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गुरुवार, दिसंबर 24

इस लड़की का विवाहित जीवन अन्धकार मय ना हो |

हमारे काम वाली की लड़की के विवाह के लिए, उसके माता पिता ने खोज आरम्भ कर दी है, इस लड़की के पिता रिक्शा चालक हैं और माँ,घर घर में झाड़ू,पोछा और बर्तन मांजने का काम करती है, मूलत: यह लोग बिहार के गाँव भवानीपुर के रहने वाले हैं, कुछ वर्ष बंगाल में बिताने के बाद गाजियाबाद में बस गयें हैं, इस कन्या के माँ बाप वर की खोज के लिए, अपने गाँव भवानीपुर गएँ हुए हैं |
  हमारी काम वाली की लड़की,अपनी माँ बाप की अनुप्स्थ्ती में हमारे घर में रह रही है, वैसे यह लड़की भी किसी डाक्टर के यहाँ अपनी माँ वाला ही काम कर रही है, लेकिन इस लड़की के भाग में उस घर के लिए रोटी बनाना भी है, यह सुबह उस घर के लिए सुबह 7.३० बजे निकल जाती है,और सायें 6.00 बजे उस घर का काम करके वापिस आ जाती है,और रविवार को उस घर के लिए सुबह 8.30 बजे निकल जाती है,और लौटती है वोही 6.00  सायं , इस लड़की की माँ को तो हमरे घर का समाप्त करने की इतनी जल्दी पड़ी होती है, कहीं गाड़ी ना छूट जाये,और इसी कारण वोह घर की सफाई  का काम ठीक से नहीं करती, इसलिए मेरी पत्नी इस लड़की को रविवार के दिन घर की सफाई  के लिए बुला लेती है, खैर आज कल इसके माँ बाप गए हें हैं,इसी कारण  यह लड़की हमारे घर में रह रही है, इसकी माँ को तो यह आलम है, वोह अपने गंदे हाथ, घर के पर्दों से पोंछ कर पर्दों को गन्दा कर देती है (कभी लिखूंगा इस लड़की की माँ के बारे में ) |
         यह लड़की नवीं कक्षा तक पड़ गयी है, इसके साथ सिलाई के काम सीखने के बाद शेष बचे हुए समय में लोगों के वस्त्र सिल कर अपनी आये भी कर लेती है, और यह हमारे घर  हमारे नाती के गाजिआबाद में जन्म लेने के कारण यह हमारे साथ गाजिआबाद में ही रही थी,  और उसके बाद मेरी हमारी बेटी के साथदिल्ली और नोयडा में रही थी,हमारे  नाती के कुछ बड़े तक यह लड़की हमारे नाती को नर्सरी राहीम सुना कर दूध,खाना इत्यादि खिलाती, पिलाती थी, है, इस क्रम में इसका एक वर्ष बीत गया था,और इसी कारण यह थोड़ी बहुत अंग्रेजी बोलना सीख गयी है,   एक   इसकी माँ के भावनिपुर पहुचने के बाद,इस लड़की ने अपनी माँ से कुशल क्षेम पूछा, और कुछ दिनों के बाद इसकी माँ का फ़ोन आया तो, इस लड़की की माँ ने इससे बात करी और उसके बाद मेरी पत्नी ने इस लड़की की माँ से पूछा,क्या लड़का देखा ? तो इसकी माँ ने उत्तर दिया कि हाँ दो लड़के देखे और दूसरा वाला पसंद आ गया  ,मेरी पत्नी ने पूछा उसका नाम क्या है? तो वोह बोली पता नहीं, तत्पश्चात मेरी पत्नी ने पूछा, लड़का क्या करता है? तो उत्तर मिला पड़ता है |
  यह लड़की कहती है,मेरे को सारा जीवन किसी के साथ बिताना है,इसलिए में देख भाल कर विवाह करुँगी,में तो कमाने वाले लड़के से विवाह करुँगी,तो इसकी माँ इसको फटकार देती है,और कहती है गाँव में ऐसा ही होता है |
  कहीं इस कन्या का विवाहित जीवन अंधकार मय ना हो |

गुरुवार, दिसंबर 17

विश्व बन्धुत्वा क्यों समाप्त होती जा रही है?

बहुत बार कुछ ब्लोग्गरों की टिप्पणियों में पड़ा है,ब्लोग्गरों में गुटबंदी हो गयी है, यह पड़ कर मेरे मस्तिष्क में यह विचार आया,आज क्यों विश्व बन्धुत्वा समाप्त होती जा रही   है ?  हमारा देश तो वसुधेव कुटुम्बकम के लिए प्रसिद्ध था और यह क्या होता जा रहा है ? हमारे यहाँ के सदभाव, सहयोग की भावना कहाँ जा रही है ? मुझे तो ज्ञात नहीं कि ब्लोग्गरों में गुटबंदी हो गयी है, में तो यथा संभव सब के ब्लॉग पड़ना चाहता हूँ, और टिप्पणियाँ भी देना चाहता हूँ, हाँ यह तो सच है, में ब्लोगों को अपनी रुचि के अनुसार पड़ता हूँ, और नये ब्लोग्गोरों को पड़ कर और उनके लेखों पर टिप्पणियाँ दे कर उनका उत्साह बढाना चाहता हूँ,परन्तु समय अभाव के कारण पड़ नहीं पाता हूँ |
  बहुत बार असल जीवन में देखता हूँ, कोई किसी दूसरे से बात करता है,या इ मेल भेजे परन्तु दूसरी ओर से अकारण उत्तर ही  नहीं मिलता,और पहले व्यक्ति को समझ ही नहीं आता एसा क्यों हो रहा है ? एक दम से कन्नी काटने से अच्छा है, आपस में मिल कर सदभाव से बात करो, और अक्सर देखा जाता है, अगर बात होती भी है तो आपस में विवाद एक दूसरे पर छिटाकशी और क्रोध स्थान ले लेता है, इस हिसाब से तो बच्चे अच्छे आज लड़े, घमासान लड़ाई भी हो जाती है, और उसके बाद एक दो दिन के बाद सब कुछ भूल कर मित्रता स्थान ले लेती है |
   लोगों के जीवन में  यह भी होता है, अगर दो लोंगो में अगर झगडा हो भी जाये और उन दोनों में किसी का दोष हो और दोषी व्यक्ति अपना व्यव्हार परिवर्तित भी कर ले और वोह क्षमा भी मांग ले, परन्तु दूसरा उसको दिल से क्षमा नहीं करता |
  यह तो थी दो लोगों के विषय में बात,परन्तु बहुत बार यह भी देखने में आता है, बहुत बार छोटी,छोटी बातों पर दो समूहों में झगडा तो होता ही है, और दोनों समूह में,लाठियां,और अनेकों प्रकार के अस्त्र,शस्त्रों से प्रहार प्रारंभ हो जाता है, और दोनों समूहों में परस्पर दुश्मनी बड जाती है, क्यों होता है ऐसा ? और कुछ शरारती तत्व इसको और हवा देने लगतें है, क्या यह शिक्षा के अभाव के कारण है ? या यह नागरिक सभ्यता के अभाव के कारण है ? यह समूह क्यों नहीं समझते तीसरा तत्व इसका लाभ उठा रहा है ?
      और पहले यह भी देखने में आया है, लोग अपने,अपने प्रान्त बनाने के लिए अकारण ही लड़ रहे थे, और आज भी वोह  संघर्ष आज भी चल रहा है, जैसे है उसको यथावत क्यों नहीं रहने दिया जाता है,इस प्रकर के संघर्ष का क्या लाभ ? इस प्रकार संघर्ष का क्यों केवल धरा के छोटे से भाग के लिए ?
        अब आता हूँ, विश्व में फेले हुए आतंकवाद पर, पाकिस्तान में खून खराबा, हिंदुस्तान में मुंबई पर ताज होटल पर और नरीमन पॉइंट पर आतंकी हमला, मुझे याद आता है,वोह बीता हुआ समय जब हम लोग हवाई अड्डे पर जाते थे किसी को लेने के लिए और छोड़ने के लिए तो,हवाई जहाज के समीप तक पहुँच जाते थे, परन्तु अब सुरक्षा कारणों से वीसिटर दीर्घा में बैठना पड़ता है, विमान अपहरण का नाम ही सुनने में आता था, और जब विदेश से आतें हैं,तो सुरक्षा कारणों से हवाई जहाज से उतरने के बाद  में बस से आना पड़ता है |
  कहाँ गया विश्व बंधुत्व और सदभावना?

सोमवार, दिसंबर 7

बच्चों पर मनोवगनिक दवाब डाल कर फोबिया से ना ग्रसित करें

 फोविया का अर्थ है जीवन भर का एसा डर,जिससे इन्सान जीवन भर नहीं निकल पाता
अक्सर देखा जाता है, बच्चो के मातापिता अपनी एसी इच्छायें जो वोह अपने जीवन में प्राप्त करना चाहते थे,और जो किसी भी कारण अपुर्ण रह गयीं,वोह अपने बच्चो में उसके पुर्ण होना देखना चाहते हैं, प्रारम्भ में तो आजकल बच्चे पर पडाई का बोझ इतना अधिक होता है, जिसके कारण उसका बाल सुलभ जीवन दब गया है,किताबों के बोझ में, उसका बचपन खो गया है किताबो में, और तिस पर माँ,बाप की अपेक्षा कि वोह पडाई में सबसे अच्छा हो, अब सब बच्चो का मस्तिष्क एक सा तो होता है, और वोह अगर अपने साथियों में कुछ पीछे हो तो उसको दुत्कारना नहीं चाहिये, अगर आप एसा करते हैं, तो बच्चा एक फोबिया से ग्रसित हो जाता है कि मेरे साथी मेरे से बेहतर है, जो कि आगे चल कर उसका जीवन इस प्रकार से अभिशिप्त हो जाता है कि वोह प्रतिसपर्धा से घबराने लगता है, और वोह प्रतिसपर्धा में ठीक से भाग नहीं ले पाता,और आजकल तो प्रतिसपर्धा का युग है और इस प्रकार उसमें उतपन्न हुआ फोबिया उसमें एक हीन भावना पैदा कर देता है कि वोह परतिसपर्धा के योग्य नहीं है ।
  धीरे,धीरे बच्चा उन कक्षा में आ जाता है, जहाँ से उसके भविष्य का निर्माण होता है,और माँ बाप अपनी अपुर्ण इच्छा को पुर्ण करने के लिये,उन विषयों का चुनाव करने के लिये कहतें हैं,जिन विषयों को किसी ना किसी कारण से वोह नहीं पड पाये जिस कारण से उनकी इच्छा पूरी नहीं हुई थी, और उसको अपने बच्चो में पूरा होना देखना चाहते हैं,चाहें बच्चे की उस में रुचि ना हो, और बच्चा बेमन से उन विषयों का चुनाव कर लेता है, और रूचि ना होने के कारण उसमें अचछा नहीं कर पाता तो उसकी हीन भावना और बड जाती है ।
  अब एक और फोविया पर आता हूँ, जब बच्चे का  स्वालम्बी होने का समय होता है तो उसको संघर्ष करने देने की बजाय आप उसके संघर्ष के कारण को अपने अनुभव से उसको संघर्ष ना करने देने की बजाय उसकी समस्या हल कर देतें हैं,और उसको संघर्ष की आदत नहीं रह जाती और आगे चल कर उसको एक फोविया हो जाता है कि में अकेले अपनी समस्या अपने आप  हल नहीं कर सकता ।
 वैसे फोविया बहुत प्रकार के होते हैं, गहरे पानी में जाने का  फोविया,अन्धेरे का फोबिया और बहुत बार माँ बाप नासमझी में बच्चे को किसी प्रकार के जीव,जन्तु जैसे चमगादड़ के बारे में बताना कि वोह शरीर का खून चूस लेता है,तो चमगादड का फोबिया हो जाता है,इत्यादि,इत्यादी
        बच्चो में किसी प्रकार का फोविया ना होने दें

बुधवार, नवंबर 11

आज किसी लड़के के शरीर के एक ही स्थान का सातवां ओपेरशोन है |

आज इतने वर्षो में मैंने पहली बार सुना है , एक लड़के के शरीर के एक ही स्थान का  सातवाँ ओपरेशन है, उसको दिल्ली के गुरु तेग बहादुर अस्पताल  में भरती किया गया है, मैंने जीवन में में बहुतों के ओपरेशन होते देखा है,ओपरेशन थियटर में गया तो कभी नहीं,हाँ ओपरेशन के समय पर  थिएटर के बहार रहा हूँ, ओपरेशन के जरिये या तो किसी अंग को प्रस्थापित किया जाता है,या अंगों को जोड़ा जाता है,लेकिन शरीर के एक ही स्थान का सातवां ओपरेशन मेरे लिए तो आश्चर्य की बात है |

  हमारे घर के नीचे एक पान की दूकान है,और उस दूकान में तीन चार लोग बदल,बदल के बैठते है,और उस दूकान पर ९५ वर्ष के अकबर अली नाम के शख्स भी बैठते है, और उनकी इस उम्र में भी चुस्ती,फुर्ती देख कर भी मुझे,आश्चर्य होता है, और उनसे मैंने एक बार पूछा था,आप इस उम्र में इतने चुस्त,दुरुस्त कैसे रहते हैं,तो  उन्होंने उत्तर दिया था ,हम सर्दियों में शिलाजीत का सेवन करतें हैं,इस कारण चुस्त रहते हैं, उन्ही के बेटे दूकान पर बदल,बदल के बैठते हैं,पर आज सुबह से ही अकबर अली दूकान पर बैठे हुए थे,में उनको आदर से अब्बा कहता हूँ, मैंने उनसे पूछा "आप दूकान पर सुबह से बैठे हो और शाम हो गयी", तब उन्होंने बताया कि लड़के का सातवां ऑपेरशन है, मैंने पूछा "सातवां?", फिर मैंने पूछा "किसका?", तो अकबर अली बोले "शौकत का", और उन्होंने ही बताया कुल्हे में घाव हो जाता हो जाता है,ओपरेशन के बाद भर जाता है,फिर वहीं घाव हो जाता है |

सोमवार, नवंबर 2

इम्पसल्सिव व्यव्हार रिश्ते बिगाड़ सकता है |

इम्पसल्सिव व्यव्हार  के बारे में,लिखने से पहले में लवली जी, और अन्य ब्लॉगर का शमाप्रर्थी हूँ, क्योंकि में लवली जी की पोस्ट "अन्धविश्वासी लोगों में पाए जाने वाले स्किजोफ्रेनिया के लक्षण को पड़ कर में इम्पपलसिव हो गया था, और एक प्रकार से तीखी टिप्पणी कर बैठा, वोह टिप्पणी सीधा प्रहार नहीं था,पर मेरे अनुसार वोह तीखी टिप्पणी थी, जिस टिप्पणी  मुझे अधिक इम्पलसिव कर दिया था, वोह स्किज्फ्रोनिया से पीड़ित ब्लॉगर को इंजेक्शन दे कर उन्नयन के लिए लिखी गयी थी, मनुष्य ऐसा सामाजिक प्राणी है, जिसमें अनेकों प्रकार के मनोभाव जन्म लेते रहते हैं,पता नहीं किस बात से वोह इम्पलसिव हो जाये,यही मेरे साथ हुआ, इम्पलसिव का अर्थ है, किसी भी बात को बिना सोचे समझे उस पर पर्तिक्रिया देना, और इंसान का यह इम्पलसिव व्यव्हार उम्र की बड़ती अवस्था के साथ कम होती जाती है, और यह इम्पलसिव  व्यव्हार अधिकतर भावुक लोगों में पाया जाता है, भावुक लोगों के मन  पर दिमाग की अपेक्षा दिल का राज्य अधिक  होता है,और वोह किसी भी क्रिया की पर्तिक्रिया बिना विचारे दे देतें है|
  युवावस्था में,में बहुत अधिक इम्पलसिव था, और में किसी से अपने मधुर सम्बन्ध बिगाड़ बैठा था, यह घटना इस प्रकार हुई थी, मेरी एक रिश्तेदार को नर्वस ब्रेक डाउन हो गया था, इन्जिनीर होने के बाबजूद मुझे मनोविज्ञान और परम्परागत में बचपन से बहुत अधिक रुचि थी, तो मनोविज्ञान में रुचि होने के कारण मैंने अपनी उन रिश्तेदार पर बीहविएर थरेपी का अधकचरा प्रयोग आरम्भ कर दिया,और उनको अपने एक मानसिक चिकत्सक के पास ले गया और साथ में मैंने अपना प्रयोग जारी रखा,और वोह ठीक हो गयीं, परन्तु उनमे एक विचत्र सा परिवर्तन हो गया,पहले उनका व्यक्तिव बहुत शांत और धेर्य वाला था,परन्तु अब वोह किसी पर भी अपनी वाणी का तीखा प्रहार करने लगीं, अब में बताने जा रहा हूँ,कैसे मेरे मधुर सम्बन्ध उनके साथ उस प्रकार के नहीं रहें, जैसे पहले थे, एक बार मेरी पत्नी को एक ऐसा स्वपन आया जिसके कारण वोह डर गयी थी, सयोंग से हमारी वोह रिश्तेदार उसी दिन  आ गयीं थी,और मेरी पत्नी और उनके बीच में, उस स्वपन की बात होने लगीं,मेरी पत्नी ने उनसे अपने स्वपन का वर्णन करते हुए अपना डर उन को बताने लगी,और में बस अपना ज्ञान बखारने लगा कि स्वपनाव्स्था में जीव विचरण करता है,और कहीं पर भी चला जाता हैं, वोह कहने मुझे कहने लगीं कि इस बात को रहने भी दो,पर मुझे तो झक सवार और उस बात को बार,बार दोहराने लगा,इस पर हमारी वोह रिश्तेदार चिड गयीं और तबसे हम दोनों के मधुर सम्बन्ध बिगड़ गए |
  यह मानव स्वाभाव है कि अच्छी बात तो किसी पर इतना प्रभाव नहीं डालती जितनी की गलत बात, अगर इंसान इम्पलस के प्रभाव में आकर के कोई गलत व्यव्हार या गलत बात करता है,तो उसका प्रभाव दूसरे पर तुंरत पड़ता है, कहा जाता है, अगर किसी में कोई अवगुण नहीं होता तो वोह भगवान्,कोई गुण नहीं होता तो वोह हैवान और किसी में गुण,अवगुण दोनों होतें हैं तो इंसान|
दूसरी बार में तब इम्पलसिव हुआ जब हमारी सिने जगत की तारिका शिल्पा शेट्टी  पर बिग ब्रदर में जतिवादक शब्दों के साथ,दुरव्यव्हार किया गया था,उस समय मैंने एक लेख अंग्रेजी में लिख दिया " Difference between fair and Black and White Skin", हो सकता है,लोगों ने पड़ा नहीं या किसी अंग्रेज की उसपर निगाह नहीं पड़ी हो,मुझे उस लेख पर किसी प्रकार की अच्छी,बुरी टिप्पणी नहीं मिली, नहीं तो यह पूरे ब्रिटिश लोगों से सम्बन्ध बिगाड़ने की बात हो जाती|
   मेरे को कहीं ये शिक्षा मिल चुकी है,अपने शत्रुओं को आर्शीवाद देना सीखो,इस बात को सदा अपने मस्तिष्क में रखता हूँ, जो कि किसी से शमा मांगने और शमा करने से अधिक कठिन हूँ, अभी लवली जी मनोविगानिक विषयों पर लिख रहीं हैं,और मानवियों विसंगतियों को दूर करने का अच्छा प्रयास कर रहीं हैं, में किसी के विषय में हस्तक्षेप नहीं करना चाहता, बस मेरा यह लेख इम्पलसिव व्यव्हार रिश्ते बिगाड़ सकतें हैं, लिखने का कारण यही था में इम्पलसिव हो  गया था, और में तीखी टिप्पणी कर बैठा |
   अभी लवली जी के लेख कला और मनोविज्ञान की पर्तीक्षा कर रहा हूँ, कला को एक प्रकार का कंटरोल हीसटीरीया कहते हैं, शमा मांगने में छोटे बड़े कि शर्म कैसी, बस मेरा यह लेख अपने इम्पलसिव व्यव्हार के कारण शमा मांगने के लिए था | 


 

शनिवार, अक्तूबर 31

संजीवनी संस्था (मनोरोगियों के लिए )

संजीवनी संस्था को गूगल में खोजा पर मिली नहीं,संभवत: बंद हो गयी होगी, यह एक ऐसी संस्था थी जिसमें मनोरोगियों की चिकत्सा मानसिक चिकत्सक और मनोरोगी चिकत्सक  दोनों प्रकार के चिकत्सक के द्वारा निशुल्क  होती थी, हमारे देश में मानसिक चिकत्सक तो हैं,परन्तु मनोरोगी चिकत्सक का बहुत अभाव है, अपने लेख मनोरोगी चिकत्सक और मानसिक चिकत्सक अंतरके बारे  में लिख चुका हूँ,इन दोनों में क्या अंतर है, संक्षेप में बता रहा हूँ, मानसिक चिकत्सक अपने औजारों के द्वारा देखते हैं कि,उनके औजारों द्वारा की हुई क्रिया की पर्तिक्रिया शरीर किस प्रकार करता है,और E.E.G मशीन के द्वारा मस्तिष्क द्वारा निकली हुई तरंगो का अध्यन किया जाता है,और मनोचिक्त्सक मनोरोगियों के द्वारा अति सूक्ष्मता से, मनोरोगी की नित्य प्रतिदिन होने वाली क्रिया का अध्यन होता है,और मनोरोगी चिकत्सक मनोरोगी कोउसी आधार पर  परामर्श देते हैं, मानसिक चिकत्सक अपने औजारों के द्वारा शरीर कि पर्तिक्रिया और प्रश्न पूछने पर मनोरोगी को दवाई देते हैं |
  संजीवनी संस्था में यह दोनों प्रकार के चिकत्सक थे, मनोरोगी चिकत्सक अधिकतर महिलाएं थीं,और मानसिक चिकत्सक में अधिकतर पुरुष वर्ग था, संभवत: मनोरोगी चिकत्सकों का होना स्त्री वर्ग इसलिए था,स्त्रियाँ अधिकतर पुरुष से अधिक संवेदन शील होतीं हैं, उनके शरीर की रचना मात्रितव के अनकूल होता हैं,वाणी में कोमलता होतीं हैं, मेरे विचार से यही कारण रहा होगा,अधिकतर मनोचिक्त्सक का स्त्री वर्ग था, और पुरुष में संवेदना स्त्रियों के अपेक्षा कम होती है, और वाणी में कठोरता होती हैं, संभवत:  इसीलिए संभवत: कहते हैं, women are from venus, men are from mars वीनस अर्थार्त शुक्र, जो कि प्रेम का परतीक है, और मार्स यानि मंगल कठोर है, हमारे शहर एक चिकत्सालय हैं जिसमे एक स्त्री मनोचिक्त्सक आती है,शायद ऊपर लिखा हुआ कारण होगा |
  में जब युवावस्था में था, मेरा जाना इस संजीवनी संस्था में हुआ था, उस समय यह संस्था अपने शैशव अवस्था में थी, और इसमें वोह लोग थे जो कि किसी की भी किसी प्रकार की बात सुनते थे,उस  प्रकार की बातें जिसको बहुत से लोग सुनना नहीं चाहते हैं, और लोग अपने मन को बात करने के पश्चात हल्का समझते थे, किसी प्रकार का व्यंग्य नहीं,किसी प्रकार का उपहास नहीं,और यह संस्था अपना स्थान बदलती रहती थी, जब मेरा पहली बार जाना हुआ था तो यह दिल्ली के कनाट प्लेस में थी, में किसी मनोरोगी को लेकर गया था, उन लोगों ने कौंसेलिंग करके उस आल इंडिया इंस्टिट्यूट  मनोरोगी को मनोचिक्त्सक को दिखाने के लिए कहा था, में उसको आल इंडिया इंस्टिट्यूट में ले गया था, परन्तु वहाँ उसकी ठीक से चिकत्सा हो नहीं पाई थी, उन दिनों मेरे किसी मित्र ने एक मानसिक चिकत्सक का नाम बतया तो जो तीन दिन हापुर में बैठते हैं,और तीन दिन दिल्ली में, जो कि मेरे अच्छे मित्र भी बन चुकें हैं,उन्होंने उस रोगी से प्रश्न पूछे, उसका E.E.G किया और उसको दवाइयाँ दी,अब वोह मनोरोगी विल्कुल ठीक है |
फिर बहुत वर्षों के बाद मेरा इस संजीवनी संस्था में जाना हुआ,तो यह पूरी तरह से आत्मनिर्भर हो चुकी थी, इस संस्था में दोनों प्रकार के चिकत्सक मानसिक चिकत्सक और मनोरोग चिकत्सक थे, और इस संस्था में डिप्रेशन से लेकर नर्वस ब्रेक डाउन की चिकत्सा होती थी, गूगल पर इस संस्था को खोजने पर नहीं मिली, किसी भी को इसके बारे में पता हो तो मुझे सूचित करें |

  धनयवाद

गुरुवार, अक्तूबर 29

कैसे बचेगा इस बच्चे का पडाई से समबन्धित से भविष्य |

आज सोच रहा था कि, संजीवनी संस्था के बारे में लिखूं  जो कि मनोरोगियों की चिकत्सा करती थी, पहले भी लिख चुका हूँ, कि इसको में थी,इसलिए कह रहा हूँ,गूगल पर खोजने पर नहीं मिली, परन्तु अचानक मन में एक कसक उठी कि आज शिक्षा व्यापार क्यों हो गई ? वोह लोग जो बच्चों को पड़ा लिखा कर बच्चो का भविष्य सुधारते है ,उन लोगों ने शिक्षा को व्यापार क्यों बना लिया?
  शिक्षक तो वोह होतें हैं,जो बच्चे की ऊँगली पकड़ के उस प्रकार  क.ख .ग पढाते हैं,जिस प्रकार माँ बच्चे की ऊँगली पकड़ के चलना सिखाती है, पहले तो बच्चे के कदम लड़खाते हैं,वोह गिरता है,उठता है, फिर गिरता है,उठता है,और इस प्रकार धीरे,धीरे चलना सीख जाता है, और उसके पश्चात दोरने लगता है,इसी प्रकार प्रारंभिक कक्षा के शिक्षक उसकी ऊँगली पकड़ के लिखना सिखाते हैं,और उतरोतर बच्चा कक्षा की सीडिया चड़ता जाता है,और आने वाली कक्षाओं में और ज्ञान प्राप्त करता है, और बच्चे का विकास इंजिनियर,डॉक्टर,वकील,जज,प्रशसनिकसेवा इत्यादि  के लिए हो जाता है |
  इस विकास में,नवीं,दसवीं,ग्यारहवीं,बारहवीं कक्षा का बहुत महत्व है, और कुछ बनने के लिए यह क्रम नवीं कक्षा से प्रारंभ होता है, और उतरोतर बारहवीं कक्षा के बाद,अधिकतर बच्चे,डॉक्टर,अभियंता ,वकील इत्यादि बनने के लिए कमपिटीटीव परीक्षा की तयारी करते हैं, और उसमें सफल ना होने के बाद या यह परीक्षाएं ना भी देने के बाद इनका क्रम  स्नातक ,सनातोक्तर,या डॉक्टरेट की ओर हो जाता है,कहने का मतलब है,आधार तो नवीं कक्षा से ही प्रारंभ होता है |
   मेरी पेट के दर्द की वीमारी के समय  एक कंपाअंडर मुझे  इंजेक्शन लगाने के लिए आते थे , उसने मेरी पत्नी से कहा, मेरे बेटे को अंग्रेजी की टूशन पड़ा देंगी वोह नवीं कक्षा में पड़ता है ? मेरी पत्नी ने उसको हाँ कर दी, कुछ दिन तो मेरी पत्नी उसको पढाती रही, फिर मेरी पत्नी ने मुझ से कहा,आप इस को पड़ा दिया करो, और मैंने देखा वोह अंग्रेजी में कुछ नहीं कर पाता था, मैंने उस बच्चे से पुछा कि तुम्हारे स्कूल वाले कैसे पडाते हैं,वोह बोला हम लोगों को कुछ चीजे पड़ा देते हैं,और वोही परीक्षा में आ जातीं हैं,में तो उसकी इस बात से हैरान रह गया, फिर एक दिन मेरे पास वोह अपनी गणित की पुस्तक लाया,और उसने मुझसे कोई गणित का सवाल पुछा,जो कि में नहीं कर पाया, हमारे समय के गणित और इस समय के गणित में भी बहुत अंतर आ चुका है,और ना ही मेरा दिमाग उतना तीव्र है,जितना अपने समय में हुआ करता था,और गणित भी एक विषय था जिसके प्रश्न को उत्तर मुझे अपनी इंजीनियरिंग की परीक्षा के लिए देने थे,हो सकता बड़ती आयु के कारण दिमाग उतना  तीव्र ना रहा हो|
  खैर मैंने उस बच्चे के पिता को उस स्कूल के तरीके से अवगत कराया,तो उसके पिता ने कहा, "मेरे पैरो के नीचे से तो जमीन ही खिसक गयी" |
   उस बच्चे के पिता को उस बच्चे के एडमीशन के समय पर कोई उचित परामर्श देने वाला नहीं था, इस बच्चे में पड़ने की लगन भी है,और जो भी इसको सिखाओ इस बच्चे की बुद्धि उसको ग्रहण कर लेती है, यह बेचारा बच्चा अच्छे स्कूल में दाखिला लेने का प्रयत्न कर रहा है, लेकिन उस स्कूल में दाखिले से पहले बहुत कड़ी पर्तिस्पर्धा होती है, हम लोग तो इस बच्चे को हतोउतसहित नहीं करते,परन्तु अगर इसका दाखिला नहीं हो पायेगा तो इसके मस्तिष्क पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ेगा, इसके हिर्दय पर तो तुषारापात हो जायेगा, इस बच्चे का ही नहीं और बच्चो के भविष्य के साथ इस स्कूल वाले इस प्रकार शिक्षक और शिष्य के भविष्य ना बना कर गहन अन्धकार में, धकेल रहये हैं,और भी विषय इस स्कूल में इसी प्रकार से पढाते होंगे, माँ बाप ना जाने कितनी आशाएं रखते हैं, इस बच्चे के पिता कह रहे थे, "में दो समय की रोटी नहीं खाऊँगा,बस मेरे बच्चे का भविष्य बन जाये", और इस प्रकार के स्कूल बच्चों और अभिभावकों के साथ इस प्रकार से खिलवाड़ करतें हैं, इस समस्या का कोई उचित समाधान बता सकता है क्या? मेरा इस पोस्ट को लिखने का मतलब यही था,कोई इस समस्या का समाधान बताये तो,इस बच्चे का भविष्य तो उज्जवल हो जाये,और बाकि इस स्कूल में पड़ने वाले इसके साथियों का |
   इस स्कूल वालों ने वाकई में,विद्यार्थी शब्द को बदनाम करके इसको विद्या की अर्थी बना दिया है,साधारण तौर पर में इस प्रकार की असभ्य भाषा को उपयोग नहीं करता,परन्तु इस स्कूल ने मुझे इस प्रकार की भाषा का प्रयोग करने के लिए विवश कर दिया, और हिंदी लिखते समय  अंगेरजी के शब्दों का भी प्रयोग करने से बचता हूँ,परन्तु इस स्कूल के व्यवहार के कारण बहुत सारे शब्द  अंग्रेजी के आ गये हैं, इस स्कूल ने मुझे झकजोर दिया है |

सोमवार, अक्तूबर 19

स्नेह और अपनेपन से जीता जा सकता है,लोगो का हिर्दय ।

ईश्वर द्वारा रचित इस संसार में,अनेकों जीव जंतु जड़,चेतन वस्तुएं हैं, जंतुओं में तो अधिकतर जानवर ऐसे हैं, जो कि किसी के भी दिए हुए है  स्नेह और अपनेपन द्वारा प्राप्त ख़ुशी का एहसास निस्वार्थ रूप से पर्दर्शित करते है, अगर किसी भी कुत्ते को आप रोटी या कोई खाने कि वस्तु देंगे या उसके सिर पर स्नेह  से हाथ फेरेंगे  तो वोह अपनी पूँछ हिला कर अपनी ख़ुशी पर्दर्शित करेगा, गाय की गर्दन को प्यार से सहलायेंगे तो वोह अपनी गर्दन उठा कर और सहलाने के लिए प्रार्थना करेगी,इस प्रकार वोह आपके स्नेह का उत्तर देगी, परन्तु ईश्वर द्वारा रचित सबसे जटिल प्राणी है वोह है इंसान, और इंसान भी स्नेह की अपेक्षा रखता है, परन्तु कुछ इंसान स्नेह का परतिकार भी करते हैं,परन्तु अधिकतर लोगों का हिर्दय स्नेह और अपनेपन से जीता जा सकता है, इंसान के रूप में मुझे हीरे मिले अपने ब्लॉग www.vinay-mereblog.blogspot.कॉम में उन लोगों का वर्णन कर चुका हूँ, जिनमे सेवा का निसवार्थ भावः है |
  अपनी इस पोस्ट में,उन लोगों का वर्णन करने जा रहा हूँ, जिन लोगों को मैंने थोड़ा सा स्नेह और अपनापन दिया और वोह हर समय हमारी सहायता के लिए तत्पर रहते हैं,या जिन लोगों ने हमारे हिर्दय में स्थान बनाया है |
   सबसे पहले में अपने राशन वाले का नाम लूँगा जिसने हमारे संकट के समय में हमारे दिल में स्थान बनाया, घटना उस समय से सम्बंधित है, जब हमें अपनी बेटी का विवाह करना था, बेटी के विवाह के लिए उपूयुक्त वर मिल चुका था, विवाह की तारीख शने: शने: खिसकती हुई समीप आ रही थी, विवाह के समय के लिए मेरी पत्नी ने उस हलवाई से बात कर ली थी, जिसने उसके परिवार में अधिकतर विवाह संपन कराये थे, अंतत: वोह समय भी आ गया था, जब उक्त हलवाई ने विवाहउत्सव में दिए जाने के लिए बारातियों के लिए शादी की पार्टी में देने वाले भोज्य पदार्थ की सामग्री लिखवानी थी, हलवाई ने सामान लिखाया तो हम दोनों यानि कि में और मेरी पत्नी उलझन में पड़ गए, इन सामग्रियों का प्रबंध कैसे हो?
 स्योंगवश उन्ही दिनों में हमारा राशन वाला आ गया, और उसको हमने अपनी समस्या बताई, तो उसने हमारी सहायता करने की बात कही,और उसने उस बात को चरितार्थ किया, उस राशन वाले ने अपनी होने वाली हानि की ओर ध्यान ना देकर सात दिन तक अपनी राशन की दूकान बंद रखी, और जुट गया हमारे द्वारा देने वाली  बारातियों की पार्टी के लिए सामान एकत्रित करने में, और इस प्रकार हमारी पुत्री का विवाह हो गया धूमधाम से, इस प्रकार उस राशन वाले ने हमारे हिर्दय में सदा के लिए स्थान बना लिया |
  अब वर्णन करता हूँ,उस टैक्सी स्टैंड वाले के बारे में, जिसके हिर्दय में स्नेह और अपनेपन से स्थान बनाने में में  सफल हुआ, में अपनी गाड़ी बेच चुका हूँ,कहीं जाना होता है,तो टैक्सी बुला लेते हैं,और उस टैक्सी में सवार होकर अपने गंतव्य स्थान पर चले जाते हैं, और जितना समय अपने गंतव्य स्थान पर विताना होता है,वोह विता कर के उसी टैक्सी से  अपने घर लौट आते हैं |
   इस संसार में परतेक प्रकार के लोग होते हैं, हम लोग किसी की टैक्सी को आने जाने के लिए  कुछ वर्षो से उपयोग कर रहे थे, हम लोग उस  टैक्सी वाले जाने से कुछ दिन पहले बता देते थे,कि हम अमुक दिन,अमुक समय और अमुक स्थान पर जायेंगे, राखी का पर्व पड़ने वाले दिन से उस टैक्सी वाले को हम अपनी बेटी के यहाँ जाने को सूचित कर चुके थे, अब शने:शने: दिन समीप आते हुए आ गया राखी का दिन, मेरी पत्नी ने उसको फ़ोन किया तो उसने आने को मना कर दिया, बाद में यह कहने लगा में छोड़ आऊंगा,और जब आप लोगों को आना होगा तो फ़ोन कर देना में आ जाऊंगा, जब उससे पुछा पैसे कितने लोगे तो बोला डबल, राखी के दिन शहर में कोई टैक्सी नहीं थी,और लालचवश वोह इस चीज का लाभ उठा रहा था,आखिरकार हमने उसको मना कर दिया |
  अपनी बेटी के घर राखी के दिन जाना तो अवश्य था, में निकाल पड़ा टैक्सी कि खोज में, पहुँच गया एक टैक्सी स्टैंड पर,उस टैक्सी स्टैंड से में एक बार टैक्सी ले जा चुका था, और उसके साथ ही उस ही  चबूतरे पर बैठ गया जिस पर वोह बैठा था ,और उससे स्नेह और अपनत्व से बाते करने लगा, उस समय शायद उसके दिमाग में कोई टैक्सी नहीं थी, इसलिए उसने टैक्सी के लिए मना कर दिया,अ़ब में भटक रहा था, दूसरे टैक्सी स्टैंड की खोज में,और सयोंग से उक्त टैक्सी स्टैंड वाले के सामने से गुजरा,उसने मुझे आवाज दी में उसके पास पहुँच के फिर बैठ गया उसके साथ चबूतरे पर उसने किसी टैक्सी को फ़ोन करके हमें टैक्सी उपलब्ध करा दी,उसके बाद एक समय ऐसा आया दिवाली से एक दिन पहले, जबकि शहर में कोई टैक्सी नहीं उपलब्ध नहीं थी, उसने हमें टैक्सी उपलब्ध करायी,और उसका कहना यह है,कि आपके लिए एक टैक्सी हमेशा आपके लिए रहेगी  ,जब भी आवयश्कता हो तो यहाँ से ले जाना |
  अब वोह भी वर्णन करता हूँ, कि इन्टरनेट चेट करते समय, एक अमरीकन महिला के हिर्दय में, में स्थान पाने में सफल हो गया, वैसे तो इन्टरनेट पर में कम ही चेट करता हूँ,हाँ कभी दिन,प्रतिदिन की व्यस्तता से ऊब जाता हूँ,तो फ्लैश में चेट करता हूँ,मतलब कि जहाँ,बहुत सारे लोग होतें हैं,वहाँ पर में चेट करता हूँ,एक ऐसे सोशल साईट पर मैंने रजिस्ट्रेशन कर रखा है, एक दिन में अपनी दिन ,पर्तिदिन ऊब को मिटाने के लिए,उस साईट पर चेट कर रहा था,वहाँ एक अमरीकन महिला थी,जो  अपने बॉय फ्रेंड से बात उस प्रकार बात नहीं कर पा रही थी जैसे वोह किया  करती थी, किन्ही कारणों से वोह अपनी गर्ल फ्रेंड से बात करने से डर रहा था,अमरीका  जैसे देश में यह बॉय फ्रेंड और गर्ल फ्रेंड का किस्सा तो आम ही होता है,खेर दोनों लोग आपस में खुल कर बात नहीं कर पा रहे थे, मेरी चेटईंग तो उस महिला से हो रही थी, उसकी समस्या को बहुत देर तक समझता रहा, उसकी समस्या मुझे बहुत देर बाद सपष्ट हुई, शायद आधा,पोना घंटा लग गया था, जब तक मुझे उसकी समस्या स्पष्ट नहीं हुइ थी, धैर्य से उस महिला से वोह प्रशन पूछता रहा,जिससे मुझे उसकी समस्या का आभास हो जाये,एक तो उस महिला से केवल नेट पर ही बात हो रही थी, वैसे अमरीका गया अवश्य हूँ,परन्तु मुझे नहीं मालूम था,उसका क्या परिवेश था, जब उसकी पूरी समस्या मुझे स्पष्ट हो गयी,तो मैंने उसको सुझाब देना प्रारंभ किया और उसकी शंका का भी समाधान करता रहा,और वोह मेरी उसके साथ बातचीत स्नेह और अपनत्व के साथ थी, उस महिला का संपर्क अपने बॉय फ्रेंड के साथ पुरबबत हो गया,और दुबारा जब उससे मेरी बात हुई तो वोह किसी और से बात करते हुए मेरा नाम लेते हुए बोली,कि इस क्रिसमस को सांता से  इसको मांगेगी|
 स्नेह और अपनत्व में वोह शक्ति है,जो कि बड़ी,बड़ी,तोपों,गोलों,बन्दूक,टेंको में नहीं |
 में तो यही कहता हूँ,जीत लो किसी का भी हिर्दय स्नेह और अपनेपन

गुरुवार, अगस्त 6

वोह कहाँ खो गयी

मैं अक्सर अपने घर के पास साईं मन्दिर मैं जाता रहता हूँ, ऐसे ही एक दिन साईं मन्दिर की ओर जा रहा था, एक बुडी औरत ने मुझे आवाज दी, उसकी आवाज सुन के मैं उस के पास गया, वोह बोली बेटा मुझे चाय पिला दो,मैं उसको देखने लगा, उस बुडी औरत को लगा कि मुझे उस पर कुछ शक हो रहा है, फिर उसने मुझे एक फटा हुआ सा कागज दिखया, जो कि उसकी पेंशन से सम्बंधित था, पास मैं ही पुलिस चोकी है,मैंने उससे पुछा "अम्मा यहाँ क्यो बैठी हो,और जब तुम्हे पेंशन मिलती है तो चाय क्यों मांग रही हो?" उसने मुझे बताया की उसके तीन बेटे है, वोह उसको मारते,पिटते हैं, तब यह पुलिस वाले उनको धमका देते हैं, फिर मैंने पुलिस वालो से उसके बारे मैं पुछा, तब पता चला कि उसका पति पुलिस मैं था, और लम्बी बीमारी के कारण गुजर गया, उसने अपने पति के इलाज मैं बहुत अधिक धन खर्च दिया है, उसके एक बेटे ने दूसरी शादी कर ली,और वोह भी अपनी माँ को नही पूछता, वहाँ तो चाय नही मिली, मैं और वोह एक हलवाई के पास चाय वाले के पास पहुंचे, वहाँ हलवाई के पास कुछ कुर्सिया पड़ी थी उस पर बैठ गये, थोड़ी देर वहाँ बैठ कर मैं उसकी आप बीती सुनने लगा, वोह हलवाईरुखे स्वर बोला की फालतु जगह क्यों घेर रखी हैं, मैंने कहा अम्मा यहाँ रूको मैं अभी आया, और घर की तरफ अपना स्कूटर लेने चला गया,और आने के बाद उसको स्कूटर पर बैठा लिया, और हलवाई से कुछ जलेबिया ले ली, तो उस हलवाई की बोली भी नरम पड़ गयी, हम दोनों उन कुर्सियों पर बैठ गये, और उससे बात करने लगा, वोह बोली बेटा मुझे कोई छोटी,मोटी नौकरी दिला दो कैसी भी मैं कर लूंगी, उससे बात करने के बाद मैंने घर पर आ कर के प्रियम मित्तल जो कि स्नेह परिवार की संचालिका हैं,जिनके स्नेह परिवार के विषय मैंने बहुत दिन पहेले लिखा था, उनसे इस बुडी औरत की आया की नौकरी के लिए बात करी, उन दिनों प्रियम जी भी आया ढूँढ रही थी, वैसे तो उन्होने मुझे कहा अभी मेरे पास चार,पाँच आप्शन है, फिर देखती हूँ।
मेरा साईं मन्दिर जाना तो अक्सर होता है, उस बुडी औरत को ढूनता रहता हूँ, पर वोह अब कहीं नही दिखाई देती है, पता नहीं उसका क्या हुआ? बात तो छोटी से हैं पर मन मैं एक कसक सी हैं कि मैंने उसके घर के बारे मैं जानकारी क्यों नही ली, उसके बारे मैं जानने कि उत्सुकता है वोह कहाँ गयी।

शुक्रवार, जुलाई 10

समाज सेवा मैं बाधाएं

कुछ समय पहले मैंने एक पोस्ट लिखी थी, स्नेह परिवार जिसमे मैंने उस संस्था की संचालिका प्रियम मित्तल बारे मैं लिखा था, किस प्रकार वोह निराश्रित बच्चो की देखभाल एक ममतामई माँ की तरह करती हैं, उस पर मुझे शमा जी की टिप्पणी मिली थी कि वोह इस प्रकार कि संस्था से जुड़ने की इछुक हैं,पर जुड़ नहीं पाती, तत्पश्चात मुझे यह जानकारी प्राप्त हुई थी, उनके आस पास काफी NGOs जिनके साथ मिलके वोह काम कर सकती थी पर वोह लोग उनके नाम से बिदक जाते हैं, जबकि वोह अपनी ईमानदारी और साफगोई के कारण परिसिध हो गई थी, यह सोच के मन उदास हो गया, और यह पोस्ट लिखने का मन मैं विचार आया था, यह मानवता की सेवा तो समपर्ण की भावना से ही होती हैं, अगर मन्युष का मन संवेदनशील हैं तो उसका दिल दिमाग पर अभावग्रस्त जीवन को देख कर स्वयं ही प्रवाहाव पड़ता है, परन्तु अगर संवेदना ही ना हो तो क्या प्रवाहाव पड़ेगा, संवेदनहीन लोगो ने तो अपना मतलब सिद्ध करने के लिए यह व्यापर बना लिया है, तो उन मैं तो संवेदना का नितांत आभाव हैं, वोह लोग क्या मानवता को समर्पित होंगे, यह लोग या तो नाम के लिए या दाम के लिए करते हैं।
शायद इन्ही कारणों से मेरी जानकारी मैं अधिकतर से सच्ची मानवता की सेवा करने वाले अकेले ही हैं, या किसी अकेले इन्सान ने मानवता की सेवा करने वालो का समूह बनाया हैं।
प्राय: अगर कुछ करना का मन हैं तो रास्ते मैं कांटे बिखरने वाले मिल जाते हैं, मेरे एक परिचित ने कम पैसे मैं दवाइयों का वितरण प्रारम्भ किया तो उनके विरोध मैं कुछ झोला छाप चिकत्सक गए और उनको यह नेक काम बंद करना पड़ा, अगर आप किसी जरूतमंद इन्सान के लिए कुछ करते हो, तो छदम भेष मैं अनेको बिना जरूरतमंद के लोग अपने लाभ के लिए जायेंगे, रंगे सियार की भांति असली और नकली की पहचान करना नितांत कठिन हैं, कौन असली हैं और कौन नकली हैं इसके लिए उन लोगो की जानकारी करना और वोह भी इस प्रकार की उनको कोई संदेह ना हो नितांत आवश्यक है।
बहुत से नगरो मैं बच्चे भीख मांगते दिखाई दे जायेंगे, परन्तु यह नही पता चलता कि उनको यथार्त मैं अव्यश्यकता है या नहीया उनका कोई मुखिया हैं,जिसको वोह मासूम बच्चे अपनी कमाई देते हैं,और निर्धारित पैसे मुखिया को ना मिलने पर निर्ममता से पिटते है, और तो और बहुत से बच्चो को वोह मुखिया अंग भंग करके जीवन भर को उनको लाचार करके अपना उल्लू सीधा करते हैं, ना जाने किस किस प्रकार से लोगो ने मानवता को बदनाम करके व्यापर बना रखा हैं।
कुछ दिन पहले मैंने समाचार पत्र मैं आशा नाम कि संस्था के विषय मैं पड़ा था, जो कि जीवन कि ढलती संध्या के वोह बुजुर्गो के बारे मैं था, जिनके लिए इस संस्था ने आवास बनाया था, जो की नाम के लिए ही था, इस मैं निर्धारित लोगो से अधिक वास कर रहे थे, संक्रमण रोगों से ग्रसित लोग एक ही साथ रह रहे थे,जिनके लिए अलग व्यवस्था होने की अवयाक्श्ता हैं, परन्तु एक साथ रह रहे हैं, सफाई की कोई व्यवस्था नहीं हैं,यह तो केवल नाम के लिए है,यह तो उस वृक्ष की भांति हैं पौधारोपण तो कर दिया पर उसको सम्पुरण वृक्ष बनने ही नही दिया, खाद पानी की कोई व्यवस्था नहीं, तो उस पौधे की वृक्ष बनने की सम्भावना कहा तक हैं, यदि खाद पानी मिल भी गया तो रोग निरोधक दवाइयों के बिना उसकी जर्जर वृक्ष ना बनने की सम्भावना कहाँ तक हैं?
अंत मैं रबिन्द्रनाथ टेगोर जी की पंक्तियों "एकला चलो रे एकला चलो के साथ इस विषय को विराम दे रहा हूँ, और साथ मैं इस संदेश के साथ लेखनी को विराम दे रहा हूँ, फूल की सुगंध तो चारो ओर फेल ही जाती हैं,बस मानवता की सेवा का निस्वार्थ प्र्यतन करते रहने पर फूल की सुगंध बातावरण मैं व्यापत हो ही जायगी।

रविवार, फ़रवरी 15

स्नेह परिवार एक प्यार भरी संस्था

कुछ दिन पहले अचानक सयोंग वश एक संस्था स्नेह परिवार मैं जाना हुआ, यह एक ऐसी संस्था है जहाँ पर माँ बाप से बिछुरे हुए अनजान अबोध बच्चो को, माँ की गोद उसकी ममता, उसका स्नेह एक माँ की तरह मिल जाता है, मैंने इसको अनाथालय नहीं कहा क्योंकि अनाथालय मैं केवल परवरिश और परवरिश ही होती है, परन्तु यह एक ऐसी संस्था हैं, जहाँ पर बच्चो का सर्वालिंग विकास होता है, और उसका अंधकारमय भविष्य निखर कर के प्रकाश की और जाता है, इस परिवार मैं इन बच्चो की माँ है, उनकी मौसियाँ है, जिनको देख कर एहसास होता हैं कि इन बच्चो का जीवन सही दिशा कि और अग्रसर हो रहा है, इस संस्था की संचालिका को कहना है कि बच्चो को पाँच साल तक अपना स्पर्श देना अत्यन्त आवश्यक हैं जिससे इनका आत्मविश्वास बढता है, जो कि मैंने यहाँ प्रत्यक्ष देखा है, यह माँ अपने इन बच्चो के लिए स्वयं अपने हाथो से इनके लिए अनेक प्रकार के वयंजन बनाती हैं, इन बच्चो को स्वयं शौपिंग के लिए ले जाती हैं, उसका कहना यह हैं कि हम बच्चो को आया के सहारे क्यों छोडे,स्वयं इस माँ के अपने दो बच्चे हैं परन्तु फिर भी इसका अपनी इस संस्था के बच्चो के साथ अभूतपूर्ण प्रेम हैं,
कल वैलेंटाइन डे था और यह एक बच्ची शायद १०,१२ दिन की होगी उसको गोद मैं लेकर के माई वैलेंटाइन, माई वैलेंटाइन कर रही थी उस बच्ची का नाम परी हैं,और है भी परी जैसी और एक नन्ही मेहमान कली आई है, शायद अब कुछ ही दिन की है, जब परी आई थी तो मात्र ६ घंटे की थी, इस माँ का कहना हैं कि मैं सौभ्य्ग्यशाली हूँ, क्योंकि जच्चा को बच्चा एक दिन बाद मिलता हैं, पर मेरी गोद मैं तो मात्र कुछ घंटे के बच्चे मेरी गोद मैं आ गए हैं।
इस माँ का कहना हैं कि मुझे अधिक कुछ नहीं चाह हैं, अगर आप कोई भी बच्चा लावारिस हालत मैं मिले बस मुझे एक फ़ोन कर दे।
इस संस्था की संचालिका यह भी कहना है, वोह बुजर्ग लोग जो उपेक्षित हो चुके हैं, जैसे किसी को उनके बेटे बहू ने घर से निकाल दिया, उन लोगो की मुझे आवयश्कता है, वोह अपना समय मेरे इन चिरागों को दे सकते है, उनको उनका खोया हुआ सम्मान मिलेगा, पैसा मिलेगा और वोह अपने को उपेक्षित नहीं समझेंगे, यह प्रतारित लोग यहाँ संपर्क कर सकते है।

इस ममता मई माँ का नाम हैं प्रियम मित्तल शेष संपर्क के लिए जानकारी दे रहा हूँ
स्नेह परिवार
SD-248 शास्त्री नगर
गाजियाबाद
मोबाइल नम्बर
9311151393, 9911506013, 9717200055

इचुक दम्पति निस्कोंच संपर्क कर सकते हैं
यह आशियाना है जिन्दगी जैसा इसके विजिटिंग कार्ड पर लिखा है
यह माँ इस स्नेह संस्था की सचिव भी है

लेबल

अभी तो एक प्रश्न चिन्ह ही छोड़ा है ? (1) आत्मा अंश जीव अविनाशी (1) इन्ही त्योहारों के सामान सब मिल जुल कर रहें (1) इश्वर से इस वर्ष की प्रार्थना (1) इसके उज्जवल भविष्य की कामना करता हूँ | (1) उस अविनाशी ईश्वर का स्वरुप है | (1) एक आशियाना जिन्दगी का (1) कब बदलोगे अपनी सोच समाज के लोगों ? (1) कहाँ गया विश्व बंधुत्व और सदभावना? (1) कहीं इस कन्या का विवाहित जीवन अंधकार मय ना हो | (1) किसी का अन्तकरण भी बदला जा सकता है (1) किसी की बात सुन कर उसको भावनात्मक सुख दिया जा सकता है | (1) कैसे होगा इस समस्या का समाधान? (1) चाहता हूँ इसके बाद वोह स्वस्थ रहे और ऑपेरशन की अवयाक्ष्ता ना पड़े | (1) जय गुरु देव की (1) जीत लो किसी का भी हिर्दय स्नेह और अपनेपन (1) डाक्टर साहब का समर्पण (1) पड़ोसियों ने साथ दिया (1) बच्चो में किसी प्रकार का फोविया ना होने दें (1) बस अंत मे यही कहूँगा परहित सम सुख नहीं | (1) बुरा ना मानो होली है | (1) मानवता को समर्पित एक लेख (1) मित्रों प्रेम कोई वासना नहीं है (1) में तो यही कहता हूँ (1) यह एक उपासना है । (1) राधे (2) राधे | (2) वाह प्रभु तेरी विचत्र लीला (1) वोह ना जाने कहाँ गयी (1) शमादान भी एक प्रकार का दान है | (1) सब का नववर्ष सब प्रकार की खुशियाँ देने वाला हो | (1) समांहुयिक प्रार्थना मैं बहुत बल है | (1)