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सोमवार, मार्च 3

किसी को भी प्रभावित किया जा सकता है,केवल और केवल अपने व्यवहार से

किसी को भी प्रभावित किया जा सकता है,केवल और केवल अपने व्यवहार से 
आज बहुत दिनों के बाद एक बार फिर एक लेख लिख रहा हूँ ,कारण यह है,इसका में साक्षात् अनुभव कर चुका हूँ, अध्यात्म से लगभग ३०,३५ बर्षो से जुड़ा हुआ हूँ, मेरे गुरु जी योगदा सत्संग सोसाइटी के संथापक हैं, स्वामी प्रह्महन्स योगानंद जी,आत्मा के जो विषेश गुण हैं,प्यार,सहनशीलता इत्यादि इनका अनुभव बहुत पहेले करवा चुके हैं,और हम लोगों को यह भी अनुभव करवा चूकें है,हम वास्तव में आत्मा हैं,और परमात्मा से साक्षात्कार भी करने का तरीका भी बता चुकें हैं, मेरे लीये तो जो मेरी आत्मा को अच्छा लगता है,वोह अपना लेता हूँ, परन्तु सबसे उपयोगी बात यह है,अगर कोई दिशाहीन को दिशा दे,वोह तो ठीक है,पर सबसे उपयोगी बात यह है,अगर कोई चरित्र को हमारे सामने रक्खे ,और उससे शिक्षा मिले तो विश्व का कोई  धर्म हो कोइ पंथ हो,चारित्रिक शिक्षा से बड़ कर कोइ  नहीं,यह ऐसी मूक भाषा है,जिसका प्रभाव सब पर पड़ता है,किसी धर्मग्रंथ ,किसी गुरु  किसी पन्थ की आवश्यकता नहीं, समय की धारा ने मेरे को एक अध्यात्मिक संस्था से जोड़ दिया,जो मुझे कोई मुझे इसमें लायी थी ,उस समय उसको ज्ञात नहीं था,में योगी अमृतकथा हिंदी मेंऔर अंग्रेजी में लिखने वाले विश्वप्रसिद्ध लेखक  स्वामी योगानंद  जी का शिष्य हूँ,  इस संस्था में भी दैवी गुण जो आत्मा के स्वाभिक गुण हैं,उनको धारण करने की शिक्षा दी जाती है,क्योंकि उससे बहुत अच्छे सम्बन्ध हैं,पर जब मेने देखा उसकी वाणी में कटुता,जो कि दिल पर चोट कर जाये,अह्म जो अपने को मेरे से उच्च श्रेणी का समझे,समता का भाव ना रखे, यह समझे मेरे को उससे अच्छी प्राप्ति ना हो, और भी कुछ ऐसे लोग थे,जो मेरी बात सुनने को तय्यार ही ना हों,मझे लगने लगा  इस संस्था में ऐसे लोग हैं, तो इस संस्था से जुड़ने का क्या लाभ, में तो उस संस्था को छोड़ने की सोच चूका था,परन्तु उसी संस्था में ऐसे लोग मिले जिन्होंने मेरी बातों को सुना,मेरी जिज्ञासा को शांत किया,हाँ लाने वाली के मन मैं मेरे लिये अथाह प्रेम है,इसका परिचय उसने अपनी निडरता,निर्भीकता से दिया मेरे अच्छे के लिये वोह कुछ भी कर सकती है, मेरा अनुभव यही है,अपना उदारहण ही दे कर  सच्ची शिक्षा दी जा सकती है,इससे बड़ कर कोइ शिक्षा नहीं

लेबल

अभी तो एक प्रश्न चिन्ह ही छोड़ा है ? (1) आत्मा अंश जीव अविनाशी (1) इन्ही त्योहारों के सामान सब मिल जुल कर रहें (1) इश्वर से इस वर्ष की प्रार्थना (1) इसके उज्जवल भविष्य की कामना करता हूँ | (1) उस अविनाशी ईश्वर का स्वरुप है | (1) एक आशियाना जिन्दगी का (1) कब बदलोगे अपनी सोच समाज के लोगों ? (1) कहाँ गया विश्व बंधुत्व और सदभावना? (1) कहीं इस कन्या का विवाहित जीवन अंधकार मय ना हो | (1) किसी का अन्तकरण भी बदला जा सकता है (1) किसी की बात सुन कर उसको भावनात्मक सुख दिया जा सकता है | (1) कैसे होगा इस समस्या का समाधान? (1) चाहता हूँ इसके बाद वोह स्वस्थ रहे और ऑपेरशन की अवयाक्ष्ता ना पड़े | (1) जय गुरु देव की (1) जीत लो किसी का भी हिर्दय स्नेह और अपनेपन (1) डाक्टर साहब का समर्पण (1) पड़ोसियों ने साथ दिया (1) बच्चो में किसी प्रकार का फोविया ना होने दें (1) बस अंत मे यही कहूँगा परहित सम सुख नहीं | (1) बुरा ना मानो होली है | (1) मानवता को समर्पित एक लेख (1) मित्रों प्रेम कोई वासना नहीं है (1) में तो यही कहता हूँ (1) यह एक उपासना है । (1) राधे (2) राधे | (2) वाह प्रभु तेरी विचत्र लीला (1) वोह ना जाने कहाँ गयी (1) शमादान भी एक प्रकार का दान है | (1) सब का नववर्ष सब प्रकार की खुशियाँ देने वाला हो | (1) समांहुयिक प्रार्थना मैं बहुत बल है | (1)