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शनिवार, अक्तूबर 31

संजीवनी संस्था (मनोरोगियों के लिए )

संजीवनी संस्था को गूगल में खोजा पर मिली नहीं,संभवत: बंद हो गयी होगी, यह एक ऐसी संस्था थी जिसमें मनोरोगियों की चिकत्सा मानसिक चिकत्सक और मनोरोगी चिकत्सक  दोनों प्रकार के चिकत्सक के द्वारा निशुल्क  होती थी, हमारे देश में मानसिक चिकत्सक तो हैं,परन्तु मनोरोगी चिकत्सक का बहुत अभाव है, अपने लेख मनोरोगी चिकत्सक और मानसिक चिकत्सक अंतरके बारे  में लिख चुका हूँ,इन दोनों में क्या अंतर है, संक्षेप में बता रहा हूँ, मानसिक चिकत्सक अपने औजारों के द्वारा देखते हैं कि,उनके औजारों द्वारा की हुई क्रिया की पर्तिक्रिया शरीर किस प्रकार करता है,और E.E.G मशीन के द्वारा मस्तिष्क द्वारा निकली हुई तरंगो का अध्यन किया जाता है,और मनोचिक्त्सक मनोरोगियों के द्वारा अति सूक्ष्मता से, मनोरोगी की नित्य प्रतिदिन होने वाली क्रिया का अध्यन होता है,और मनोरोगी चिकत्सक मनोरोगी कोउसी आधार पर  परामर्श देते हैं, मानसिक चिकत्सक अपने औजारों के द्वारा शरीर कि पर्तिक्रिया और प्रश्न पूछने पर मनोरोगी को दवाई देते हैं |
  संजीवनी संस्था में यह दोनों प्रकार के चिकत्सक थे, मनोरोगी चिकत्सक अधिकतर महिलाएं थीं,और मानसिक चिकत्सक में अधिकतर पुरुष वर्ग था, संभवत: मनोरोगी चिकत्सकों का होना स्त्री वर्ग इसलिए था,स्त्रियाँ अधिकतर पुरुष से अधिक संवेदन शील होतीं हैं, उनके शरीर की रचना मात्रितव के अनकूल होता हैं,वाणी में कोमलता होतीं हैं, मेरे विचार से यही कारण रहा होगा,अधिकतर मनोचिक्त्सक का स्त्री वर्ग था, और पुरुष में संवेदना स्त्रियों के अपेक्षा कम होती है, और वाणी में कठोरता होती हैं, संभवत:  इसीलिए संभवत: कहते हैं, women are from venus, men are from mars वीनस अर्थार्त शुक्र, जो कि प्रेम का परतीक है, और मार्स यानि मंगल कठोर है, हमारे शहर एक चिकत्सालय हैं जिसमे एक स्त्री मनोचिक्त्सक आती है,शायद ऊपर लिखा हुआ कारण होगा |
  में जब युवावस्था में था, मेरा जाना इस संजीवनी संस्था में हुआ था, उस समय यह संस्था अपने शैशव अवस्था में थी, और इसमें वोह लोग थे जो कि किसी की भी किसी प्रकार की बात सुनते थे,उस  प्रकार की बातें जिसको बहुत से लोग सुनना नहीं चाहते हैं, और लोग अपने मन को बात करने के पश्चात हल्का समझते थे, किसी प्रकार का व्यंग्य नहीं,किसी प्रकार का उपहास नहीं,और यह संस्था अपना स्थान बदलती रहती थी, जब मेरा पहली बार जाना हुआ था तो यह दिल्ली के कनाट प्लेस में थी, में किसी मनोरोगी को लेकर गया था, उन लोगों ने कौंसेलिंग करके उस आल इंडिया इंस्टिट्यूट  मनोरोगी को मनोचिक्त्सक को दिखाने के लिए कहा था, में उसको आल इंडिया इंस्टिट्यूट में ले गया था, परन्तु वहाँ उसकी ठीक से चिकत्सा हो नहीं पाई थी, उन दिनों मेरे किसी मित्र ने एक मानसिक चिकत्सक का नाम बतया तो जो तीन दिन हापुर में बैठते हैं,और तीन दिन दिल्ली में, जो कि मेरे अच्छे मित्र भी बन चुकें हैं,उन्होंने उस रोगी से प्रश्न पूछे, उसका E.E.G किया और उसको दवाइयाँ दी,अब वोह मनोरोगी विल्कुल ठीक है |
फिर बहुत वर्षों के बाद मेरा इस संजीवनी संस्था में जाना हुआ,तो यह पूरी तरह से आत्मनिर्भर हो चुकी थी, इस संस्था में दोनों प्रकार के चिकत्सक मानसिक चिकत्सक और मनोरोग चिकत्सक थे, और इस संस्था में डिप्रेशन से लेकर नर्वस ब्रेक डाउन की चिकत्सा होती थी, गूगल पर इस संस्था को खोजने पर नहीं मिली, किसी भी को इसके बारे में पता हो तो मुझे सूचित करें |

  धनयवाद

गुरुवार, अक्तूबर 29

कैसे बचेगा इस बच्चे का पडाई से समबन्धित से भविष्य |

आज सोच रहा था कि, संजीवनी संस्था के बारे में लिखूं  जो कि मनोरोगियों की चिकत्सा करती थी, पहले भी लिख चुका हूँ, कि इसको में थी,इसलिए कह रहा हूँ,गूगल पर खोजने पर नहीं मिली, परन्तु अचानक मन में एक कसक उठी कि आज शिक्षा व्यापार क्यों हो गई ? वोह लोग जो बच्चों को पड़ा लिखा कर बच्चो का भविष्य सुधारते है ,उन लोगों ने शिक्षा को व्यापार क्यों बना लिया?
  शिक्षक तो वोह होतें हैं,जो बच्चे की ऊँगली पकड़ के उस प्रकार  क.ख .ग पढाते हैं,जिस प्रकार माँ बच्चे की ऊँगली पकड़ के चलना सिखाती है, पहले तो बच्चे के कदम लड़खाते हैं,वोह गिरता है,उठता है, फिर गिरता है,उठता है,और इस प्रकार धीरे,धीरे चलना सीख जाता है, और उसके पश्चात दोरने लगता है,इसी प्रकार प्रारंभिक कक्षा के शिक्षक उसकी ऊँगली पकड़ के लिखना सिखाते हैं,और उतरोतर बच्चा कक्षा की सीडिया चड़ता जाता है,और आने वाली कक्षाओं में और ज्ञान प्राप्त करता है, और बच्चे का विकास इंजिनियर,डॉक्टर,वकील,जज,प्रशसनिकसेवा इत्यादि  के लिए हो जाता है |
  इस विकास में,नवीं,दसवीं,ग्यारहवीं,बारहवीं कक्षा का बहुत महत्व है, और कुछ बनने के लिए यह क्रम नवीं कक्षा से प्रारंभ होता है, और उतरोतर बारहवीं कक्षा के बाद,अधिकतर बच्चे,डॉक्टर,अभियंता ,वकील इत्यादि बनने के लिए कमपिटीटीव परीक्षा की तयारी करते हैं, और उसमें सफल ना होने के बाद या यह परीक्षाएं ना भी देने के बाद इनका क्रम  स्नातक ,सनातोक्तर,या डॉक्टरेट की ओर हो जाता है,कहने का मतलब है,आधार तो नवीं कक्षा से ही प्रारंभ होता है |
   मेरी पेट के दर्द की वीमारी के समय  एक कंपाअंडर मुझे  इंजेक्शन लगाने के लिए आते थे , उसने मेरी पत्नी से कहा, मेरे बेटे को अंग्रेजी की टूशन पड़ा देंगी वोह नवीं कक्षा में पड़ता है ? मेरी पत्नी ने उसको हाँ कर दी, कुछ दिन तो मेरी पत्नी उसको पढाती रही, फिर मेरी पत्नी ने मुझ से कहा,आप इस को पड़ा दिया करो, और मैंने देखा वोह अंग्रेजी में कुछ नहीं कर पाता था, मैंने उस बच्चे से पुछा कि तुम्हारे स्कूल वाले कैसे पडाते हैं,वोह बोला हम लोगों को कुछ चीजे पड़ा देते हैं,और वोही परीक्षा में आ जातीं हैं,में तो उसकी इस बात से हैरान रह गया, फिर एक दिन मेरे पास वोह अपनी गणित की पुस्तक लाया,और उसने मुझसे कोई गणित का सवाल पुछा,जो कि में नहीं कर पाया, हमारे समय के गणित और इस समय के गणित में भी बहुत अंतर आ चुका है,और ना ही मेरा दिमाग उतना तीव्र है,जितना अपने समय में हुआ करता था,और गणित भी एक विषय था जिसके प्रश्न को उत्तर मुझे अपनी इंजीनियरिंग की परीक्षा के लिए देने थे,हो सकता बड़ती आयु के कारण दिमाग उतना  तीव्र ना रहा हो|
  खैर मैंने उस बच्चे के पिता को उस स्कूल के तरीके से अवगत कराया,तो उसके पिता ने कहा, "मेरे पैरो के नीचे से तो जमीन ही खिसक गयी" |
   उस बच्चे के पिता को उस बच्चे के एडमीशन के समय पर कोई उचित परामर्श देने वाला नहीं था, इस बच्चे में पड़ने की लगन भी है,और जो भी इसको सिखाओ इस बच्चे की बुद्धि उसको ग्रहण कर लेती है, यह बेचारा बच्चा अच्छे स्कूल में दाखिला लेने का प्रयत्न कर रहा है, लेकिन उस स्कूल में दाखिले से पहले बहुत कड़ी पर्तिस्पर्धा होती है, हम लोग तो इस बच्चे को हतोउतसहित नहीं करते,परन्तु अगर इसका दाखिला नहीं हो पायेगा तो इसके मस्तिष्क पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ेगा, इसके हिर्दय पर तो तुषारापात हो जायेगा, इस बच्चे का ही नहीं और बच्चो के भविष्य के साथ इस स्कूल वाले इस प्रकार शिक्षक और शिष्य के भविष्य ना बना कर गहन अन्धकार में, धकेल रहये हैं,और भी विषय इस स्कूल में इसी प्रकार से पढाते होंगे, माँ बाप ना जाने कितनी आशाएं रखते हैं, इस बच्चे के पिता कह रहे थे, "में दो समय की रोटी नहीं खाऊँगा,बस मेरे बच्चे का भविष्य बन जाये", और इस प्रकार के स्कूल बच्चों और अभिभावकों के साथ इस प्रकार से खिलवाड़ करतें हैं, इस समस्या का कोई उचित समाधान बता सकता है क्या? मेरा इस पोस्ट को लिखने का मतलब यही था,कोई इस समस्या का समाधान बताये तो,इस बच्चे का भविष्य तो उज्जवल हो जाये,और बाकि इस स्कूल में पड़ने वाले इसके साथियों का |
   इस स्कूल वालों ने वाकई में,विद्यार्थी शब्द को बदनाम करके इसको विद्या की अर्थी बना दिया है,साधारण तौर पर में इस प्रकार की असभ्य भाषा को उपयोग नहीं करता,परन्तु इस स्कूल ने मुझे इस प्रकार की भाषा का प्रयोग करने के लिए विवश कर दिया, और हिंदी लिखते समय  अंगेरजी के शब्दों का भी प्रयोग करने से बचता हूँ,परन्तु इस स्कूल के व्यवहार के कारण बहुत सारे शब्द  अंग्रेजी के आ गये हैं, इस स्कूल ने मुझे झकजोर दिया है |

सोमवार, अक्तूबर 19

स्नेह और अपनेपन से जीता जा सकता है,लोगो का हिर्दय ।

ईश्वर द्वारा रचित इस संसार में,अनेकों जीव जंतु जड़,चेतन वस्तुएं हैं, जंतुओं में तो अधिकतर जानवर ऐसे हैं, जो कि किसी के भी दिए हुए है  स्नेह और अपनेपन द्वारा प्राप्त ख़ुशी का एहसास निस्वार्थ रूप से पर्दर्शित करते है, अगर किसी भी कुत्ते को आप रोटी या कोई खाने कि वस्तु देंगे या उसके सिर पर स्नेह  से हाथ फेरेंगे  तो वोह अपनी पूँछ हिला कर अपनी ख़ुशी पर्दर्शित करेगा, गाय की गर्दन को प्यार से सहलायेंगे तो वोह अपनी गर्दन उठा कर और सहलाने के लिए प्रार्थना करेगी,इस प्रकार वोह आपके स्नेह का उत्तर देगी, परन्तु ईश्वर द्वारा रचित सबसे जटिल प्राणी है वोह है इंसान, और इंसान भी स्नेह की अपेक्षा रखता है, परन्तु कुछ इंसान स्नेह का परतिकार भी करते हैं,परन्तु अधिकतर लोगों का हिर्दय स्नेह और अपनेपन से जीता जा सकता है, इंसान के रूप में मुझे हीरे मिले अपने ब्लॉग www.vinay-mereblog.blogspot.कॉम में उन लोगों का वर्णन कर चुका हूँ, जिनमे सेवा का निसवार्थ भावः है |
  अपनी इस पोस्ट में,उन लोगों का वर्णन करने जा रहा हूँ, जिन लोगों को मैंने थोड़ा सा स्नेह और अपनापन दिया और वोह हर समय हमारी सहायता के लिए तत्पर रहते हैं,या जिन लोगों ने हमारे हिर्दय में स्थान बनाया है |
   सबसे पहले में अपने राशन वाले का नाम लूँगा जिसने हमारे संकट के समय में हमारे दिल में स्थान बनाया, घटना उस समय से सम्बंधित है, जब हमें अपनी बेटी का विवाह करना था, बेटी के विवाह के लिए उपूयुक्त वर मिल चुका था, विवाह की तारीख शने: शने: खिसकती हुई समीप आ रही थी, विवाह के समय के लिए मेरी पत्नी ने उस हलवाई से बात कर ली थी, जिसने उसके परिवार में अधिकतर विवाह संपन कराये थे, अंतत: वोह समय भी आ गया था, जब उक्त हलवाई ने विवाहउत्सव में दिए जाने के लिए बारातियों के लिए शादी की पार्टी में देने वाले भोज्य पदार्थ की सामग्री लिखवानी थी, हलवाई ने सामान लिखाया तो हम दोनों यानि कि में और मेरी पत्नी उलझन में पड़ गए, इन सामग्रियों का प्रबंध कैसे हो?
 स्योंगवश उन्ही दिनों में हमारा राशन वाला आ गया, और उसको हमने अपनी समस्या बताई, तो उसने हमारी सहायता करने की बात कही,और उसने उस बात को चरितार्थ किया, उस राशन वाले ने अपनी होने वाली हानि की ओर ध्यान ना देकर सात दिन तक अपनी राशन की दूकान बंद रखी, और जुट गया हमारे द्वारा देने वाली  बारातियों की पार्टी के लिए सामान एकत्रित करने में, और इस प्रकार हमारी पुत्री का विवाह हो गया धूमधाम से, इस प्रकार उस राशन वाले ने हमारे हिर्दय में सदा के लिए स्थान बना लिया |
  अब वर्णन करता हूँ,उस टैक्सी स्टैंड वाले के बारे में, जिसके हिर्दय में स्नेह और अपनेपन से स्थान बनाने में में  सफल हुआ, में अपनी गाड़ी बेच चुका हूँ,कहीं जाना होता है,तो टैक्सी बुला लेते हैं,और उस टैक्सी में सवार होकर अपने गंतव्य स्थान पर चले जाते हैं, और जितना समय अपने गंतव्य स्थान पर विताना होता है,वोह विता कर के उसी टैक्सी से  अपने घर लौट आते हैं |
   इस संसार में परतेक प्रकार के लोग होते हैं, हम लोग किसी की टैक्सी को आने जाने के लिए  कुछ वर्षो से उपयोग कर रहे थे, हम लोग उस  टैक्सी वाले जाने से कुछ दिन पहले बता देते थे,कि हम अमुक दिन,अमुक समय और अमुक स्थान पर जायेंगे, राखी का पर्व पड़ने वाले दिन से उस टैक्सी वाले को हम अपनी बेटी के यहाँ जाने को सूचित कर चुके थे, अब शने:शने: दिन समीप आते हुए आ गया राखी का दिन, मेरी पत्नी ने उसको फ़ोन किया तो उसने आने को मना कर दिया, बाद में यह कहने लगा में छोड़ आऊंगा,और जब आप लोगों को आना होगा तो फ़ोन कर देना में आ जाऊंगा, जब उससे पुछा पैसे कितने लोगे तो बोला डबल, राखी के दिन शहर में कोई टैक्सी नहीं थी,और लालचवश वोह इस चीज का लाभ उठा रहा था,आखिरकार हमने उसको मना कर दिया |
  अपनी बेटी के घर राखी के दिन जाना तो अवश्य था, में निकाल पड़ा टैक्सी कि खोज में, पहुँच गया एक टैक्सी स्टैंड पर,उस टैक्सी स्टैंड से में एक बार टैक्सी ले जा चुका था, और उसके साथ ही उस ही  चबूतरे पर बैठ गया जिस पर वोह बैठा था ,और उससे स्नेह और अपनत्व से बाते करने लगा, उस समय शायद उसके दिमाग में कोई टैक्सी नहीं थी, इसलिए उसने टैक्सी के लिए मना कर दिया,अ़ब में भटक रहा था, दूसरे टैक्सी स्टैंड की खोज में,और सयोंग से उक्त टैक्सी स्टैंड वाले के सामने से गुजरा,उसने मुझे आवाज दी में उसके पास पहुँच के फिर बैठ गया उसके साथ चबूतरे पर उसने किसी टैक्सी को फ़ोन करके हमें टैक्सी उपलब्ध करा दी,उसके बाद एक समय ऐसा आया दिवाली से एक दिन पहले, जबकि शहर में कोई टैक्सी नहीं उपलब्ध नहीं थी, उसने हमें टैक्सी उपलब्ध करायी,और उसका कहना यह है,कि आपके लिए एक टैक्सी हमेशा आपके लिए रहेगी  ,जब भी आवयश्कता हो तो यहाँ से ले जाना |
  अब वोह भी वर्णन करता हूँ, कि इन्टरनेट चेट करते समय, एक अमरीकन महिला के हिर्दय में, में स्थान पाने में सफल हो गया, वैसे तो इन्टरनेट पर में कम ही चेट करता हूँ,हाँ कभी दिन,प्रतिदिन की व्यस्तता से ऊब जाता हूँ,तो फ्लैश में चेट करता हूँ,मतलब कि जहाँ,बहुत सारे लोग होतें हैं,वहाँ पर में चेट करता हूँ,एक ऐसे सोशल साईट पर मैंने रजिस्ट्रेशन कर रखा है, एक दिन में अपनी दिन ,पर्तिदिन ऊब को मिटाने के लिए,उस साईट पर चेट कर रहा था,वहाँ एक अमरीकन महिला थी,जो  अपने बॉय फ्रेंड से बात उस प्रकार बात नहीं कर पा रही थी जैसे वोह किया  करती थी, किन्ही कारणों से वोह अपनी गर्ल फ्रेंड से बात करने से डर रहा था,अमरीका  जैसे देश में यह बॉय फ्रेंड और गर्ल फ्रेंड का किस्सा तो आम ही होता है,खेर दोनों लोग आपस में खुल कर बात नहीं कर पा रहे थे, मेरी चेटईंग तो उस महिला से हो रही थी, उसकी समस्या को बहुत देर तक समझता रहा, उसकी समस्या मुझे बहुत देर बाद सपष्ट हुई, शायद आधा,पोना घंटा लग गया था, जब तक मुझे उसकी समस्या स्पष्ट नहीं हुइ थी, धैर्य से उस महिला से वोह प्रशन पूछता रहा,जिससे मुझे उसकी समस्या का आभास हो जाये,एक तो उस महिला से केवल नेट पर ही बात हो रही थी, वैसे अमरीका गया अवश्य हूँ,परन्तु मुझे नहीं मालूम था,उसका क्या परिवेश था, जब उसकी पूरी समस्या मुझे स्पष्ट हो गयी,तो मैंने उसको सुझाब देना प्रारंभ किया और उसकी शंका का भी समाधान करता रहा,और वोह मेरी उसके साथ बातचीत स्नेह और अपनत्व के साथ थी, उस महिला का संपर्क अपने बॉय फ्रेंड के साथ पुरबबत हो गया,और दुबारा जब उससे मेरी बात हुई तो वोह किसी और से बात करते हुए मेरा नाम लेते हुए बोली,कि इस क्रिसमस को सांता से  इसको मांगेगी|
 स्नेह और अपनत्व में वोह शक्ति है,जो कि बड़ी,बड़ी,तोपों,गोलों,बन्दूक,टेंको में नहीं |
 में तो यही कहता हूँ,जीत लो किसी का भी हिर्दय स्नेह और अपनेपन

लेबल

अभी तो एक प्रश्न चिन्ह ही छोड़ा है ? (1) आत्मा अंश जीव अविनाशी (1) इन्ही त्योहारों के सामान सब मिल जुल कर रहें (1) इश्वर से इस वर्ष की प्रार्थना (1) इसके उज्जवल भविष्य की कामना करता हूँ | (1) उस अविनाशी ईश्वर का स्वरुप है | (1) एक आशियाना जिन्दगी का (1) कब बदलोगे अपनी सोच समाज के लोगों ? (1) कहाँ गया विश्व बंधुत्व और सदभावना? (1) कहीं इस कन्या का विवाहित जीवन अंधकार मय ना हो | (1) किसी का अन्तकरण भी बदला जा सकता है (1) किसी की बात सुन कर उसको भावनात्मक सुख दिया जा सकता है | (1) कैसे होगा इस समस्या का समाधान? (1) चाहता हूँ इसके बाद वोह स्वस्थ रहे और ऑपेरशन की अवयाक्ष्ता ना पड़े | (1) जय गुरु देव की (1) जीत लो किसी का भी हिर्दय स्नेह और अपनेपन (1) डाक्टर साहब का समर्पण (1) पड़ोसियों ने साथ दिया (1) बच्चो में किसी प्रकार का फोविया ना होने दें (1) बस अंत मे यही कहूँगा परहित सम सुख नहीं | (1) बुरा ना मानो होली है | (1) मानवता को समर्पित एक लेख (1) मित्रों प्रेम कोई वासना नहीं है (1) में तो यही कहता हूँ (1) यह एक उपासना है । (1) राधे (2) राधे | (2) वाह प्रभु तेरी विचत्र लीला (1) वोह ना जाने कहाँ गयी (1) शमादान भी एक प्रकार का दान है | (1) सब का नववर्ष सब प्रकार की खुशियाँ देने वाला हो | (1) समांहुयिक प्रार्थना मैं बहुत बल है | (1)