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गुरुवार, दिसंबर 17

विश्व बन्धुत्वा क्यों समाप्त होती जा रही है?

बहुत बार कुछ ब्लोग्गरों की टिप्पणियों में पड़ा है,ब्लोग्गरों में गुटबंदी हो गयी है, यह पड़ कर मेरे मस्तिष्क में यह विचार आया,आज क्यों विश्व बन्धुत्वा समाप्त होती जा रही   है ?  हमारा देश तो वसुधेव कुटुम्बकम के लिए प्रसिद्ध था और यह क्या होता जा रहा है ? हमारे यहाँ के सदभाव, सहयोग की भावना कहाँ जा रही है ? मुझे तो ज्ञात नहीं कि ब्लोग्गरों में गुटबंदी हो गयी है, में तो यथा संभव सब के ब्लॉग पड़ना चाहता हूँ, और टिप्पणियाँ भी देना चाहता हूँ, हाँ यह तो सच है, में ब्लोगों को अपनी रुचि के अनुसार पड़ता हूँ, और नये ब्लोग्गोरों को पड़ कर और उनके लेखों पर टिप्पणियाँ दे कर उनका उत्साह बढाना चाहता हूँ,परन्तु समय अभाव के कारण पड़ नहीं पाता हूँ |
  बहुत बार असल जीवन में देखता हूँ, कोई किसी दूसरे से बात करता है,या इ मेल भेजे परन्तु दूसरी ओर से अकारण उत्तर ही  नहीं मिलता,और पहले व्यक्ति को समझ ही नहीं आता एसा क्यों हो रहा है ? एक दम से कन्नी काटने से अच्छा है, आपस में मिल कर सदभाव से बात करो, और अक्सर देखा जाता है, अगर बात होती भी है तो आपस में विवाद एक दूसरे पर छिटाकशी और क्रोध स्थान ले लेता है, इस हिसाब से तो बच्चे अच्छे आज लड़े, घमासान लड़ाई भी हो जाती है, और उसके बाद एक दो दिन के बाद सब कुछ भूल कर मित्रता स्थान ले लेती है |
   लोगों के जीवन में  यह भी होता है, अगर दो लोंगो में अगर झगडा हो भी जाये और उन दोनों में किसी का दोष हो और दोषी व्यक्ति अपना व्यव्हार परिवर्तित भी कर ले और वोह क्षमा भी मांग ले, परन्तु दूसरा उसको दिल से क्षमा नहीं करता |
  यह तो थी दो लोगों के विषय में बात,परन्तु बहुत बार यह भी देखने में आता है, बहुत बार छोटी,छोटी बातों पर दो समूहों में झगडा तो होता ही है, और दोनों समूह में,लाठियां,और अनेकों प्रकार के अस्त्र,शस्त्रों से प्रहार प्रारंभ हो जाता है, और दोनों समूहों में परस्पर दुश्मनी बड जाती है, क्यों होता है ऐसा ? और कुछ शरारती तत्व इसको और हवा देने लगतें है, क्या यह शिक्षा के अभाव के कारण है ? या यह नागरिक सभ्यता के अभाव के कारण है ? यह समूह क्यों नहीं समझते तीसरा तत्व इसका लाभ उठा रहा है ?
      और पहले यह भी देखने में आया है, लोग अपने,अपने प्रान्त बनाने के लिए अकारण ही लड़ रहे थे, और आज भी वोह  संघर्ष आज भी चल रहा है, जैसे है उसको यथावत क्यों नहीं रहने दिया जाता है,इस प्रकर के संघर्ष का क्या लाभ ? इस प्रकार संघर्ष का क्यों केवल धरा के छोटे से भाग के लिए ?
        अब आता हूँ, विश्व में फेले हुए आतंकवाद पर, पाकिस्तान में खून खराबा, हिंदुस्तान में मुंबई पर ताज होटल पर और नरीमन पॉइंट पर आतंकी हमला, मुझे याद आता है,वोह बीता हुआ समय जब हम लोग हवाई अड्डे पर जाते थे किसी को लेने के लिए और छोड़ने के लिए तो,हवाई जहाज के समीप तक पहुँच जाते थे, परन्तु अब सुरक्षा कारणों से वीसिटर दीर्घा में बैठना पड़ता है, विमान अपहरण का नाम ही सुनने में आता था, और जब विदेश से आतें हैं,तो सुरक्षा कारणों से हवाई जहाज से उतरने के बाद  में बस से आना पड़ता है |
  कहाँ गया विश्व बंधुत्व और सदभावना?

3 टिप्‍पणियां:

अजय कुमार झा ने कहा…

जानते हैं बहुत पहले किसी के मुंह से एक बात सुनी थी ....लोगों ने कम खाना और गम खाना दोनों छोड दिया है ...और आज दुनिया की आधी से ज्यादा समस्या इसी कारण से है ....सोचता हूं उसने सच कहा था ...॥

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

अच्छी पोस्ट लिखी है..विचारणीय...

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

बढिया है.

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अभी तो एक प्रश्न चिन्ह ही छोड़ा है ? (1) आत्मा अंश जीव अविनाशी (1) इन्ही त्योहारों के सामान सब मिल जुल कर रहें (1) इश्वर से इस वर्ष की प्रार्थना (1) इसके उज्जवल भविष्य की कामना करता हूँ | (1) उस अविनाशी ईश्वर का स्वरुप है | (1) एक आशियाना जिन्दगी का (1) कब बदलोगे अपनी सोच समाज के लोगों ? (1) कहाँ गया विश्व बंधुत्व और सदभावना? (1) कहीं इस कन्या का विवाहित जीवन अंधकार मय ना हो | (1) किसी का अन्तकरण भी बदला जा सकता है (1) किसी की बात सुन कर उसको भावनात्मक सुख दिया जा सकता है | (1) कैसे होगा इस समस्या का समाधान? (1) चाहता हूँ इसके बाद वोह स्वस्थ रहे और ऑपेरशन की अवयाक्ष्ता ना पड़े | (1) जय गुरु देव की (1) जीत लो किसी का भी हिर्दय स्नेह और अपनेपन (1) डाक्टर साहब का समर्पण (1) पड़ोसियों ने साथ दिया (1) बच्चो में किसी प्रकार का फोविया ना होने दें (1) बस अंत मे यही कहूँगा परहित सम सुख नहीं | (1) बुरा ना मानो होली है | (1) मानवता को समर्पित एक लेख (1) मित्रों प्रेम कोई वासना नहीं है (1) में तो यही कहता हूँ (1) यह एक उपासना है । (1) राधे (2) राधे | (2) वाह प्रभु तेरी विचत्र लीला (1) वोह ना जाने कहाँ गयी (1) शमादान भी एक प्रकार का दान है | (1) सब का नववर्ष सब प्रकार की खुशियाँ देने वाला हो | (1) समांहुयिक प्रार्थना मैं बहुत बल है | (1)