझाओं को छोड़ कर, इस कारण बहुत से कड़वे,मीठे अनुभव भी हुए, एक तांत्रिक मुझे ऐसा मिला,जो प्रारम्भ में तो मेरे मन को भा गया,परन्तु उतरोतर मुझे उसके असली रूप का क्रमश : पता चलता गया,उसको लोग गुरु जी कहते थे,और वोह हमारी कोलोनी के एक मंदिर में,हर रविवार को भैरो का दरबार लगाते थे, तथा मंगलवार को हनुमान जी का चोला चडाते थे, और उसके लिए उसको गुरु जी कहने वाले में समदर्शिता नहीं थी और में भी समदर्शिता नहीं वाले की श्रेणी में आता था , क्यों पड़ा उसके चक्कर में यह कभी बाद में लिखूंगा, और एक बार मैंने उनसे कुछ प्रश्न किया,और उसने मुझे ऐसा फटकारा की में तो चार दिन लगातार सो ही नहीं पाया, और विक्षिप्त अवस्था में पहुँच गया, इससे पहले माँ अम्बे का ध्यान किया करता था, किसी समय मैंने योगदा सत्संग सोसाइटी की सदयस्ता ली थी,इस कारण परमहंस योगानंद जी के जीवनउपयोगी  एक अध्याय हर माह आता था,और में उसके अनुसार जीवन का अनुसरण करता था, लेकिन उस फटकार के कारण में विक्षिप्त अवस्था में पहुँच गया था,ना माँ अम्बे का ध्यान,ना योगानंद जी अध्याओं के अनुसार जीवन का अनुसरण,ना नहाना ना वस्त्रों का ध्यान ऐसी अवस्था थी वोह  |
बहुत से मनोचिक्त्सक को दिखाया कोई विशेष लाभ नहीं मिला,और यह मुझे ज्ञात नहीं कैसे संभला और माँ अम्बे का ध्यान करने लगा और जैसे एक आम इन्सान को जीवन बिताना चाहिए वैसे विताने लगा |
रुचि तो अध्यातम और रहस्यों को जानने में सदा ही रही है,और नेट पर राजीव जी जो साधू जीवन व्यतीत कर रहें हैं,उनके आजकल में लेखों का,हिंदी से अंगेरजी अनुवाद कर रहा हूँ, उनके एक लेख काली चिड़िया का रहस्य पर मैंने एक टिप्पणी दी थी,और राजीव जी मेरी टिप्पणी का आशय समझ गये,और उसके वाद उन्होंने मेरे से उनके लेखों का अंगेरजी अनुवाद करने को कहा, और जो में www.spiritualismfromindia.blogspot.com में कर रहा हूँ, और उनसे मेरी जिज्ञासा शांत हो रही है, आयु में तो मुझ से बहुत छोटे हैं, लेकिन में जानकारी के बारें में छोटे,बड़े में भेदभाव नहीं करता, यह आवश्यक नहीं जिसका ज्ञान मुझे नहीं हैं,उसका ज्ञान मेरे से छोटे में ना हो,और उनके मार्गदर्शन के कारण,मेरे मन पर बहुत अच्छा प्रभाव पड़ रहा है,उन्होंने फ़ोन पर अपने गुरु जी से भी बात करवाई है,उनसे तो फ़ोन पर यदा,कदा बात होती है,और साधू का अर्थ में सज्जनता भी है, जब भी में उनको फोन करता हूँ,वोह मेरा फोन काट कर स्वयं फोन करते है, और जो छोटी,छोटी बातें जैसे,अचानक बिजली का चले जाना,नेट से संपर्क टूट जाना,जाम में फँस जाना,जिनपर में झल्ला जाता था, अब राजीव जी के मार्गदर्शन के कारण शांत और सयंत रहता हूँ |
इसके अतिरिक्त निर्भीकता भी आ गयी है, कुछ एक बार मुझे अपने विवादित लेखों पर,व्यंगात्मक टिप्पणियाँ और उन बातों पर जो मैंने स्वयं देखा है,और उस पर लिखा है,और मुझे टिप्पणियाँ ऐसे सदस्यों से मिली हैं,जिन्होंने मेरी बातों का पुष्टिकरण किये विना ,अपने व्यक्तित्व के अनुसार टिप्पणियाँ दीं हैं, एक दो मनोवेग्यानिक से संपर्क में रहने के कारण, उनके दी हुईं टिप्पणियों में उनका व्यक्तिव कुछ अंश तक में,पहचान सकता हूँ, पहले इस प्रकार की व्यंगात्मक टिप्पणियों के कारण मुझे दुःख होता था, परन्तु अब कोई असर नहीं होता है, यह भी राजीव जी के मार्गदर्शन के कारण ही है, और इसी माह की  7 तारीख को मेरा हर्निया का  ओपरेशन हैं, जीवन में कोई ओपरेशन नहीं हुआ है,परन्तु इस सबसे छोटे ओपरेशन के कारण मुझे भय लग रहा था, और अब वोह कम होता जा रहा है,यह भी राजीव जी के कारण,और जिन लोगों ने मेरे से सहानभूति जताई,उनका आभार प्रकट करता हूँ |
ओपरेशन के बाद जो लेख लिखने के लिए राजीव जी ने कहा है,वोह लिखूंगा,और इस को जय गुरु देव की कह कर समाप्त करता
 हूँ |
जय गुरु देव की 

मंगलवार, जुलाई 13

आज कल में श्री राजीव कुलश्रेष्ठ जी के लिखे हुए अध्यात्म के लेखों का अंग्रेजी में अनुवाद कर रहा हूँ |

हमारे देश में अध्यात्म भरा पड़ा है, श्री राजीव कुमार कुलश्रेष्ठ जी ने मेरे इसी ब्लॉग पर मेरी एक पोस्ट पर मेरे से अपने लिखे हुए अध्यात्म के लेखों का हिंदी से अंग्रेजी में अनुवाद करने के लिए पूछा था,और में इस कार्य के लिए सहर्ष तैयार हो गया, वोह फेसबुक पर हैं,और मैंने फेसबुक पर उनकी अच्छी खासी अंग्रेजी देखी है संभवत यह साधू स्वाभाव ही है किसी को वोह कार्य देना जो की साधू कर सकतें हैं,साधू का शाब्दिक अर्थ ही सज्जन है  बहुत से अध्यात्म के शब्दों का में  अंग्रेजी में अनुवाद करने में सक्षम नहीं हूँ,परन्तु प्रयत्न तो कर ही सकता हूँ, और उन्होंने इसमें त्र्यम्बक जी और निनाद जी को इस ब्लॉग www.swpiritualismfromindia.blogspot.कॉम पर लिखने की अनुमति के लिए कहा था,जो मैंने दे दी है, त्र्यम्बक जी नुयोओर्क में  सॉफ्टवेर इंजिनियर हैं, और राजीव जी ने बताया था वोह भी अध्यात्म पर लिखतें हैं,में तो अध्यात्म के विशाल सागर में एक छोटी सी बूँद के समान हूँ, मेरी छोटी साली ने अमरीका से इमुनोलोजी में डॉक्टरएट करी है, और वोह जब अमरीका में पड़ रही थी,तो वोह भी अध्यात्म की बहुत सी सामग्री हमारे इस देश से ले जाती थी,में कोई प्रचार नहीं कर रहा हूँ,और ना ही किसी पर किसी प्रकार का दवाब हैं, आज कल बिजली की आंख मिचोली के कारण अभी तक राजीव जी की दो पोस्टों का ही अंग्रेजी में अनुवाद कर पाया हूँ, हाँ आप माने या ना माने बहुत बार मेरी अंग्रेजी की स्पेलिंग में गलती एक बार होती हैं,और जब पुन: में सोचता हूँ स्पेलिंग यह होनी चाहिये और में लिख देता हूँ तो सही पाता हूँ,फिर भी संभवत: कहीं ना कहीं स्पेलिंग में त्रुटी रह जाती होगी |
यह लिखते समय मुझे स्मरण हो रहा है, श्री रामकृष्ण परमहंस कोई विशेषपड़े लिखे नहीं थे,परन्तु उनको किसी ऐसे व्यक्ति की आवश्यकता थीजो की  रामकृष्ण परमहंस को इस प्रकार के शिष्य विवेकाननद जी के रूप में मिले,जिनोहने विश्व में रामकृष्ण परमहंस जी की शिक्षा का प्रचार,प्रसार किया था |
इसी प्रकार अगर जिन्होंने ने परमहंस योगानंद द्वारा लिखी हुई पुस्तक योगी अमृत्कथा पड़ी हो तो उनको ज्ञात होगा की,विश्व में परमहंस योगानंद जी ने हमारे यहाँ के अध्यातम का विश्व में प्रचार किया था, योगानंद जी ने तो मानव जीवन के परतेक पहलुयों का बारे में प्रचार किया था |
अधिकतर लोग समझते हैं,की पश्चिमीं देशों में भोतिक्वाद हैं,और सच भी हैं,वहाँ भोतिक्वाद की अधिकता है,परन्तु ऐसे लोग भी हैं,जो भारत के अध्यात्म के बारें में समझना और अपनाना भी चाहते हैं, इस्कोन मंदिर तो इस बात के जीवंत उदहारण हैं, हाँ बहुधा पश्चमी लोग यहाँ आकर के सही मार्गदर्शन के अभाव में भटक भी जातें हैं,जैसे कि सन 1970 के दशक में,हिप्पियों का युग आया था,नशे,सेक्स को ही यहाँ का अध्यात्म समझने लगे, तरह,तरह की नशे करते थे,तरह,तरह की नशे की गोलियां लेते थे,और इन्ही भोग विलास को अध्यात्म समझते थे|
 बस मेरा कहना येही हैं,अगर कोई विदेशी भाई,बहिन जो आप लोगों के संपर्क में हो ,हमारे देश का अध्यात्म समझना या अपनाना चाहे तो,राजीव जी के लिखे हुए लेखों का मेरे द्वारा किया हुआ अंग्रेजी अनुवाद पड़ सकता है |
सभी धर्म चाहे,सिख,हिन्दू,मुस्लिम,बोध,जैन,इत्यादि अच्छी,अच्छी बात ही सिखाते हैं,उनका आदान,प्रदान भी किया जा सकता है |

बस इस लेख को भारतीय हिन्दू अध्यात्म के अनुसार जय,जय श्री गुरुदेव जैसे वाक्य से समाप्त करता हूँ |
क्योंकि यह हिन्दू अध्यात्म पर आधारित है,इसलिए जय गुरुदेव जैसे वाक्य से समापन कर रहा हूँ, वाकी सब धर्मो के लिए मेरे
माँ में सम्मान है |
जय गुरुदेव की

रविवार, जून 27

कठिन समय में पड़ोसियों ने भी साथ दिया |

 कहा जाता है, जो " मित्र कठिन समय में काम आता है,वोही सच्चा मित्र है", यह बात हमारे पड़ोसियों ने भी चरितार्थ करी , मेरी पत्नी की दोनों आँखों में मोतियाबिंद हो गया था, और मेरी पत्नी गाजियाबाद के एक स्कूल में पढाती है, उसके आँखों के मोतियाबंद का पता उस स्कूल की सालाना  गर्मियों की छुट्टी होने से कुछ ही दिन पहले पता चला था, डाक्टर साहब को दिखाया था,तो डाक्टर साहब बोले इसका, "ओपरेशन करना पड़ेगा", यह पूछने पर कि कब ओपरेशन करवाएं, वोह आँखों का निरिक्षण तो कर ही चुके थे, बायीं आंख में कम मोतिया था और दायीं आंख में अधिक, वोह बोले,अभी मोतिया अधिक नहीं बड़ा आप की जब इच्छा हो तब करवा लें, स्कूल का काम काज तो बायीं आंख के साहरे चल रहा था,और स्कूल की सालाना गर्मियों की छुट्टियों में एक माह बचा था  |
मेने मेरा समस्त वाली अलका जी से इसके लिए देसी इलाज पूछा था,तो उन्होंने मेरे ब्लॉग की पोस्ट "यह मेरी शतकीय पोस्ट है",उस पर उन्होंने देसी इलाज बता दिया था जिसमे ओपरेशन की आवश्यकता भी नहीं पड़ती, परन्तु उन्होंने लिखा था,तीन महीने में आँखों में उतरा मोतिया समाप्त हो जायेगा, एक तो समय स्कूल की गर्मियों की सालाना छुट्टियों के बाद स्कूल खुलने में एक महिना रह गया था, और दूसरा कि बहुत से लोग देसी इलाज के लिए कम ही सोचते हैं,और देसी इलाज इस प्रकार के रोग में करवाना नहीं चाहते हैं, मेरी पत्नी इस का  में अपवाद नहीं है, जबकि मेरे किसी रोग की चिकत्सा के बारे में अलका जी ने मुझे बताया था,और उस चिकत्सा से मुझे लाभ हुआ था, इसलिए स्कूल की गर्मियों की छुट्टी के समय मोतिया के ओपरेशन के बारे में निर्णय लिया गया,बायीं आंख का पहले और उसके तीन चार दिन के बाद दायीं आंख का |
 हमारी काम वाली की लड़की की शादी तय हो चुकी थी,जिसके बारे में मेने इसी ब्लॉग स्नेह परिवार में लिखा भी है, इसलिए उसने अपनी लड़की की शादी के कारण एक माह की छुट्टी ले ली थी,और विकल्प में अपने स्थान पर किसी और कामवाली  को लगा गयी थी, ऑपेरशन भी इसी माह में होना था, विकल्प में लगी काम वाली काम करने का काम करने वाली को दोनों समय का खाना बनाना भी था, जो कि पहली काम वाली करती थी, हम दोनों के जीवन की व्यस्तता तो रहती है,और में व्यस्त ना भी रहूँ मुझे भोजन बनाना नहीं आता है,बस चाय,कोफ़ी,सेंडविच बनाना और डबल रोटी के स्लाइस सेकना आता है, बाकि|कुछ नहीं आता |
 खैर स्कूल की गर्मियों की छुट्टियों में 24 मई को पत्नी की वायीं आंख के ओपरेशन का निर्णय हुआ था,हमारी बेटी का जन्मदिन 23 मई को होता है,इसलिए बेटी के जन्मदिन के एक दिन बाद वायीं आंख के ओपरेशन का निर्णय हुआ था,हमारे बेटी दामाद और उसके दोनों छोटे बच्चे आ चुके थे, 24 मई को मेरी पत्नी की बायीं आंख का ओपरेशन हुआ, अब डाक्टर साहब ने आंख का ख्याल रखने के लिए कुछ निर्देश दिए थे, जैसे मूह नहीं धोना, खाना नहीं बनाना क्योंकि खाना बनाते समय धुआं आंख को हानि पंहुचा सकती है,ओपरेशन के समय में,हमारे दामाद और बेटी ओपरेशन थियटर के बहार ही बैठे हुए थे, और ओपरेशन के बाद मेरी पत्नी की आंख के ऊपर लगी हुई पट्टी एक दिन बाद खुलनी थी, और एक दिन बाद मतलब कि 25 मई को मेरी पत्नी की आंख की पट्टी खुली,और वोह ख़ुशी से चीख पड़ी,कितना अच्छा दिखाई दे रहा है,और उसके अगले दिन यानि कि 26 मई को उसको बायीं आंख से कुछ नहीं दिखाई दे रहा था,और वोह रोने लगी,डाक्टर को दिखाने गए तो उन्होंने अच्छी तरह से बायीं को आंख को चेक किया और बोले कोई घबराने की बात नहीं है,केवल सूजन आ गयी है,इसलिए दिखाई नहीं दे रहा है,और उस दिन हमारी बेटी ने दिन और रात का खाना बनाया था,और वोह जो विकल्प में लगी हुई कामवाली थी उसने देख लिया हमारी बेटी को खाना बनाते हुए देख लिया,अभी तक तो वोह विकल्प में लगी हुई कामवाली, घर का सारे काम के साथ खाना भी बना रही थी,और वोह काम छोड़ कर चली गयी |
समस्या यहाँ से प्रारम्भ होती है,बाकि तो सारा काम हो सकता था,परन्तु खाना बनाना मुझे तो आता नहीं,और बेटी भी कितने दिन रहती वोह भी एक सप्ताह रह कर चली गयी, अपने घर के सामने रहने वाली पड़ोसन को बताया तो उसने बताया जहाँ वोह दूध लेने जाती है," उसके सामने वाले लडको को खाने  डिब्बा आता  है" , और उसने हमें प्रयत्न करके उस डिब्बे वाले का कार्ड ला कर दिया,हमने उस डिब्बे वाले से संपर्क किया तो खाने की समस्या तो समाप्त हो गयी थी, लेकिन उस डिब्बे वाले के घर में विवाह होने के कारण,हम को पहले ही  सूचित कर दिया गया था,5 दिन खाना नहीं आयगा,वोह वोही भोजन की समस्या मूह बाएं खड़ी थी, रोज,रोज बाजार से खाना लाना तो बहुत महंगा पड़ रहा था,तो एक और हमारी पड़ोसिन जिसका बीयूटी पार्लर भी है,उसने 5 दिन हम दोनों को सुबह का नाश्ता,दिन का तथा रात का भोजन तो कराया ही, और उसके साथ क्योंकि डाक्टर साहब ने यह भी कह रखा था,"अगर मेरी पत्नी सिर के बाल धोय, तो पीछे करके",तो उसने जब,जब मेरी पत्नी को आवश्यकता पड़ी तो उस बीयूटी पार्लर वाली ने मेरी पत्नी के सिर के बाल भी धोय,एक दिन तो दोनों हमारी पड़ोसिने रात का खाना बना लायीं |
अभी बायीं आंख को ओपरेशन हो चुका था,दायीं आंख का ओपरेशन होना बाकि था,बायीं आंख के हादसे के बाद मेरी पत्नी ने किसी पंडित से पूछा तो उसने कुछ बताया,जो मैंने कर दिया था,बायीं आंख ठीक हो चुकी थी,आंख का मामला था,में भी थोड़ा डरा हुआ था,और मेने डाक्टर साहब से पूछा,कि कभी,कभी मोतिया के ओपरेशन के समय आंख में लगाया हुआ लेंस अन्दर चला जाता है,डाक्टर साहब जो कि फेलो ऑफ़ रेटिना सोसाइटी से हैं,उन्होंने उस बारे में डरोईंग बना कर     मुझे अच्छी तरह से समझा दिया था,और इन दिनों गत्यात्मक ज्योतिष वाली संगीता जी दिल्ली आयीं हुई थी,अविनाश जी से मेने उनका संपर्क नंबर लिया  उनके बारे में तो पूछा नहीं,जो कि मुझे बाद में अशीशीटता लगी, और अपनी पत्नी के बारे में पूछने लगा,और वोह वोली गृह इत्यादि सब ठीक है,ओपरेशन करा लीजिये,और 1 जून को उसकी दायीं आंख का सफल ओपरेशन हो गया, अब तो
डिब्बे का भोजन आ रहा था, नहीं तो मुझे विश्वास है,उस समय भी पडोसी साथ देते |
पड़ोसियों ने साथ दिया 

सोमवार, जून 14

किसी की बात सुन कर उसको भावनात्मक सुख दिया जा सकता है |

सुख प्राय: तीन प्रकार के होतें है, शारीरिक,मानसिक और आत्मिक और भावनातमक, भावनात्मक सुख  ही आत्मिक सुख है, प्राय: लोग किसी के शारीरिक कष्ट में व्यक्ति विशेष का साथ देते हैं,और उसकी सहायता करते हैं, और इस प्रकार से उस व्यक्ति विशेष को शारीरिक सुख अधिक, और उससे कम मानसिक सुख मिलता है, और उसी व्यक्ति के लिए जैसे आज कल प्रचलन है, अगर कोई बीमार है,उसके लिए फूलों का गुलदस्ता या फल इत्यादी लेकर जाते हैं, तो उसको मानसिक सुख के साथ आत्मिक सुख भी मिलता है,यही है भावनातमक सुख | अब अगर किसी में कुछ देने की सामर्थ नहीं हैं,और वोह उस व्यक्ति विशेष के पास केवल उस व्यक्ति विशेष के पास हाल चाल पूछने ही चला जाता है,तो उसने भी तो असमर्थ होते हुए भी तो भावनात्मक सुख ही तो दिया |
मनुष्य की कोई भी,आयु,लिंग,व्यवसाय या परिवेश हो सामाजिक प्राणी होने के कारण उसको आत्मिक या भावनात्मक सुख की आपेक्षा तो होती ही है |
मनोवेग्यानिक या मनोचिक्त्सक किसी अवसाद बाले या मानसिक संतुलन खो देने वाले की मनोयोग से वोह बातें सुनते हैं,जो किसी और के लिए निरर्थक होंती हैं, जिन बातों के बारे में कोई कह सकता है,क्या "बेकार की बात है", या "बोर मत करो" या "हमें नहीं सुननी बेकार की बातें", या "तुम्हारी बातें तार्किक नहीं हैं" इत्यादि, जब इंसान वाल्यावस्था में होता है, वोह "अपने माँ बाप से जिज्ञासा वश बहुत प्रकार के प्रश्न पूछता है,और उसकी जिज्ञासा को उसके माँ बाप उसको उत्तर दे कर उसकी जिज्ञासा को शांत करते हैं, और उसके बाद जब उसका समपर्क बहारी दुनिया से होता है,तो उसके गुरु जन उसके मित्र उसके प्रश्नों के उत्तर दे कर उसकी जिज्ञासा को शांत करते हैं, और वोह कुछ अपने अनुभवों से भी सीखता है, अगर उसको उचित उत्तर मिल जाता है,तो उसको भावनात्मक तृप्ति हो जाती है, और इसके विपरीत उसकी बातों पर व्यंग किया जाता है,या उसको तृसकृत किया जाता है,या उससे किनारा किया जाता है,तो उसको भावनात्मक सुख नहीं मिलता  है,और वोह जाता है,मनोचिक्त्सक या मनोवेग्यानिक की शरण में, चाहयें उसके परिवार वाले उसके शुभ चिन्तक या वोह स्वयं जाये, उसके चेतन मस्तिष्क पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है,जो उसके अवचेतन में चला जाता है, इसका निदान चाहें   मनोचिक्त्सक उसकी रोग जान कर औषधियों से चिकत्सा करे या मनोवेग्यानिक  वेहवियर थरेपी से,बात करके मंवोज्ञानिक या मनोचिक्त्सक दोनों ही उसको बात करके उसकी बात को समझ कर उसको भावनात्मक सुख और भावनात्मक सुरक्षा ही तो  देतें हैं, और बात को सुनना भी एक कला है, किसी की बात पूरी होने से पहले बीच में ही टोकना तो भावनात्मक कष्ट देना ही तो है,मन्वेज्ञानिक या मनोचिक्त्सक किसी की बात पूरी होने से पहले नहीं टोकतें हैं,मनोयोग से बात पूरी सुनने के बाद ही प्रश्न पूछते हैं, और सुनने की कला में यह भी आता है,जो व्यक्ति जिस बात को जिस प्रकार कहना चाहता है,या बताना चाहता है,बिलकुल उसी प्रकार मनोवेग्यानिक या मनोचिक्त्सक समझते हैं |
किसी व्यक्ति विशेष की बात या उसके व्यवहार पर पर अगर व्यंग किया जाता है,वोह उस व्यक्ति को भावनात्मक कष्ट ही तो पहुँचता  है, किसी व्यवस्था पर या किसी के सामाजिक दृष्टि से अनुचित  कृत्य पर अगर व्यंग किया जाये तो तो उचित है, पर व्यक्ति पर अनुचित व्यंग करना तो उसको भावनात्मक कष्ट ही तो  पहुंचाएगा |
बहुत बार किसी बुडे व्यक्ति को घर की छत देखते हुए या आसमान देखते हुए देखा जा सकता है,कारण यही है उनका समय तो व्यतीत हो गया है,और उनके उस समय की बात सुनने के लिए बदले हुए समय में बात करने को नहीं मिलता,अगर कोई उनकी बात सुने तो उस बुडे व्यक्ति को भावनात्मक सुख मिलता है, यह बात अलग है अगर उस बुडे व्यक्ति को उसी की आयु के समीप के लोग मिल जाएँ तो उसको भावनात्मक सुख मिलेगा,क्योंकि उनकी रुचि और बातें कमोवेश एक सी ही होंगी |
आज कल के समय के अनुसार सयुंक्त परिवार टूटते जा रहे हैं, परन्तु सयुंक्त परिवार की यही तो विशेषता थी की छोटे, बड़े सब मिल जुल के रहते थे,और एक दूसरे को समझते थे,भावनात्मक सुख एक दूसरे को मिल जाता था,आज कल के एकाकी जीवन की तरह नहीं था |
अगर आमने सामने बात हो रही है,तो सुनने वाले और सुनाने वाले के हाव भाव एक दूसरे पर प्रभाव डालते ही हैं, अगर सुनने वाले के हाव भाव ऐसे हैं,जिससे सुनाने वाले को ऐसा लगे कि सुनने वाला उसकी बातों को समझने का प्रयत्न कर रहा है,तो सुनने वाले को भावनात्मक सुख मिलता है,नहीं तो विपरीत प्रभाव पड़ता है |
जो कलाकार होतें है,बेहद संवेंदन शील होते हैं,चाहें चित्रकार हों,कवी हों,किसी के पास कैसी भी कला हो,वोह अपने भावों को कला में प्रदर्शित करतें हैं,और उनको समझने वाला उस कला को उसी प्रकार से समझे तो यही कलाकार का पुरुस्कार होता है,जो उनको आत्मसंतुष्टि दे करके उनको भावनात्मक सुख देता है |
किसी की बात सुन कर उसको भावनात्मक सुख दिया जा सकता है |

शुक्रवार, जून 4

किसी का अन्तकरण भी बदला जा सकता है |

इस लेख का प्रारम्भ तुलसीदास जी के रामायण ग्रन्थ की इन पंक्तियों से आरंभ कर रहा हूँ, " उपदेश कुशल बहुतेरे", किसी के अन्तकरण पर अगर प्रभाव डालना है,तो केवल उपदेश देने से कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता है, इस सन्दर्भ में मुझे किसी के द्वारा रचित एक कहानी याद आ रही है |
इस  सन्दर्भ में एक किसी के द्वारा लिखी हुई एक कहानी मेरे  मानस पटल पर उभर रही है,एक कलाकार ने एक चित्र बनाया और रात्रि में एक स्थान पर टांग दिया,जहाँ से आते जाते राहगीरों की दृष्टि सहज ही उस स्थान पर पड़े जहाँ पर चित्र टंगा हुआ था,और उस कलाकार ने उस  चित्र के नीचे लिख दिया, "जिस किसी को इस चित्र में जिस स्थान पर त्रुटी दिखाई दे,उस स्थान पर निशान लगा दे",अगले दिन सुबह जब उस चित्रकार ने अपने बनाये हुए चित्र को देखा तो,उसको चित्र तो किसी भी कोण से दृष्टिगोचर नहीं हुआ,बस विभिन्न प्रकार के निशान ही उसको चित्र के स्थान  दिखाई दिए |
 उस चित्रकार ने पुन: हुबहू वोही चित्र बनाया और रात्रि में पुन: वोह चित्र उसी स्थान पर टांग दिया,और इस बार उसने अपने बनाये हुए चित्र के नीचे बदला हुआ वाक्य लिख दिया, " जिस किसी को भी इस चित्र में, जिस स्थान पर त्रुटी  दृष्टिगोचर हो वहां ठीक कर दे", रात्रि के बाद पुन:प्रात:काल में जब उस चित्रकार ने उस चित्र को देखा,तो उसको चित्र बिना किसी संशोधन के वैसा ही मिला जैसा उसने बनाया था |
 यह कहानी तुलसीदास जी के द्वारा रामायण में लिखी हुई, उन पंक्तियों को चरितार्थ करती है," उपदेश कुशल बहुतेरे" |
कहने का तात्पर्य है,अगर किसी का अन्तकरण बदलना है,तो केवल उपदेश से काम नहीं बनता, सब इंसानों चाहे स्त्री हो पुरुष,बालक हो या बालिका या युवक हो या युवती सब का सोचने का तरीका पृथक,पृथक होता है, किसी के द्वारा कही हुई बात को कौन किस प्रकार से लेता है,उसकी कोई निशचिता नहीं होती, कौन कही हुई बात को उस प्रकार आत्मसात करता है,जैसे कही हुई बात कहने वाले के मानसपटल पर उभरी है उसके बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता, और कोई कहने वाले के मानसपटल पर उभरी हुई बात को,उसी प्रकार नहीं ग्रहण करता है,जिस प्रकार किसी ने कही है,तो विवाद उत्पन्न  हो सकता  है,वैमनस्य भी पैदा हो सकती है,झगड़ा हो सकता है,कहने वाला और सुनने वाला दोनों ही आवेशित भी  हो सकते हैं,आपस में बैर उत्पन्न हो सकता है, अनायास ही सम्बन्ध ख़राब हो सकते हैं, और अगर सुनने वाला उसी प्रकार से कही हुई बात को ग्रहण करता है,तो ऊपर लिखे हुए उदहारणो  के विपरीत भी हो सकता है,सदभावना उत्पन्न हो सकती है, आपसी प्रेम बड़ सकता है,रिश्ते प्रगाड़ हो सकते है,अमिट अच्छे सम्बन्ध बन सकते है,कहने वाले का सुनने वाले पर किस प्रकार का प्रभाव पड़ेगा कुछ कहा नहीं जा सकता | 
किसी का व्यक्तित्व देश,काल,परिवेश और लालन,पालन और घटनाओ से बनता है,जब मानव का जन्म होता है, तो वोह कुम्हार की मिटटी की प्रकार का होता है, और कुम्हार उस मिटटी से भिन्न,भिन्न प्रकार के वर्तन निर्मित करता है,उसी प्रकार जब किसी बालक अथवा बालिका का जन्म होता है,या कोई किसी बालक या बालिका को गोद लेता है,उस समय बालक या बालिका इसी प्रकार कुम्हार की कच्ची मिटटी के समान होते हैं,और उस बच्चे या बच्ची का उसके माँ,बाप उसके व्यक्तिव का निर्माण  प्रारम्भ करते हैं, जन्म लेने के बाद तो बच्चे अपनी स्वाभिक क्रियाये जैसे सब से पहले अपनी गर्दन उठाना फिर बैठना उसके पश्चात बोलना,घुटनों के बल चलना फिर लडखड़ाते हुए कदम रखना और फिर चलना प्रारंभ करते हैं, बच्चा जब बोलना आरम्भ करता है,तो जिस देश,समाज में पैदा होता है,उसी के अनुरूप भाषा बोलता है, और उसके बाद प्रारंभ होता है,उस बच्चे या बच्ची के व्यक्तिव का निर्माण जैसा उसके माँ बाप उसके व्यक्तित्व को कुम्हार की कच्ची मिटटी की भांति निर्मित करते हैं,अब उस पर |प्रभाव पड़ता है,उस बालक और बालिका के देश और समाज का प्रभाव और बच्चा उसी देश और समाज के अनुरूप ढल जाता है,और शने: शने: जब बच्चा और बड़ा होता है,तब उसके संगी साथी बनते है,और प्रभाव पड़ने लगता है,बच्चे के संगी साथी का और उसका व्यक्तिव में उसके संगी साथी की संगत का प्रभाव पड़ने लगता है,इसी लिए कहा जाता है,"संगत का प्रभाव तो पड़ता ही है "| 

गुरुवार, अप्रैल 15

एक फिसिओथरेपी के डाक्टर ने प्रभाबित किया |

व्यस्तता के कारण ना तो कोई पोस्ट लिख पाया और ना ही पड़ पाया,एक तो दैनिक कार्य और पत्नी की फिस्योथरेपी के कारण उसको फिसियोथरेपी के लिए ले जाना,  और उसके फिसियोथेरपी  के व्यायाम कराना, के कारण समय का  अभाव सा बन गया था,अक्सर मेरे मस्तिष्क में हमारे समाज के करणाधारों के बारे में विचार आते हैं,जैसे शिक्षक जो हमें ऊँगली पकड़ कर हिंदी की वर्णमाला और अंग्रेजी की वर्णमाला का ज्ञान कराते हैं, जिस कारण हम लोग लिख और पड़ पाते हैं,और उतरोतर जैसे,जैसे हमारी बुद्धि का विकास होता है, यही शिक्षक लोग और हमें शिक्षा का ज्ञान देते हैं |
ऐसे ही दूसरा जो विचार आता है,चिकत्सक जो हम लोगों को अवस्वस्थ अवस्था से स्वस्थ अवस्था में लाते हैं,और निरोगी रहने में सहायता करते हैं, चाहे यह आय्रुवेदिक, होमियोपेथी या एलोपेथिक चिकत्सक हों,इसी क्रम में मेरे मस्तिष्क में मेरा सम्मत वाली अलका जी का विचार आ रहा है,जो अपनी आयुर्वेदिक चिकत्सा के बारे में लिख कर अप्र्ताय्क्ष और बीमारों का दूरभाष और घर पर आये मरीजो की चिकत्सा प्रत्यक्ष रूप से करती हैं, मेरी पत्नी की एक तो दोनों आँखों में मोतियाबिंद हो गया है, और अलका जी ने मेरे ब्लॉग की पोस्ट यह मेरी शतकीय पोस्ट है,उस पर टिप्पणी दे कर एक बहुत ही सरल आयुर्वेदिक चिकत्सा बताई है, जिससे और भी लोग लाभान्वित हो सकते हैं, बस विडम्बना यह है संभवत: बहुत ही कम लोग मेरी पोस्ट पड़ते हैं,जैसा मुझे नाम मात्र की मेरी पोस्ट पर आई टिप्पणियों से लगता है, कोई पड़े या नहीं पड़े बस में तो यह चाहता हूँ,कि लोगों को लाभ मिले इसीलिए मैंने यह वाक्य लिख दिया है, में कोई साहित्यकार तो नहीं हूँ,जो कि सहितीय के रूप में लिखूं, कभी कविता लिखा और बोला करता था, लेकिन वोह तो समय की गर्त में चला गया, ना ही  मेरे पास इतना अवकाश है,कि अलग,अलग विषयों पर लिखूं या  पडूं,बस जीवन के खट्टे,मीठे अनुभव हैं, जो कि मेरे लेखों में होते हैं |
 अब आता हूँ,मूल विषय पर मेरी पत्नी की दोनों टांगों में किसी भी टांग में असहनीय पीड़ा हो जाती थी, उसको हड्डियों के चिकत्सक को दिखाया, और उन चिकत्सक ने दवाइयां दी पर कोई प्रभाव ना पड़ा, और जब कुछ अच्छा या बुरा होना होता है,उसका क्रम बन जाता है, और हमारा अच्छा होने का सयोंग बन गया, उन चिकत्सक ने फिसियोथरेपी चिकत्सक जिनका नाम है, डाक्टर संदीप त्यागी का पता दिया, डाक्टर संदीप त्यागी थोड़े से पक्षाघात से ग्रसित हैं, और उनके क्लिनिक का नाम है माही फिसियोथरेपी और यह डाक्टर संदीप त्यागी पूर्णतया मरीजो से समर्पित हैं, में अपनी माता जी को किसी समय सपोंदयलितिस के इलाज के लिए दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में ले जाता था, वहाँ तो गर्दन में मशीन कुछ समय के लिए लगाई और हो गई छुट्टी और इसके अतिरिक्त कुछ नहीं, परन्तु यह माही क्लिनिक में डाक्टर संदीप त्यागी मशीनों से इलाज तो करते ही हैंअब, और उनको व्यायाम भी कराते हैं, जब में अपनी पत्नी को लेकर गया तो डाक्टर साहब ने हाथ से टांग पकड़ के ऊपर करते रहे और पूछने लगे,जिस स्थिति में अधिक पीड़ा हो तो बताना, उसमे तो श्रीमती जी को कोई अधिक पीड़ा नहीं हुई और फिर उन्होंने पत्नी की कमर पर अंगूठे से स्थान,स्थान पर दवाब डाला और पूछनेलगे जहा अधिक दर्द हो तो बताना और कमर के  एक स्थान पर अधिक पीड़ा हुई, और पत्नी की टांग में नहीं बल्कि मूल कारण कमर का निकला और डाक्टर साहब ने बताया यह शियातिका है, पहली बार मैंने फिसियोथरेपी के चिकत्सक को इस प्रकार रोग की जाँच करते देखा है, सब ही उनके क्लिनिक में आने वालों को इस प्रकार जाँच करते देखा है, हर किसी रोगी को वोह वयाम भी कराते हैं,चुटकुले इत्यादि सुना कर और विभिन्न प्रकार से अपने क्लिनिक का माहौल हल्का फुल्का बना के रखते हैं, इस लेख का लिखने का यही कारण है,किसी को फिसियो थरेपी की आवश्यकता हो तो वोह मुझ से संपर्क कर सकता है, मुझे उनका पता याद नहीं,परन्तु घर के समीप ही है,उनका पता लाने में मेरे को कोई परेशानी नहीं है |
  अब डाक्टर संदीप त्यागी मेरी पत्नी को एक दिन छोड़ के बुला रहे हैं, उन्होंने घर पर करने के लिए मेरी पत्नी को कुछ व्ययाम बता रखे हैं, और जब भी में अपनी पत्नी को लेकर उनके पास जाता हूँ, तो मुझ से पूछते हैं,क्या आपकी पत्नी घर पर व्ययाम कर रही हैं,ऐसा है उनका समर्पण भाव और कोई रोगी उनसे पूछता है,कि कितने दिनों में ठीक होंगे तो वोह कहते हैं,यह तो आप के ऊपर निर्भर हैं |
 उसी क्लिनिक में मेरी पत्नी की एक मित्र आतीं हैं,उनकी भुजा  में पीड़ा है, कुछ दिन बाद मैंने अपनी पत्नी की मित्र की भुजा में सूधार देखा, तो मैंने डाक्टर साहब से कहा इनकी भुजा में तो सूधार हैं,तो बोले यह तो यही बतायगीं ऐसा है मरीजो के प्रति इन डाक्टर साहब का समर्पण |

रविवार, मार्च 28

अगर कुछ अच्छा करने की चाहत है,तो छोटी,छोटी खुशियाँ देने से प्रारम्भ करें |

,यह लेख पूज्य श्री विवेकानंद के इस कथन से प्रारंभ कर रहा हूँ, "अपने आस पास देखो कौन दुखी है, उसकी सेवा करना ही प्रभु भक्ति है",कुछ दिनों पहले मैंने www.vinay-mereblog.blogspot.com पर अपनी सौंवी पोस्ट होने पर लिखा था, यह मेरी शतकीय पोस्ट है, इस प्रकार शतकीय पोस्ट बनाने से अच्छे बहुत से लोग हमारे इस ब्लॉगर पर वन्दनीय कार्य कर रहें है |
कल रात्रि में अलका जी मेरा समस्त लिखने वालीं से चैटिंग कर रहा था, उनकी पोस्टों में देसी जड़ी बुटीओं से इलाज के बारे में वर्णन होता 
है, इसके उपयोग से कितने ही रोगीओं को आराम मिला है, मेरी पत्नी की दोनों आँखों में मोतियाबिंद हो गया है,और उनके एक लेख में मैंने उनसे मोतियाबिंद के इलाज के बारे में पूछा था,तो उन्होंने मेरी शतकीय पोस्ट पर टिप्पणी दी है,जिसमें मोतियाबिंद का इलाज लिखा है, मैंने उनसे आज दूरभाष पर बात करके पूछा था,तब उन्होंने बताया आप की शतकीय पोस्ट पर उसका इलाज लिखा है,जो कि बहुत ही सरल चिकत्सा है,इस चिकत्सा का और रोगी लाभ उठा सकतें है, क्या यह ख़ुशी देना ईश्वरीय सेवा से कम है?
दूसरा  नाम लेता हूँ, सबके हितेषी पाबला जी का, उन्होंने हम सब ब्लोगरो के जन्म दिन और वैवाहिक वर्षगांठ का लेखा जोखा रखा हुआ है,
 यह औरो को ख़ुशी देने का काम क्या किसी आराधना से कम है क्या? यारो के यार पावला जी बहुत अच्छा तकनिकी ज्ञान रखते हैं, कुछ समय पहले मेरे इसी www.snehparivar.com ब्लॉग में,एक कठिनाई आ गयी थी,में जो भी इस ब्लॉग में लेख लिखता उसका परतिरूप भी बन जाता था, मतलब उस पोस्ट का इसी ब्लॉग में लिंक बन जाता था, और मैंने अपने इसी ब्लॉग में लिखा था,कोई मेरी सहायता कर सकता है,पावला जी कि संभवत: उसी पोस्ट पर पड़ी और उन्होंने मेरी वोह समस्या दूर कर दी,दूसरी समस्या यह है,कि में अपनी पोस्ट का लिंक किसी और को नहीं दे पाता हूँ उसको भी पावला जी ने चेक तो किया था,और वोह वोले लिंक तो बन रहा है, यही तो छोटी,छोटी खुशियाँ है |
 तीसरा नाम लेता हूँ शमा जी का, उन्होंने एक बार अपनी टिप्पणी में लिखा था, में संस्मरण में आपके लिए लिखतीं हूँ,क्योंकि आप पड़ते हैं, इस प्रकार अपनत्व की भावना उत्पन्न होती है, वोह तो बहुत सी कला की धनी है, परन्तु इस प्रकार किसी को ख़ुशी देना क्या किसी से कम है क्या?
अब लेता हूँ नाम समीर लाला जी यानि की  उड़न तश्तरी जी का वोह तो, सभी लिखने वालों को टिप्पणी दे कर लिखने का प्रोत्साहन देते हैं, यह इंसान की सच्ची सेवा नहीं तो और क्या है?
 अगर किसी को ज्योतिष के बारे में रुचि हैं तो संगीता जी और पंडित डी.के वत्स जी तो इसमें अग्रणी हैं, और पंडित जी को तो हमारे आदिग्रंथो का अच्छा ज्ञान है,और वोह हम सबको इस ज्ञान से अवगत करते हैं |
 आशीष खंडेलवाल हम लोगों को नयी,नयी तकनिकी जानकारी देते हैं,क्या यह किसी सेवा से कम है?
  यह लोग तो विवेकानंद जी के इस कथन का सच्चा मान नहीं रख रहें तो क्या है?
यह तो रहा उन ब्लोग्गोरो के बारें में जिनको हम सब लोग जानते है |
  हम सब लोगों के सामने,कितने ही लोग हैं,जिनको किसी ने किसी साहरे की आवयश्कता है, आपकी काम वाली,बच्चों को स्कूल ले जाने वाला रिक्शा वाला,बस ड्राईवर या ऑटो चालक बहुत से ऐसे लोग होंगे आप के आसपास जिनको आप लाभ दे सकतें हैं |
 हमारे घर के सामने थोड़ी सी चढाई है, कल मैंने देखा एक आइसक्रीम का ठेले वाला उस चढाई पर जा रहा था और एक हमारे जान पहचान का रिक्शा वाला उसको उस चढाई को पार कराने के लिए स्वयं भी उसके ठेले को धक्का दे रहा था |
 अगर इंसान की सेवा करनी है,तो बड़ी,बड़ी संस्थओ से जुड़ना या लाखों करोडो का चंदा देने की सोचने की आवश्यकता ही नहीं है, आपके आस पास आपके जाने पहचाने बहुत से लोग मिल जायेंगे जिनको कुछ,कुछ ना आवश्यकता है, और ऐसे भी लोग मिल जायंगे जिनको किसी ना किसी प्रकार की मदद की वास्तव में ही आवश्यकता है,जैसे मैंने एक रिक्शा वाले और आइसक्रीम वाले का उदहारण दिया है |
बस अंत मे यही कहूँगा परहित सम सुख नहीं |

बुधवार, फ़रवरी 24

लो आने वाला ही है,होली का पर्व |

हमारे देश की संस्कृति बहुरंगी है, वैसे तो इस भारत देश में,अनेकों पर्व मनाये जाते हैं, लोहड़ी,वैसाखी,खिचड़ी,करवाचौथ, ईद,क्रिसमस इस्टर,गुड फ्राईडे  गंगा नाहन,बट अमावस्या,गुरु पूर्णिमा,गुरु नानक देव का जन्मदिन,गुरु गोविन्दसिंह का जन्मदिन,प्रकाशौत्सव,ओणम,मकर संक्रांति  और भी बहुत सारे तीज,त्यौहार, सभी धर्मो हिन्दू,मुस्लिम,सिख,इसाईओं के त्यौहार, यह है सभी धर्मो के मिलुजुले बहुरंगी रंगों से सजे त्यौहार, और इसके साथ,साथ विदेशी परम्परा के त्यौहार वेलेनटाइन डे,फाथर डे,मदर  डे,फ्रेंडशिप डे इत्यादि, यह जो डे हैं,वोह तो विदेशों में एक ही दिन के लिए हैं,परन्तु हमारे देश में तो नित,प्रतिदिन के लिए हैं, ऐसे है,सब बहुरंगी पर्वो का मिला,जुला रूप हमारे देश में है |
 अगर हम सब प्रान्तों के त्य्होरों को लेकर चले,तो वोह भी एक इन्द्रधनुषी छटा विखेरते हैं,असम में देखो तो बिहू का नृत्य, पंजाब में लोहड़ी और वैसाखी का ढोल पर थ्रिकते भंगरा और गिद्दे पर लोगों के कदम,और नीचे के प्रान्त उत्तर परदेश में आओ तोखिचड़ी  का त्यौहार, और नीचे केरल में आओ तो ओणम की नौका दोड़ का दृश्य, एक अनूठी ही रंगबिरंगी छटा विखेरती हैं कि देखते ही बनता है ,मिल जुल कर इस देश के प्रान्त, और भी अनेकों प्रान्तों में होने वाले त्यौहार,और सहसा ही,मुख से इस गीत की पंक्तिया मुख से निकलती हैं,"मिले सुर हमारा तुम्हारा तो बने के सुर न्यारा", यह गीत भी तो अनेकों प्रांतीय  भाषाओँ का मिला जुला स्वरुप है |
 हमारे इस भारत के चार प्रमुख त्यौहार हैं,होली,दिवाली,दशेहरा और रक्षाबंधन,हर त्यौहार के साथ कथा जुड़ी  हुई है, और इन चारों त्योहारों में से तीन त्यौहार,अलग,अलग ऋतुओं में मनाये जाते हैं,  दशहरे के बाद शरद ऋतू में आती है,दीपों से सजी दिवाली, और जैसे,जैसे शरद ऋतू का समापन होता है,तो ना अधिक शीत और ना ही अधिक गर्मी होती है,तो मादक करने वाला आता हैं बसंत,और बसंत जब अपनी समाप्ति की ओर होता है,और फागुन ऋतू आती है,तब आती है,यह होली, और इस होली का भी कृष्ण भगवान के ब्रज में तो अलग,अलग सवरूप हैं, बरसाने में लठमार होली,जिसमें गुज्रियों के लठो से बचते हुए पुरष होतें हैं , इस लठमार होली में भी सदभावना होती हैं,पहले तो इन पुरषों को यह गुजरियां,खिलाती,पिलाती हैं, फिर इन पुरषों पर होता है लठो से प्रहार,यह लोग पगड़ी बांधे होते हैं,और थाल नुमा ढाल से अपने को  बचाते हैं अपने पर होने वाला प्रहार, और यह गुजरियां इन पुरषों का ख्याल रखती हैं,कहीं इनको चोट ना लग जाये, ऐसी होती है,लठमार होली, वृन्दावन में बांके बिहारी जी की मूर्ति बहार रख दी जाती है,मानो की बिहारी जी होली खेलने के लिए बहार आ गएँ हो,और यह होली तो चलती है,सात दिन पहले प्रारंभ होता है,गुलाल से,फिर चलते हैं सुखें रंग,और फिर  आती है,गीले रंगों से सरोबर करने वाली होली |
  होली में गुब्बारे मरने का चलन हो गया है, जिसमें चोट लगने की सम्भावना होती है,क्या होली में ऐसी सदभावना नहीं हो सकती,जैसे बरसाने की होली में लठमार होली में होती ही है,जहाँ पर लठ मरने वाली स्त्रिया यह ध्यान रखती हैं,कहीं चोट ना लग जाये, और इस लठमार होली में भाग लेने वाले यह पुरुष भी प्रक्षिशित होतें हैं, क्यों होली में हानि पहूचाने वाले अवीर,गुलाल होतें हैं |
 साधारणत: होली में,गुजिया और कांजी से मेहमानों की आवभगत की जाती है, और आपस में बैर,वेम्नसेय मिटा के गले मिलते हैं, दुश्मन को भी दोस्त बनाने वाला है,यह पर्व, क्यों लोग भूल गयें हैं,इन पर्वो का महत्व,क्यों लोग दिवाली पर,जुआ खेल कर किसी का दिवाला निकालते हैं,क्यों नहीं, होली को जहरीले रंगों को छोड़ कर,साधारण गुलाल,अबीर और गीले रंगों का उपयोग नहीं करते,क्यों गुब्बारे मारते हैं,जिस से चोट लग जाये ?
 हाँ होली पर हल्का,फुल्का मजाक तो चलता है, पर कोई बुरा नहीं मानता, आपस में गले मिल कर सब गिले,शिकवे दूर कर लेते हैं |
शायद यह लेख अधिक लम्बा हो गया है, अगर भाई,बहिन,माता,पिता,दादा,दादी,बेटे,बेटियां बोर हो रहें है,तो हों |
 बुरा ना मानो होली है 
Khaa key gujiya, pee key bhaang,
laaga k thora thora sa rang,
baaja ke dholak aur mridang,
khele holi hum tere sang.
HOLI MUBARAK!







मंगलवार, जनवरी 12

नववर्ष का पहला त्यौहार लोहड़ी





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 अभी,अभी साल 2009 समय की गर्त में चला गया था,और नववर्ष का जन्म हुआ था,यह तो था,अंग्रेजी कलेंडर के हिसाब से था, परन्तु हिंदी कलेंडर के अनुसार साल लोहड़ी से नववर्ष का आगमन हुआ है, चारो ओर ढोल की आवाजें,अग्नि जला कर उसमें पोपकोर्न,मूंगफलियाँ,रेवरी डालना और और भेंट स्वरुप उपहार के तोर पर देना,सब और खुशियों का वातावरण, मेरी तो कामना है,इस प्रकार का वातावरण हर वर्ष रहें,और इस लोहड़ी के पर्व पर उलास्सित हो कर यह कहना

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 सहसा एक रोमांच पैदा कर देता है, और हो जाता है,ढोल की थाप पर भंगरा और गिद्दा,सहसा पैर अपने,आप थिरकने लगतें हैं ,चारो और मस्ती ही मस्ती,खेतों में सरसों की फसल खड़ी हो जाती है |
अभी तो नाचते,गाते रात बीत गयी थी,और जब आंख खुलती है,तो होती है मकर संक्रांति

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मतलब की पवित्र घाटों में विशेषकर गंगा के घाटों में,स्नान करने का दिन,लोहड़ी तो आरम्भ हुई थी पंजाब से और  नीचे चल कर आ गयें उत्तर परदेश,जहाँ पर मकर संक्रांति का विशेष महत्व है,स्नान,ध्यान,जप दान का दिन ,पंजाब के बाद उत्तर परदेश का विशेष दिन मकर संक्रांति |
और नीचे चलते हैं तो आ जाता है,केरल में ओणम का पर्व,जो कि लोहड़ी वाले दिन ही होता है 



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इस ओणम के पर्व पर,केरल के समुन्दर के पानी में,एक साथ नावों पर चलते हुए,एक समां सा बांध देते हैं, केरल में इस दिन होती है,नौका दोड,और एक साथ पानी में चलते हुए चप्पू,इस परतिस्पर्धा में दोड में,आगे निकलना एक नया सा आनंद देता है|
यह है,हमारे भारत का अनेकता में एकता का प्रमाण, हम लोग भी इस अनेकता में एकता का स्वरुप दिखाएँ,कश्मीर से लेकर कनाय्कुमारी तक
सब भाई,बहनों,माताओं,पिताओं,बेटे,बेटियों को लोहड़ी,मकर संक्रांति,ओणम की शुभकामनायें |
इन्ही त्योहारों के सामान सब मिल जुल कर रहें

बुधवार, जनवरी 6

इस लड़की ने मन को छु लिया |

कुछ दिन पहले मैंने अपने यहाँ काम करने वाली लड़की जिसके माँ बाप,उस लड़की के लिए उपयुक्त वर खोजने के लिए अपने गाँव बिहार में स्थित भावनिपुर गाँव में गएँ हुए हैं, वोह लड़की एक महीने से हमारे घर में रह रही है, और कल संभवत: इस कन्या के माँ बाप आ जायेंगे और यह कन्या अपने घर चली जायगी, तन की तो साधारण है, घेऊआं रंग और तीखे नैन नकशे वाली यह बालिका है,परन्तु  सुंदर मन की तो  असाधारण स्वामी है, पहनने ओरने, बात चीत के तरीके से हाव भाव से किसी भी संभ्रांत घर की लड़की लगती है, जब भी मेरे साथ किसी के पास जाती है, यदा कदा लोग पूछ बैठते हैं,क्या यह आपकी लड़की है, मेरे मुख से गर्व के साथ हाँ निकलता  है, इसकी उस लेख में एक विशेषता नहीं लिखी थी वोह यह कि थोड़ी बहुत अंग्रेजी पड़ने के साथ यह अंग्रेजी पड़ भी लेती है, एक माह यह हमारी बेटी के घर पर हमारे नाती के जन्म से पहले से लेकर एक साल तक उसके घर पर रही थी, हमारी बेटी इसको छोटी बहिन समझती है,और उसका बेटा इसको मौसी कहता है, इस लड़की ने सब का मन अपनी निस्वार्थ सेवा, सबका खायल रखने से मोह लिया है, घर का काम तो इसको कहने की आवश्यकता ही नहीं, अपने आप घर के काम करती रहती है और कोई नया काम आ जाता है,अपने आप उस काम को सम्भाल लेती है|
 जब यह हमारी बेटी के पास रही थी, इसने इस हमारे नाती के जन्म से पहले उसके एक साल तक उसके घर के काम के साथ,हमारी बेटी और नाती को इस प्रकार संभाला कि कोई परिचारिका क्या संभालेगी?
  अब तो हमारा नाती चार वर्ष का होने जा रहा है,और नातिन का भी जन्म हो चुका है, जब भी हमारे बेटी दामाद घर पर आतें हैं,और इसको उनका आने का पता चल जाता है,तो यह हमारे नाती के लिए बड़ी सी चोकलेट लेकर आती है, हमारी बेटी जब कहती है, शीला तु इसके दांत ख़राब कर देगी, तो यह अधिकार से कहती है,"बोबू मेरा भी तो कुछ लगता है,यह आपके ऊपर है,आप इसको कितनी चोकलेट दो |"
  एक बार मेरी पत्नी को अपनी स्कूल की पुस्तकों के कुछ पृष्ठ फोटोस्टेट  करवाने थे,तो शीला मेरे साथ गयी और उस समय बिजली ना होने के कारण,में वोह पुस्तकें उस फोटोस्टेट वाले के पास छोड़ आया क्योंकि वोह मेरा परिचित था, यह लड़की भी मेरे साथ वापिस आ गयी, फोटोस्टेट वाले ने कुछ समय दिया था, और उसके निर्धारित समय पर जब में उसके पास जाने लगा तो यह मेरे साथ चल दी, उस फोटोस्टेट वाले ने पृष्ठ फोटोस्टेट कर दिए,और इसका अंग्रेजी पड़ने का ज्ञान उस समय काम आया,इसने सब पृष्ठों को चेक किया, परन्तु एक पृष्ठ रह गया था, यह बोली अंकल आपने "यह पेज तो फोटोस्टेट नहीं किया"  
  मैंने उस फोटोस्टेट वाले से पेज गिन कर "पूछा कितने पैसे हुए ?|" उस समय यह उस दूकान से बहार देख रही थी, मैंने पूछा "क्या हुआ ?", तो इसने सब पृष्ट गिने फिर बोली इतने पैसे हुए और उस समय मुझे लगा की में पैसे लाना भूल गया जब मैंने यह बात कही तो यह बोली की "पैसे में दे देती हूँ " लेकिन ऐसा हुआ नहीं पर्स मेरे पास था और मैंने पैसे दे दिए थे ,इसकी कर्तव्यप्रायणता देख कर में अवाक् रह गया   |
  दूसरी घटना जो इसकी जो बुधिमत्ता है, उसका वर्णन कर रहा हूँ, एक बार मुझे अपनी दीवार घड़ी ठीक कराने के लिए ले जानी थी, घड़ी बड़ी होने के कारण में उसको स्कूटर पर ले जाने के लिए असमर्थ था,मेरी पत्नी ने इसको मेरे साथ भेज दिया तो यह मेरे स्कूटर के पीछे घड़ी पकड़ कर बैठ गयी और हम लोग पहुँच गये घड़ी साज के पास,घड़ी तो ठीक हो गयी थी,पर घर लौटते में सेकंड की सुई ढीली होने के कारण गिर गयी थी, यह बोली "सेकंड की सुई तो गिर गयी", तो में बोला चलो उस घड़ी साज के पास और घड़ी साज के पास चल दिए, इसने घड़ी साज की दूकान से कुछ दूरी पर ही देख लिया था, कि सेकंड की सुई गिर गयी है, तो यह तो स्कूटर पर से उतर गयी और अपने मोबाइल जिसको इसने स्वयं अपनी कमाई से ख़रीदा है, उसकी टोर्च की रौशनी में वोह सुई खोज लायी,और घड़ी साज से वोह सुई लगवा ली  |
  एक बार हम चाट वाले से टिक्की और पानी के बताशे (गोल गप्पे) लेने गए, घर तो यह चाट का सामान ले आये,परन्तु पानी के बताशों के लिए पानी डालते समय इसके हाथ से वोह पानी गिर गया, यह बोली "पानी तो गिर गया", मेरी पत्नी बोली जितना "पानी है,उसके तीन भाग कर के खांएंगे", तो यह बोली में अपने भाई को फ़ोन कर देतीं हूँ "वोह पानी ले आएगा",  मेरी पत्नी ने कहा कोई "जरूरत नहीं है",और कहा  "पानी के बताशे ले आ",तो यह पानी के दो भाग कर के ले आई परन्तु,अपने लिए गिलास में सादा पानी ले आई,मेरी पत्नी ने कहा दिखा अपना पानी तब इसकी मासूम चोरी पकड़ी गयी, उस चाट वाले से हम अक्सर चाट ले जातें हैं, चाट ले कर में वोह सामान अपने स्कूटर में रखने लगा तो यह बोली, "अंकल इसके पैसे दो दे दीजिये",चाट वाला बोला पहले सामान रख लो पैसे बाद में दे देना, तो यह मधुर स्वर बोली," आपने सामान ले लिया है ,तो तुरंत पैसे दीजिएय", में सोचने लगा इसका इसके घर वालों ने इसका नाम बुलबुल रखा है, वाकई में यथार्थ चित्रण है |
 इसकी बुद्धि की परिवाक्त्ता इतनी है, इसके घर में इसके दो भाई हैं, उन्होंने खाना बनाने का सब सामान समाप्त कर दिया,और उनके पास केवल साठ रुपये थे,उसका चिकन ले आये,और फिर इसको फ़ोन करतें हैं,सब खाने बनाने का सामान और पैसे समाप्त हो गयें है,पहले यह एक मुखिया के सामान बोली,"तो में क्या करुँ ?", फिर कुछ सोचअपनी स्वयं खरीदी हुई साइकिल पर गयी, और  खाना बनाने का सामान बाजार से खरीद के घर पर रख आई,और उसके बाद इसके घर से इस प्रकार की कोई शिकायत नहीं आई |
   इस प्रकार की कन्या का विवाहित जीवन अन्धकार मय ना हो, इसके लिए मेरे मन से बहुत,बहुत आशीष निकलती है,और इसके उज्जवल भविष्य की कामना करता हूँ |

नववर्ष हर किसी के लिए सुख,समृधि लाये |

देखते,देखते वर्ष 2010 अपनी प्रारंभिक अवस्था में आ गया, और पुराना वर्ष 2009 समय की गर्त में चला गया, इस वर्ष के जन्म के समय बधाइयाँ,शुभकामनाये,मंगल कामनाये और और मस्ती का समय था, और मेरी एसी कामना है,यह सब इस वर्ष से लेकर हर वर्ष तक रहे, ना कहीं आतंकवाद के मासूम लोगों की जान लेने वाले  धामके हों, ना ही कहीं सवाइन फ्लू जैसी और भी किसी प्रकार की महामारी जगत में व्याप्त ना हो,ना कहीं पराकरतिक  जान लेवा आपदाएं हों, बस सब ओर स्नेह और सोहार्द्य का वातावरण हो |
  कहने का मतलब है,सतयुग जैसा वातावरण लौट आये, सतयुग ना हो तो कम से कम रामराज्य तो हो, अगर हम सब विश्व के लोग समवेत स्वरोंसच्चे मन  से सर्वशक्तिमान ईश्वर से प्रार्थना करें, तो संभवत: ऐसा हो जाये, कहतें हैं,सच्चे मन से की हुई प्रार्थना में अत्यंत शक्ति होती है, और हो सकता है ऐसी प्रार्थना ईश्वर स्वीकार कर ले |
 जिसका जो भी इष्ट हो उससे प्रार्थना करें, हिन्दुओं के सगुण या निर्गुण भगवान्, मुस्लिम संप्रदाय के लिए खुदा, सिख संप्रदाय के लिए वाहे गुरु, और इसाई धर्म वालों के लिए इसा मसीह,और भी जो संप्रदाय,जैन,बोध और विश्व के सब धर्म को मानाने वाले और सब से ऊपर मानव संप्रदाय इस प्रकार की प्रार्थना करेंगे तो निश्चित ही एक अच्छे युग को निर्माण होगा |
  आप कहेंगे इस लेख को वर्ष आरंभ होने से पहले लिखना चाहिए था, परन्तु मेरा  इस लेख को वर्ष के प्रथम महीने के छटे दिन लिखने का प्रयोजन यह था, कि बहुत से लोग नवर्ष के आगमन के स्वागत सत्कार में लगें होंगे,और अब तक तो इस स्वागत सत्कार से निवृत हो गयें होंगे, इसलिए मैंने इस लेख को लिखने का इस दिन का चुनाव किया |
 यह नववर्ष आपकी नयी योजनाओं को,आपकी सुख समृधि को,आप की सभी आशाओं को फलीभूत करे |
  इसी वाक्य के साथ अपने इस लेख को विराम देता हूँ |
  

लेबल

अभी तो एक प्रश्न चिन्ह ही छोड़ा है ? (1) आत्मा अंश जीव अविनाशी (1) इन्ही त्योहारों के सामान सब मिल जुल कर रहें (1) इश्वर से इस वर्ष की प्रार्थना (1) इसके उज्जवल भविष्य की कामना करता हूँ | (1) उस अविनाशी ईश्वर का स्वरुप है | (1) एक आशियाना जिन्दगी का (1) कब बदलोगे अपनी सोच समाज के लोगों ? (1) कहाँ गया विश्व बंधुत्व और सदभावना? (1) कहीं इस कन्या का विवाहित जीवन अंधकार मय ना हो | (1) किसी का अन्तकरण भी बदला जा सकता है (1) किसी की बात सुन कर उसको भावनात्मक सुख दिया जा सकता है | (1) कैसे होगा इस समस्या का समाधान? (1) चाहता हूँ इसके बाद वोह स्वस्थ रहे और ऑपेरशन की अवयाक्ष्ता ना पड़े | (1) जय गुरु देव की (1) जीत लो किसी का भी हिर्दय स्नेह और अपनेपन (1) डाक्टर साहब का समर्पण (1) पड़ोसियों ने साथ दिया (1) बच्चो में किसी प्रकार का फोविया ना होने दें (1) बस अंत मे यही कहूँगा परहित सम सुख नहीं | (1) बुरा ना मानो होली है | (1) मानवता को समर्पित एक लेख (1) मित्रों प्रेम कोई वासना नहीं है (1) में तो यही कहता हूँ (1) यह एक उपासना है । (1) राधे (2) राधे | (2) वाह प्रभु तेरी विचत्र लीला (1) वोह ना जाने कहाँ गयी (1) शमादान भी एक प्रकार का दान है | (1) सब का नववर्ष सब प्रकार की खुशियाँ देने वाला हो | (1) समांहुयिक प्रार्थना मैं बहुत बल है | (1)