हमारे काम वाली की लड़की के विवाह के लिए, उसके माता पिता ने खोज आरम्भ कर दी है, इस लड़की के पिता रिक्शा चालक हैं और माँ,घर घर में झाड़ू,पोछा और बर्तन मांजने का काम करती है, मूलत: यह लोग बिहार के गाँव भवानीपुर के रहने वाले हैं, कुछ वर्ष बंगाल में बिताने के बाद गाजियाबाद में बस गयें हैं, इस कन्या के माँ बाप वर की खोज के लिए, अपने गाँव भवानीपुर गएँ हुए हैं |
हमारी काम वाली की लड़की,अपनी माँ बाप की अनुप्स्थ्ती में हमारे घर में रह रही है, वैसे यह लड़की भी किसी डाक्टर के यहाँ अपनी माँ वाला ही काम कर रही है, लेकिन इस लड़की के भाग में उस घर के लिए रोटी बनाना भी है, यह सुबह उस घर के लिए सुबह 7.३० बजे निकल जाती है,और सायें 6.00 बजे उस घर का काम करके वापिस आ जाती है,और रविवार को उस घर के लिए सुबह 8.30 बजे निकल जाती है,और लौटती है वोही 6.00 सायं , इस लड़की की माँ को तो हमरे घर का समाप्त करने की इतनी जल्दी पड़ी होती है, कहीं गाड़ी ना छूट जाये,और इसी कारण वोह घर की सफाई का काम ठीक से नहीं करती, इसलिए मेरी पत्नी इस लड़की को रविवार के दिन घर की सफाई के लिए बुला लेती है, खैर आज कल इसके माँ बाप गए हें हैं,इसी कारण यह लड़की हमारे घर में रह रही है, इसकी माँ को तो यह आलम है, वोह अपने गंदे हाथ, घर के पर्दों से पोंछ कर पर्दों को गन्दा कर देती है (कभी लिखूंगा इस लड़की की माँ के बारे में ) |
यह लड़की नवीं कक्षा तक पड़ गयी है, इसके साथ सिलाई के काम सीखने के बाद शेष बचे हुए समय में लोगों के वस्त्र सिल कर अपनी आये भी कर लेती है, और यह हमारे घर हमारे नाती के गाजिआबाद में जन्म लेने के कारण यह हमारे साथ गाजिआबाद में ही रही थी, और उसके बाद मेरी हमारी बेटी के साथदिल्ली और नोयडा में रही थी,हमारे नाती के कुछ बड़े तक यह लड़की हमारे नाती को नर्सरी राहीम सुना कर दूध,खाना इत्यादि खिलाती, पिलाती थी, है, इस क्रम में इसका एक वर्ष बीत गया था,और इसी कारण यह थोड़ी बहुत अंग्रेजी बोलना सीख गयी है, एक इसकी माँ के भावनिपुर पहुचने के बाद,इस लड़की ने अपनी माँ से कुशल क्षेम पूछा, और कुछ दिनों के बाद इसकी माँ का फ़ोन आया तो, इस लड़की की माँ ने इससे बात करी और उसके बाद मेरी पत्नी ने इस लड़की की माँ से पूछा,क्या लड़का देखा ? तो इसकी माँ ने उत्तर दिया कि हाँ दो लड़के देखे और दूसरा वाला पसंद आ गया ,मेरी पत्नी ने पूछा उसका नाम क्या है? तो वोह बोली पता नहीं, तत्पश्चात मेरी पत्नी ने पूछा, लड़का क्या करता है? तो उत्तर मिला पड़ता है |
यह लड़की कहती है,मेरे को सारा जीवन किसी के साथ बिताना है,इसलिए में देख भाल कर विवाह करुँगी,में तो कमाने वाले लड़के से विवाह करुँगी,तो इसकी माँ इसको फटकार देती है,और कहती है गाँव में ऐसा ही होता है |
कहीं इस कन्या का विवाहित जीवन अंधकार मय ना हो |
गुरुवार, दिसंबर 24
गुरुवार, दिसंबर 17
विश्व बन्धुत्वा क्यों समाप्त होती जा रही है?
बहुत बार कुछ ब्लोग्गरों की टिप्पणियों में पड़ा है,ब्लोग्गरों में गुटबंदी हो गयी है, यह पड़ कर मेरे मस्तिष्क में यह विचार आया,आज क्यों विश्व बन्धुत्वा समाप्त होती जा रही है ? हमारा देश तो वसुधेव कुटुम्बकम के लिए प्रसिद्ध था और यह क्या होता जा रहा है ? हमारे यहाँ के सदभाव, सहयोग की भावना कहाँ जा रही है ? मुझे तो ज्ञात नहीं कि ब्लोग्गरों में गुटबंदी हो गयी है, में तो यथा संभव सब के ब्लॉग पड़ना चाहता हूँ, और टिप्पणियाँ भी देना चाहता हूँ, हाँ यह तो सच है, में ब्लोगों को अपनी रुचि के अनुसार पड़ता हूँ, और नये ब्लोग्गोरों को पड़ कर और उनके लेखों पर टिप्पणियाँ दे कर उनका उत्साह बढाना चाहता हूँ,परन्तु समय अभाव के कारण पड़ नहीं पाता हूँ |
बहुत बार असल जीवन में देखता हूँ, कोई किसी दूसरे से बात करता है,या इ मेल भेजे परन्तु दूसरी ओर से अकारण उत्तर ही नहीं मिलता,और पहले व्यक्ति को समझ ही नहीं आता एसा क्यों हो रहा है ? एक दम से कन्नी काटने से अच्छा है, आपस में मिल कर सदभाव से बात करो, और अक्सर देखा जाता है, अगर बात होती भी है तो आपस में विवाद एक दूसरे पर छिटाकशी और क्रोध स्थान ले लेता है, इस हिसाब से तो बच्चे अच्छे आज लड़े, घमासान लड़ाई भी हो जाती है, और उसके बाद एक दो दिन के बाद सब कुछ भूल कर मित्रता स्थान ले लेती है |
लोगों के जीवन में यह भी होता है, अगर दो लोंगो में अगर झगडा हो भी जाये और उन दोनों में किसी का दोष हो और दोषी व्यक्ति अपना व्यव्हार परिवर्तित भी कर ले और वोह क्षमा भी मांग ले, परन्तु दूसरा उसको दिल से क्षमा नहीं करता |
यह तो थी दो लोगों के विषय में बात,परन्तु बहुत बार यह भी देखने में आता है, बहुत बार छोटी,छोटी बातों पर दो समूहों में झगडा तो होता ही है, और दोनों समूह में,लाठियां,और अनेकों प्रकार के अस्त्र,शस्त्रों से प्रहार प्रारंभ हो जाता है, और दोनों समूहों में परस्पर दुश्मनी बड जाती है, क्यों होता है ऐसा ? और कुछ शरारती तत्व इसको और हवा देने लगतें है, क्या यह शिक्षा के अभाव के कारण है ? या यह नागरिक सभ्यता के अभाव के कारण है ? यह समूह क्यों नहीं समझते तीसरा तत्व इसका लाभ उठा रहा है ?
और पहले यह भी देखने में आया है, लोग अपने,अपने प्रान्त बनाने के लिए अकारण ही लड़ रहे थे, और आज भी वोह संघर्ष आज भी चल रहा है, जैसे है उसको यथावत क्यों नहीं रहने दिया जाता है,इस प्रकर के संघर्ष का क्या लाभ ? इस प्रकार संघर्ष का क्यों केवल धरा के छोटे से भाग के लिए ?
अब आता हूँ, विश्व में फेले हुए आतंकवाद पर, पाकिस्तान में खून खराबा, हिंदुस्तान में मुंबई पर ताज होटल पर और नरीमन पॉइंट पर आतंकी हमला, मुझे याद आता है,वोह बीता हुआ समय जब हम लोग हवाई अड्डे पर जाते थे किसी को लेने के लिए और छोड़ने के लिए तो,हवाई जहाज के समीप तक पहुँच जाते थे, परन्तु अब सुरक्षा कारणों से वीसिटर दीर्घा में बैठना पड़ता है, विमान अपहरण का नाम ही सुनने में आता था, और जब विदेश से आतें हैं,तो सुरक्षा कारणों से हवाई जहाज से उतरने के बाद में बस से आना पड़ता है |
कहाँ गया विश्व बंधुत्व और सदभावना?
बहुत बार असल जीवन में देखता हूँ, कोई किसी दूसरे से बात करता है,या इ मेल भेजे परन्तु दूसरी ओर से अकारण उत्तर ही नहीं मिलता,और पहले व्यक्ति को समझ ही नहीं आता एसा क्यों हो रहा है ? एक दम से कन्नी काटने से अच्छा है, आपस में मिल कर सदभाव से बात करो, और अक्सर देखा जाता है, अगर बात होती भी है तो आपस में विवाद एक दूसरे पर छिटाकशी और क्रोध स्थान ले लेता है, इस हिसाब से तो बच्चे अच्छे आज लड़े, घमासान लड़ाई भी हो जाती है, और उसके बाद एक दो दिन के बाद सब कुछ भूल कर मित्रता स्थान ले लेती है |
लोगों के जीवन में यह भी होता है, अगर दो लोंगो में अगर झगडा हो भी जाये और उन दोनों में किसी का दोष हो और दोषी व्यक्ति अपना व्यव्हार परिवर्तित भी कर ले और वोह क्षमा भी मांग ले, परन्तु दूसरा उसको दिल से क्षमा नहीं करता |
यह तो थी दो लोगों के विषय में बात,परन्तु बहुत बार यह भी देखने में आता है, बहुत बार छोटी,छोटी बातों पर दो समूहों में झगडा तो होता ही है, और दोनों समूह में,लाठियां,और अनेकों प्रकार के अस्त्र,शस्त्रों से प्रहार प्रारंभ हो जाता है, और दोनों समूहों में परस्पर दुश्मनी बड जाती है, क्यों होता है ऐसा ? और कुछ शरारती तत्व इसको और हवा देने लगतें है, क्या यह शिक्षा के अभाव के कारण है ? या यह नागरिक सभ्यता के अभाव के कारण है ? यह समूह क्यों नहीं समझते तीसरा तत्व इसका लाभ उठा रहा है ?
और पहले यह भी देखने में आया है, लोग अपने,अपने प्रान्त बनाने के लिए अकारण ही लड़ रहे थे, और आज भी वोह संघर्ष आज भी चल रहा है, जैसे है उसको यथावत क्यों नहीं रहने दिया जाता है,इस प्रकर के संघर्ष का क्या लाभ ? इस प्रकार संघर्ष का क्यों केवल धरा के छोटे से भाग के लिए ?
अब आता हूँ, विश्व में फेले हुए आतंकवाद पर, पाकिस्तान में खून खराबा, हिंदुस्तान में मुंबई पर ताज होटल पर और नरीमन पॉइंट पर आतंकी हमला, मुझे याद आता है,वोह बीता हुआ समय जब हम लोग हवाई अड्डे पर जाते थे किसी को लेने के लिए और छोड़ने के लिए तो,हवाई जहाज के समीप तक पहुँच जाते थे, परन्तु अब सुरक्षा कारणों से वीसिटर दीर्घा में बैठना पड़ता है, विमान अपहरण का नाम ही सुनने में आता था, और जब विदेश से आतें हैं,तो सुरक्षा कारणों से हवाई जहाज से उतरने के बाद में बस से आना पड़ता है |
कहाँ गया विश्व बंधुत्व और सदभावना?
सोमवार, दिसंबर 7
बच्चों पर मनोवगनिक दवाब डाल कर फोबिया से ना ग्रसित करें
फोविया का अर्थ है जीवन भर का एसा डर,जिससे इन्सान जीवन भर नहीं निकल पाता
अक्सर देखा जाता है, बच्चो के मातापिता अपनी एसी इच्छायें जो वोह अपने जीवन में प्राप्त करना चाहते थे,और जो किसी भी कारण अपुर्ण रह गयीं,वोह अपने बच्चो में उसके पुर्ण होना देखना चाहते हैं, प्रारम्भ में तो आजकल बच्चे पर पडाई का बोझ इतना अधिक होता है, जिसके कारण उसका बाल सुलभ जीवन दब गया है,किताबों के बोझ में, उसका बचपन खो गया है किताबो में, और तिस पर माँ,बाप की अपेक्षा कि वोह पडाई में सबसे अच्छा हो, अब सब बच्चो का मस्तिष्क एक सा तो होता है, और वोह अगर अपने साथियों में कुछ पीछे हो तो उसको दुत्कारना नहीं चाहिये, अगर आप एसा करते हैं, तो बच्चा एक फोबिया से ग्रसित हो जाता है कि मेरे साथी मेरे से बेहतर है, जो कि आगे चल कर उसका जीवन इस प्रकार से अभिशिप्त हो जाता है कि वोह प्रतिसपर्धा से घबराने लगता है, और वोह प्रतिसपर्धा में ठीक से भाग नहीं ले पाता,और आजकल तो प्रतिसपर्धा का युग है और इस प्रकार उसमें उतपन्न हुआ फोबिया उसमें एक हीन भावना पैदा कर देता है कि वोह परतिसपर्धा के योग्य नहीं है ।
धीरे,धीरे बच्चा उन कक्षा में आ जाता है, जहाँ से उसके भविष्य का निर्माण होता है,और माँ बाप अपनी अपुर्ण इच्छा को पुर्ण करने के लिये,उन विषयों का चुनाव करने के लिये कहतें हैं,जिन विषयों को किसी ना किसी कारण से वोह नहीं पड पाये जिस कारण से उनकी इच्छा पूरी नहीं हुई थी, और उसको अपने बच्चो में पूरा होना देखना चाहते हैं,चाहें बच्चे की उस में रुचि ना हो, और बच्चा बेमन से उन विषयों का चुनाव कर लेता है, और रूचि ना होने के कारण उसमें अचछा नहीं कर पाता तो उसकी हीन भावना और बड जाती है ।
अब एक और फोविया पर आता हूँ, जब बच्चे का स्वालम्बी होने का समय होता है तो उसको संघर्ष करने देने की बजाय आप उसके संघर्ष के कारण को अपने अनुभव से उसको संघर्ष ना करने देने की बजाय उसकी समस्या हल कर देतें हैं,और उसको संघर्ष की आदत नहीं रह जाती और आगे चल कर उसको एक फोविया हो जाता है कि में अकेले अपनी समस्या अपने आप हल नहीं कर सकता ।
वैसे फोविया बहुत प्रकार के होते हैं, गहरे पानी में जाने का फोविया,अन्धेरे का फोबिया और बहुत बार माँ बाप नासमझी में बच्चे को किसी प्रकार के जीव,जन्तु जैसे चमगादड़ के बारे में बताना कि वोह शरीर का खून चूस लेता है,तो चमगादड का फोबिया हो जाता है,इत्यादि,इत्यादी
बच्चो में किसी प्रकार का फोविया ना होने दें
अक्सर देखा जाता है, बच्चो के मातापिता अपनी एसी इच्छायें जो वोह अपने जीवन में प्राप्त करना चाहते थे,और जो किसी भी कारण अपुर्ण रह गयीं,वोह अपने बच्चो में उसके पुर्ण होना देखना चाहते हैं, प्रारम्भ में तो आजकल बच्चे पर पडाई का बोझ इतना अधिक होता है, जिसके कारण उसका बाल सुलभ जीवन दब गया है,किताबों के बोझ में, उसका बचपन खो गया है किताबो में, और तिस पर माँ,बाप की अपेक्षा कि वोह पडाई में सबसे अच्छा हो, अब सब बच्चो का मस्तिष्क एक सा तो होता है, और वोह अगर अपने साथियों में कुछ पीछे हो तो उसको दुत्कारना नहीं चाहिये, अगर आप एसा करते हैं, तो बच्चा एक फोबिया से ग्रसित हो जाता है कि मेरे साथी मेरे से बेहतर है, जो कि आगे चल कर उसका जीवन इस प्रकार से अभिशिप्त हो जाता है कि वोह प्रतिसपर्धा से घबराने लगता है, और वोह प्रतिसपर्धा में ठीक से भाग नहीं ले पाता,और आजकल तो प्रतिसपर्धा का युग है और इस प्रकार उसमें उतपन्न हुआ फोबिया उसमें एक हीन भावना पैदा कर देता है कि वोह परतिसपर्धा के योग्य नहीं है ।
धीरे,धीरे बच्चा उन कक्षा में आ जाता है, जहाँ से उसके भविष्य का निर्माण होता है,और माँ बाप अपनी अपुर्ण इच्छा को पुर्ण करने के लिये,उन विषयों का चुनाव करने के लिये कहतें हैं,जिन विषयों को किसी ना किसी कारण से वोह नहीं पड पाये जिस कारण से उनकी इच्छा पूरी नहीं हुई थी, और उसको अपने बच्चो में पूरा होना देखना चाहते हैं,चाहें बच्चे की उस में रुचि ना हो, और बच्चा बेमन से उन विषयों का चुनाव कर लेता है, और रूचि ना होने के कारण उसमें अचछा नहीं कर पाता तो उसकी हीन भावना और बड जाती है ।
अब एक और फोविया पर आता हूँ, जब बच्चे का स्वालम्बी होने का समय होता है तो उसको संघर्ष करने देने की बजाय आप उसके संघर्ष के कारण को अपने अनुभव से उसको संघर्ष ना करने देने की बजाय उसकी समस्या हल कर देतें हैं,और उसको संघर्ष की आदत नहीं रह जाती और आगे चल कर उसको एक फोविया हो जाता है कि में अकेले अपनी समस्या अपने आप हल नहीं कर सकता ।
वैसे फोविया बहुत प्रकार के होते हैं, गहरे पानी में जाने का फोविया,अन्धेरे का फोबिया और बहुत बार माँ बाप नासमझी में बच्चे को किसी प्रकार के जीव,जन्तु जैसे चमगादड़ के बारे में बताना कि वोह शरीर का खून चूस लेता है,तो चमगादड का फोबिया हो जाता है,इत्यादि,इत्यादी
बच्चो में किसी प्रकार का फोविया ना होने दें
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