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गुरुवार, अप्रैल 15

एक फिसिओथरेपी के डाक्टर ने प्रभाबित किया |

व्यस्तता के कारण ना तो कोई पोस्ट लिख पाया और ना ही पड़ पाया,एक तो दैनिक कार्य और पत्नी की फिस्योथरेपी के कारण उसको फिसियोथरेपी के लिए ले जाना,  और उसके फिसियोथेरपी  के व्यायाम कराना, के कारण समय का  अभाव सा बन गया था,अक्सर मेरे मस्तिष्क में हमारे समाज के करणाधारों के बारे में विचार आते हैं,जैसे शिक्षक जो हमें ऊँगली पकड़ कर हिंदी की वर्णमाला और अंग्रेजी की वर्णमाला का ज्ञान कराते हैं, जिस कारण हम लोग लिख और पड़ पाते हैं,और उतरोतर जैसे,जैसे हमारी बुद्धि का विकास होता है, यही शिक्षक लोग और हमें शिक्षा का ज्ञान देते हैं |
ऐसे ही दूसरा जो विचार आता है,चिकत्सक जो हम लोगों को अवस्वस्थ अवस्था से स्वस्थ अवस्था में लाते हैं,और निरोगी रहने में सहायता करते हैं, चाहे यह आय्रुवेदिक, होमियोपेथी या एलोपेथिक चिकत्सक हों,इसी क्रम में मेरे मस्तिष्क में मेरा सम्मत वाली अलका जी का विचार आ रहा है,जो अपनी आयुर्वेदिक चिकत्सा के बारे में लिख कर अप्र्ताय्क्ष और बीमारों का दूरभाष और घर पर आये मरीजो की चिकत्सा प्रत्यक्ष रूप से करती हैं, मेरी पत्नी की एक तो दोनों आँखों में मोतियाबिंद हो गया है, और अलका जी ने मेरे ब्लॉग की पोस्ट यह मेरी शतकीय पोस्ट है,उस पर टिप्पणी दे कर एक बहुत ही सरल आयुर्वेदिक चिकत्सा बताई है, जिससे और भी लोग लाभान्वित हो सकते हैं, बस विडम्बना यह है संभवत: बहुत ही कम लोग मेरी पोस्ट पड़ते हैं,जैसा मुझे नाम मात्र की मेरी पोस्ट पर आई टिप्पणियों से लगता है, कोई पड़े या नहीं पड़े बस में तो यह चाहता हूँ,कि लोगों को लाभ मिले इसीलिए मैंने यह वाक्य लिख दिया है, में कोई साहित्यकार तो नहीं हूँ,जो कि सहितीय के रूप में लिखूं, कभी कविता लिखा और बोला करता था, लेकिन वोह तो समय की गर्त में चला गया, ना ही  मेरे पास इतना अवकाश है,कि अलग,अलग विषयों पर लिखूं या  पडूं,बस जीवन के खट्टे,मीठे अनुभव हैं, जो कि मेरे लेखों में होते हैं |
 अब आता हूँ,मूल विषय पर मेरी पत्नी की दोनों टांगों में किसी भी टांग में असहनीय पीड़ा हो जाती थी, उसको हड्डियों के चिकत्सक को दिखाया, और उन चिकत्सक ने दवाइयां दी पर कोई प्रभाव ना पड़ा, और जब कुछ अच्छा या बुरा होना होता है,उसका क्रम बन जाता है, और हमारा अच्छा होने का सयोंग बन गया, उन चिकत्सक ने फिसियोथरेपी चिकत्सक जिनका नाम है, डाक्टर संदीप त्यागी का पता दिया, डाक्टर संदीप त्यागी थोड़े से पक्षाघात से ग्रसित हैं, और उनके क्लिनिक का नाम है माही फिसियोथरेपी और यह डाक्टर संदीप त्यागी पूर्णतया मरीजो से समर्पित हैं, में अपनी माता जी को किसी समय सपोंदयलितिस के इलाज के लिए दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में ले जाता था, वहाँ तो गर्दन में मशीन कुछ समय के लिए लगाई और हो गई छुट्टी और इसके अतिरिक्त कुछ नहीं, परन्तु यह माही क्लिनिक में डाक्टर संदीप त्यागी मशीनों से इलाज तो करते ही हैंअब, और उनको व्यायाम भी कराते हैं, जब में अपनी पत्नी को लेकर गया तो डाक्टर साहब ने हाथ से टांग पकड़ के ऊपर करते रहे और पूछने लगे,जिस स्थिति में अधिक पीड़ा हो तो बताना, उसमे तो श्रीमती जी को कोई अधिक पीड़ा नहीं हुई और फिर उन्होंने पत्नी की कमर पर अंगूठे से स्थान,स्थान पर दवाब डाला और पूछनेलगे जहा अधिक दर्द हो तो बताना और कमर के  एक स्थान पर अधिक पीड़ा हुई, और पत्नी की टांग में नहीं बल्कि मूल कारण कमर का निकला और डाक्टर साहब ने बताया यह शियातिका है, पहली बार मैंने फिसियोथरेपी के चिकत्सक को इस प्रकार रोग की जाँच करते देखा है, सब ही उनके क्लिनिक में आने वालों को इस प्रकार जाँच करते देखा है, हर किसी रोगी को वोह वयाम भी कराते हैं,चुटकुले इत्यादि सुना कर और विभिन्न प्रकार से अपने क्लिनिक का माहौल हल्का फुल्का बना के रखते हैं, इस लेख का लिखने का यही कारण है,किसी को फिसियो थरेपी की आवश्यकता हो तो वोह मुझ से संपर्क कर सकता है, मुझे उनका पता याद नहीं,परन्तु घर के समीप ही है,उनका पता लाने में मेरे को कोई परेशानी नहीं है |
  अब डाक्टर संदीप त्यागी मेरी पत्नी को एक दिन छोड़ के बुला रहे हैं, उन्होंने घर पर करने के लिए मेरी पत्नी को कुछ व्ययाम बता रखे हैं, और जब भी में अपनी पत्नी को लेकर उनके पास जाता हूँ, तो मुझ से पूछते हैं,क्या आपकी पत्नी घर पर व्ययाम कर रही हैं,ऐसा है उनका समर्पण भाव और कोई रोगी उनसे पूछता है,कि कितने दिनों में ठीक होंगे तो वोह कहते हैं,यह तो आप के ऊपर निर्भर हैं |
 उसी क्लिनिक में मेरी पत्नी की एक मित्र आतीं हैं,उनकी भुजा  में पीड़ा है, कुछ दिन बाद मैंने अपनी पत्नी की मित्र की भुजा में सूधार देखा, तो मैंने डाक्टर साहब से कहा इनकी भुजा में तो सूधार हैं,तो बोले यह तो यही बतायगीं ऐसा है मरीजो के प्रति इन डाक्टर साहब का समर्पण |

लेबल

अभी तो एक प्रश्न चिन्ह ही छोड़ा है ? (1) आत्मा अंश जीव अविनाशी (1) इन्ही त्योहारों के सामान सब मिल जुल कर रहें (1) इश्वर से इस वर्ष की प्रार्थना (1) इसके उज्जवल भविष्य की कामना करता हूँ | (1) उस अविनाशी ईश्वर का स्वरुप है | (1) एक आशियाना जिन्दगी का (1) कब बदलोगे अपनी सोच समाज के लोगों ? (1) कहाँ गया विश्व बंधुत्व और सदभावना? (1) कहीं इस कन्या का विवाहित जीवन अंधकार मय ना हो | (1) किसी का अन्तकरण भी बदला जा सकता है (1) किसी की बात सुन कर उसको भावनात्मक सुख दिया जा सकता है | (1) कैसे होगा इस समस्या का समाधान? (1) चाहता हूँ इसके बाद वोह स्वस्थ रहे और ऑपेरशन की अवयाक्ष्ता ना पड़े | (1) जय गुरु देव की (1) जीत लो किसी का भी हिर्दय स्नेह और अपनेपन (1) डाक्टर साहब का समर्पण (1) पड़ोसियों ने साथ दिया (1) बच्चो में किसी प्रकार का फोविया ना होने दें (1) बस अंत मे यही कहूँगा परहित सम सुख नहीं | (1) बुरा ना मानो होली है | (1) मानवता को समर्पित एक लेख (1) मित्रों प्रेम कोई वासना नहीं है (1) में तो यही कहता हूँ (1) यह एक उपासना है । (1) राधे (2) राधे | (2) वाह प्रभु तेरी विचत्र लीला (1) वोह ना जाने कहाँ गयी (1) शमादान भी एक प्रकार का दान है | (1) सब का नववर्ष सब प्रकार की खुशियाँ देने वाला हो | (1) समांहुयिक प्रार्थना मैं बहुत बल है | (1)