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बुधवार, दिसंबर 29

आते हुये दिस्म्बर महिने की अन्तिम तिथी,और मध्य रात्री के बाद नववर्ष का स्वागत ऐसे करें तो कैसा है ?

रात्रिकाल का वर्ष के अन्तिम माह की मध्य रात्रि को बुड़ा हुआ वर्ष को नवजात नये वर्ष को सदा के लिये अलविदा कह कर जाता है,और इस आते हुये नववर्ष मनाने  के लिये हम लोग सुदूर देशों या अपने ही देश में यात्रा करते है, यदि हम यह सोचे कि बहुत से लोगो का तो समय एक ही स्थान पर जन्म से मृत्यु प्रन्त अपना सम्पुर्ण जीवन बिता देते हैं,उनके लिये तो नववर्ष का कोई मोल नही है,यदि हम लोग उनके होन्ठो पर मुस्कराहट और उनकी उदास आखों मे उस दिन आशा की चमक उत्प्न्न कर सकें तो कैसा रहे ? प्राय: यह शीतकालीन समय होता है, और इन लोगों के पास तन ढकने के वस्त्र नहीं है,और शीत लहर के कारण इनके हाड़ कम्पक्म्पाते है,यह बेबस मातायें,बहने बेटिया अपने फटेहाल वस्त्रॊ से, अपने तन को ढकने का असफल प्रयत्न करतीं है,इनको अगर अपने वोह वस्त्र जो हम लोग यदा कदा पुराने समझ कर उनका उपयोग नहीं करते या फेंक देते हैं,यदि इन बेबस लोगों को यही वस्त्र दे कर इनकी असफल प्रयत्न को सफल बनाने में सहयोग दें तो कैसा रहे ?
देर मध्य रात्री से बहुत  लाउडस्पीकर की तीव्र ध्वनि से प्रारम्भ करके और भोर के पहल्रे प्रहर तक के नाच गा कर हम अपना  मनोरंजन करते है, उनका भी हम सोचें जो रोगी है या उनके यहां कोई शोक है,यदि हम उनसे संवेदना नहीं रख पाते,कम से कम उनके रोग या शोक में इस उचीं ध्वनि से उनको कष्ट ना पहुंचा कर अपनी सभ्यता का परिचय दें तो कैसा रहे ? यदि ऊँची ध्वनि पर नाच गा कर नववर्ष का स्वागत करना ही चाहते हैं,तो ऐसे उपुक्त स्थान का चयन करें जिस स्थान से किसी को कष्ट ना  पहुंचे |
जब भी नववर्ष आता है, मदिरा का अनाप शनाप सेवन होता है,और लोग इसके नशे में अपना सयंम  खो देते हैं,अगर हम उन लोगों के बारे में भी किंचित सोचे जिनको दूषित जल पीने के लिए प्राप्त हो रहा है, और जो अनेक जल जनित रोगों को उत्पन्न कर रहा है,उनके बारें में भी ध्यान दें तो कैसा रहे ? हजारो,लाखों करोड़ों इस मदिरा के सेवन पर व्यय कर देते हैं,यदि हम उनके बारे में भी सोचे जो  आज कुछ धन जुटा पायें हैं,और कल कैसे जुटाएंगे उसकी चिंता है, उनकी थोड़ी आर्थिक सहयता कर दें तो कैसा रहे ? किसी को भी विदर्भ के किसानों की तरह कर्ज के बोझ के कारण आत्महत्या ना करना पड़े |
यदि हम लोग अत्यधिक  भोजन लेकर और अन्न देवता को फ़ेंक कर माँ अन्नपूर्णा का अपमान ना करके,उन लोगों के बारें में भी किंचित ध्यान दें उन लोगों का जो भूखे पेट रह कर अपनी दिन और रात बिता देतें हैं,कोई विवश माँ अपने नवजात शिशु को भूखी रह कर अपना दूध पिला रही है,उसके बारे में सोचे तो कैसा रहे ?
आखिर कार हमारा यह भारतवर्ष दया,दान,सहनशीलता,क्षमा इत्यादि गुणों के लिए विख्यात था,जो गुण अब अब धूमिल होते जा रहे हैं,या समय की गर्त में कहीं खो गएँ हैं,उन को पुन: जीवित करें तो कैसा रहे ? राष्ट्र,जाती,प्रान्त और भाषा का विवाद मिटा  कर विश्व बंधुत्व की भावना को पुन: जीवित करें तो कैसा रहे ?
व्यावहारिक क्रियाओं के लिए यदि कुछ किसी को सबक सिखाना भी पड़े,तो विषधर सर्प की भांति फुफकारना ना छोड़ें,परन्तु विष से आघात ना करें |
सब का नववर्ष सब प्रकार की खुशियाँ देने वाला हो | 

गुरुवार, दिसंबर 16

बिहारी जी की शरण में (भाग २)

गतांक से आगे
फेसबुक का सिलसिला तो चलता ही रहेगा,अभी मैंने फेसबुक का जो खाता फकीरा.चन्द के नाम से बनाया था,जैसे राजीव जी की मंत्रणा मुझे टिप्पणी के रूप में मिली थी,उस पर विचार करके उस खाते को अस्थायी रूप से बंद कर दिया है,और उसके बाद भी जो मेरा फेसबुक का खाता vinay532007@gmail.com के नाम से है,इस खाते को तुरंत खोल कर देखा,तो वोही फिशिंग की समस्या,फेसबुक को फकीरा चंद वाले खाते में,यह भी बता दिया है, कि मैंने इस खाते को क्यों अस्थायी रूप से बंद किया है, राजीव जी फकीरा वाले खाते में,मैंने स्वयं को अपना मित्र बना रखा है,और जब में फकीरा वाला खाता खोलता हूँ,में स्वयं को और अपने मित्रों को उसमें पाता हूँ, वोह मेरा फकीरा वाला खाता सुचारू रूप से चल रहा है,सम्भवत: आपने मेरा फकीरा वाला खाता देखा होगा,एक दो दिन बाद देखेंगे ऊंट किस करवट वैठेगा, और फेसबुक द्वारा बतये हुए,एंटी फिशिंग में रिपोर्ट भी
दे दी है, इस मसले को तो छोड़ते हैं बिहारी जी के पास जैसा उचित समझेंगे वोह करेंगे |
 अब वोह समय प्रभु कृपा से आ ही गया,कि उन सज्जन की कहानी बताऊँ,जिनोहने अपने को सम्पुरण रूप से बिहारी जी की शरण में छोड़ दिया है, मुझे तो उनके सम्पुरण व्यक्तिव के विरोधाबस ने आश्चर्य में डाल दिया है,वोह सज्जन उसी संस्था में एक उच्च अधिकारी के रूप में काम करते थे जिसमे में था मोदीपोन मोदीनगर में , क्योंकि में तो तकनिकी बिभाग में था,परन्तु वोह थे संस्था के संचालन बिभाग में,तो यह तो ज्ञात नहीं कब उनकी मोदीपोन संस्था को छोड़ने की अवधि आ गयी, हाँ उनका एक दम शानदार व्यक्तिव भौतिक रूप में,शानदार वस्त्र उनके शरीर पर,और संस्था के द्वारा दी हुई,ड्राइवर सहित एक एम्बेसेडर गाड़ी,जब उनकी संस्था छोड़ने की अवधि आयी,तो वोह और मालिकों के द्वारा अनेको प्रकार के प्रलोभन देने के बाद भी और संस्था को सेवा नहीं देना चाहते थे,उनका यही कहना था "अब तो में जाऊंगा गोवर्धन बिहारी जी की शरण में ",मालिक बोले फिर तो तुम्हे कोई पहचानेगा नहीं",उनका उत्तर "यही तो में चाहता हूँ", यह लेख लिखते,लिखते मुझे मीराबाई जो की एक राज कुमारी थीं,उनके पद की पंक्तिया याद आ रहीं हैं,जिनमे से प्रमुख तो यही है,"जिसके सिर पर मोर मुकुट है,मेरा तो पति सोई", और "लोक लाज खोई संतन के ढिग बैठ के",हैं तो बहुत सारी पर इस बात को यहींकह कर  समाप्त करता हूँ, "ऐसी लगी लगन मीरा प्रभु के गुण गाने लगी",एक राजकुमारी मीराबाई जिन्होंने सब कुछ त्याग कर एक सन्यासिन हो गयीं,संभवत: ऐसा ही उनका भाव था, और स्वामी परमहंस योगानन्द की यह पंक्तिया याद आ रही हैं,जब हम इस जग में आते हैं,तो हमको कुछ चीजे अस्थायी रूप से प्रयोग करने को दे दी जातीं हैं,और फिर ले लीं जातीं हैं, महान योधा सिकंदर जिसने दुनिया पर विजय प्राप्त की थी,उसने यह इच्छा जाहिर की थी,मेरी मृत्यु के समय पर मेरे दोनों हाथ ताबूत से बहार निकाल कर रखना,जिससे जग को यह पाता चले की में खाली हाथ आया था और खाली हाथ जा रहा हूँ, यह मैंने इस लिए उदहारण दिए कि संभवत: उनके मन में यहीं भाव होंगे,उन्होंने तो गोवर्धन की परिक्रमा के रास्ते  में अपना घर बना लिया था,और अपनी पत्नी के साथ वहाँ रह रहें हैं,चूँकि मेरे पिता जी मथुरा के हैं,इसलिए मुझे गोवर्धन जाने का और उनसे मिलने का सोभ्याग्य मिला,और उनके वस्त्र अस्त,व्यस्त थोड़ी,थोड़ी दाड़ी बड़ी हुई,और उनके घर में ही उनका साधना कक्ष, और हमारा सौभाग्य था,उन दिनों उनका मौन ब्रत नहीं था,नहीं तो वोह माह में १५ दिन का मौन ब्रत रखते हैं, अपने घर पर उन दोनों पति,पत्नी ने हमारा सत्कार घड़े के पानी पिला कर बाकि तो चाय इत्यादि पिला कर किया, बातों,बातों में पता चला कि उन्होंने फ्रिज रखा था, लेकिन एक दिन वोल्टेज अधिक आने पर उनका फ्रिज ख़राब हो गया, उन लोगों ने यह सोच कर फ्रिज ठीक नहीं करवाया,कि बिहारी जी नहीं,चाहते कि फ्रिज रखे ,उन लोगों ने दूरदर्शन भी रखा था,उसको बन्दर तोड़ गये,और उन्होंने यही सोच कर दूरदर्शन  ठीक नहीं करवाया बिहारी जी नहीं चाहते दूरदर्शन रखें बस केवल एक ट्रांजिस्टर ही है उनके पास, उनका कहना है कि यह इसलिए रखा है कि बहार का समाचार मिलता रहे और उनकी पत्नी की प्रशंसा करनी पड़ेगी कि वोह भी उनका साथ बखूबी निबाह रहीं हैं,यदा कदा वोह अपने बच्चो के पास चले जाते हैं,या उनके बच्चे उनके पास आ जातें, उनके घर के पास ही मोदिभावन हैं,जो भी उन लोगों के निमंत्रण आते हैं, यही सोच कर मोदिभावन के कर्मचारी उनको नहीं देते, कहीं मौन ब्रत में तो नहीं है |
बस उनकी आस्था के बारे में बात करके इस लेख को पूरण विराम देता हूँ, वोह स्वयं दिल के रोगी हैं, और एक बार वोह और उनके बच्चे पास ही बरसाने में,राधा रानी के दर्शन करने आये थे,वोह इतनी अधिक सीडिया चढ़ कर राधारानी के मंदिर में हिर्दय रोगी होते हुए भी सबसे पहले राधारानी के मंदिर में पहुँच गये,और कहना यह था आप एक कदम स्वयं चलते हो और प्रभु दस कदम चलाते हैं |

समाप्त

राधे,राधे |

मंगलवार, दिसंबर 14

(प्रथम भाग) बिहारी जी की शरण में |

कुछ व्यस्तताओं जैसे, फेसबुक की फिशिंग समस्या के चक्रवात से निकलने का प्रयत्न, जिसको बार,बार सुलझाने का असफल प्रयत्न क्योंकि इस फेसबुक में मेरे 68 मित्र हैं,और फेसबुक कहता है,"There seems some suspicious activity,your account has been temporary suspended due to pishing", इस फिशिंग का अर्थ तो मुझे पहले ज्ञात नहीं था, परन्तु इस महान फेसबुक ने मुझे कोई सहायता तो नहीं दी, परन्तु मुझे इस फिशिंग का का ज्ञान अवश्य दिया है, जिसका अर्थ मेरे अंतर्मन को आहात कर के यह ज्ञान दिया है, फिशिंग का अर्थ होता है,किसी ने बिलकुल फेसबुक लगने वाला साईट मेरे नाम से बना लिया है,यह अवश्य है,मैंने एक फेसबुक का खाता, fakira.chand@yahoo.com के नाम से अवश्य बनाया है,और इसमें में, श्री राजीव कुमार कुलश्रेष्ठ जी के हिंदी में लिखे हुए अध्यात्मिक लेखों का अंग्रेजी अनुवाद करता हूँ,फेसबुक के शीर्ष अधिकारीयों क्या यही मेरा अपराध है ?,में तो एक साधारण सा व्यक्तिव रखने वाला साधारण व्यक्ति हूँ,औरआप लोगों ने तो मुझे असाधारण समझ कर,इस फिशिंग रोग से अवगत कराया है,और भाई लोगों मेरे मेल में, फेसबुक वालों लोगों की प्रार्थना भेज कर मेरे जले पर नमक तो नहीं छिडको की में असहाय पर कटे पंछी की तरह तडपता रहूँ, सहयता ना दो तो यह काम ना करो, बार,बार मेरा चित्र दिखा कर पूछते हो,क्या यह आप हैं,और आप लोग जो,जो पूछते हो उसका उत्तर में हीं तो देता हूँ, और इस पहचान का यही परिणाम निकलता है,वोही धाक के तीन पात,संतोषजनक उत्तर पा कर फिर वोही वाक्य दोहराना और इस ब्लॉग का स्वामी भी में हूँ, इसमें में भी मेरा वोही चित्र है, जो फेसबुक में है, मेरे पास आधुनिक डिजिटल केमरा तो नहीं है, बस वोही चित्र होतें हैं,जो हमारे बेटी,दामाद खींच जाते हैं,और उनका भी आपकी फेसबुक में खाता है,इससे अधिक क्या सबूत
दूं ? आप फिशिंग रोग से ग्रस्त हो, यह लेख लिखते,लिखते दो बार, विद्युत् प्रबाह रुक गया था,लेकिन वोह तो फिर सुचारू होकर उसने मेरे लेख के प्रबाह को वेग दे दिया,परन्तु फेसबुक वालों जब हम भारतियों का किसी समस्या का हल नहीं निकलता तब हम कहते हैं,अब समस्या का हल प्रभु ही निकालेंगे,और मजबूर होकर हम लोग अपने मुखारविंद से श्री रामचरितमानस की यह चोपाई निकालते  हैं|
"होई है सो रामराची राखा |"
को करी तर्क बड़वाही शाखा || "
मेरे मित्रगनो ने मुझे यह सलाह दी दूसरा फेसबुक का खाता बना लो,फेसबुक वालों अब में यह ना करुँ तो क्या करुँ ?
 मित्रो एक तो लेख ना लिखने का कारण उपरोक्त था कारण था ,और दूसरा कारण यह है,कि मैंने एक अपना  वेबसाइट "www.vinay-sharma.qapacity.com" बना लिया है, और वोह साईट अपनी सबसे अच्छी मित्रों में से श्रीमती सरोजिनी साहू जी,जो कि एक प्रज्ञात लेखिका हैं,और मेरे मनोबल को दिशा देतीं हैं,उनके काम से श्री गणेश किया है और उस वेबसाइट पर प्रयोग करता रहा, "आज मुझे राजीव जी का मेल मिला" विनय भाई,क्या बात है,आप कहीं नजर नहीं आ रहे और ना ही कोई लेख लिख रहें हैं ",उनको तो मैंने उत्तर दे दिया था, कहते हैं ना,जब बीज को उपजाऊ भूमि मिलती है,तो बीज अंकुरित होता है,यही कारण है,जिस कारण मेरे मन में लेख लिखने का बीज
अंकुरित हो गया,नहीं तो हम तो फेसबुक के गम में बैठे हुए थे,और छोड़ दिया था,इस फेसबुक की समस्या को बिहारी जी की शरण में कह कर |
 में तो सब देवी,देवताओं,म्हापुरशों को मानता हूँ, पर इस बिहारी जी की शरण में मुझे क्यों याद आया,अगले लेख में,बहुत से लोगों को टिप्पणियाँ प्राप्त करने का मोह होता है,में भी इस रोग से अछूता नहीं हूँ,नहीं मिलती तो बिहारी जी की शरण में, अगले लेख में,उस व्यक्ति के बारे में लिखूंगा,जो कि मोदीपोन संस्था में एक बहुत ही बड़े अधिकारी थे, जब वोह अपनी नौकरी छोड़ कर जाने लगे तो उनको मालिकों ने अनेक प्रकार के प्रोलोभन दिए,यह भी कहा कोई तुझे जानेगा नहीं, लेकिन वोह नहीं रुके और उनका उत्तर था,यही तो में चाहता हूँ,और वोह अपनी पत्नी के साथ चल पड़े गोवर्धन और गोवर्धन कि प्रक्रिमा के रास्ते में,अपना आशियाना बना लिया है,और वोह मियां,बीवी दोनों गोवर्धन में सन्यासी जीवन व्यतीत कर रहें हैं |

बस इस लेख के इस प्रथम भाग का समापन यही कह कर करता हूँ |

"राधे,राधे बोले चले आएंगे बिहारी "
राधे,राधे |
                                                                                               (क्रमश: कब ? यह ज्ञात नहीं ?)

लेबल

अभी तो एक प्रश्न चिन्ह ही छोड़ा है ? (1) आत्मा अंश जीव अविनाशी (1) इन्ही त्योहारों के सामान सब मिल जुल कर रहें (1) इश्वर से इस वर्ष की प्रार्थना (1) इसके उज्जवल भविष्य की कामना करता हूँ | (1) उस अविनाशी ईश्वर का स्वरुप है | (1) एक आशियाना जिन्दगी का (1) कब बदलोगे अपनी सोच समाज के लोगों ? (1) कहाँ गया विश्व बंधुत्व और सदभावना? (1) कहीं इस कन्या का विवाहित जीवन अंधकार मय ना हो | (1) किसी का अन्तकरण भी बदला जा सकता है (1) किसी की बात सुन कर उसको भावनात्मक सुख दिया जा सकता है | (1) कैसे होगा इस समस्या का समाधान? (1) चाहता हूँ इसके बाद वोह स्वस्थ रहे और ऑपेरशन की अवयाक्ष्ता ना पड़े | (1) जय गुरु देव की (1) जीत लो किसी का भी हिर्दय स्नेह और अपनेपन (1) डाक्टर साहब का समर्पण (1) पड़ोसियों ने साथ दिया (1) बच्चो में किसी प्रकार का फोविया ना होने दें (1) बस अंत मे यही कहूँगा परहित सम सुख नहीं | (1) बुरा ना मानो होली है | (1) मानवता को समर्पित एक लेख (1) मित्रों प्रेम कोई वासना नहीं है (1) में तो यही कहता हूँ (1) यह एक उपासना है । (1) राधे (2) राधे | (2) वाह प्रभु तेरी विचत्र लीला (1) वोह ना जाने कहाँ गयी (1) शमादान भी एक प्रकार का दान है | (1) सब का नववर्ष सब प्रकार की खुशियाँ देने वाला हो | (1) समांहुयिक प्रार्थना मैं बहुत बल है | (1)