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सोमवार, जून 14

किसी की बात सुन कर उसको भावनात्मक सुख दिया जा सकता है |

सुख प्राय: तीन प्रकार के होतें है, शारीरिक,मानसिक और आत्मिक और भावनातमक, भावनात्मक सुख  ही आत्मिक सुख है, प्राय: लोग किसी के शारीरिक कष्ट में व्यक्ति विशेष का साथ देते हैं,और उसकी सहायता करते हैं, और इस प्रकार से उस व्यक्ति विशेष को शारीरिक सुख अधिक, और उससे कम मानसिक सुख मिलता है, और उसी व्यक्ति के लिए जैसे आज कल प्रचलन है, अगर कोई बीमार है,उसके लिए फूलों का गुलदस्ता या फल इत्यादी लेकर जाते हैं, तो उसको मानसिक सुख के साथ आत्मिक सुख भी मिलता है,यही है भावनातमक सुख | अब अगर किसी में कुछ देने की सामर्थ नहीं हैं,और वोह उस व्यक्ति विशेष के पास केवल उस व्यक्ति विशेष के पास हाल चाल पूछने ही चला जाता है,तो उसने भी तो असमर्थ होते हुए भी तो भावनात्मक सुख ही तो दिया |
मनुष्य की कोई भी,आयु,लिंग,व्यवसाय या परिवेश हो सामाजिक प्राणी होने के कारण उसको आत्मिक या भावनात्मक सुख की आपेक्षा तो होती ही है |
मनोवेग्यानिक या मनोचिक्त्सक किसी अवसाद बाले या मानसिक संतुलन खो देने वाले की मनोयोग से वोह बातें सुनते हैं,जो किसी और के लिए निरर्थक होंती हैं, जिन बातों के बारे में कोई कह सकता है,क्या "बेकार की बात है", या "बोर मत करो" या "हमें नहीं सुननी बेकार की बातें", या "तुम्हारी बातें तार्किक नहीं हैं" इत्यादि, जब इंसान वाल्यावस्था में होता है, वोह "अपने माँ बाप से जिज्ञासा वश बहुत प्रकार के प्रश्न पूछता है,और उसकी जिज्ञासा को उसके माँ बाप उसको उत्तर दे कर उसकी जिज्ञासा को शांत करते हैं, और उसके बाद जब उसका समपर्क बहारी दुनिया से होता है,तो उसके गुरु जन उसके मित्र उसके प्रश्नों के उत्तर दे कर उसकी जिज्ञासा को शांत करते हैं, और वोह कुछ अपने अनुभवों से भी सीखता है, अगर उसको उचित उत्तर मिल जाता है,तो उसको भावनात्मक तृप्ति हो जाती है, और इसके विपरीत उसकी बातों पर व्यंग किया जाता है,या उसको तृसकृत किया जाता है,या उससे किनारा किया जाता है,तो उसको भावनात्मक सुख नहीं मिलता  है,और वोह जाता है,मनोचिक्त्सक या मनोवेग्यानिक की शरण में, चाहयें उसके परिवार वाले उसके शुभ चिन्तक या वोह स्वयं जाये, उसके चेतन मस्तिष्क पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है,जो उसके अवचेतन में चला जाता है, इसका निदान चाहें   मनोचिक्त्सक उसकी रोग जान कर औषधियों से चिकत्सा करे या मनोवेग्यानिक  वेहवियर थरेपी से,बात करके मंवोज्ञानिक या मनोचिक्त्सक दोनों ही उसको बात करके उसकी बात को समझ कर उसको भावनात्मक सुख और भावनात्मक सुरक्षा ही तो  देतें हैं, और बात को सुनना भी एक कला है, किसी की बात पूरी होने से पहले बीच में ही टोकना तो भावनात्मक कष्ट देना ही तो है,मन्वेज्ञानिक या मनोचिक्त्सक किसी की बात पूरी होने से पहले नहीं टोकतें हैं,मनोयोग से बात पूरी सुनने के बाद ही प्रश्न पूछते हैं, और सुनने की कला में यह भी आता है,जो व्यक्ति जिस बात को जिस प्रकार कहना चाहता है,या बताना चाहता है,बिलकुल उसी प्रकार मनोवेग्यानिक या मनोचिक्त्सक समझते हैं |
किसी व्यक्ति विशेष की बात या उसके व्यवहार पर पर अगर व्यंग किया जाता है,वोह उस व्यक्ति को भावनात्मक कष्ट ही तो पहुँचता  है, किसी व्यवस्था पर या किसी के सामाजिक दृष्टि से अनुचित  कृत्य पर अगर व्यंग किया जाये तो तो उचित है, पर व्यक्ति पर अनुचित व्यंग करना तो उसको भावनात्मक कष्ट ही तो  पहुंचाएगा |
बहुत बार किसी बुडे व्यक्ति को घर की छत देखते हुए या आसमान देखते हुए देखा जा सकता है,कारण यही है उनका समय तो व्यतीत हो गया है,और उनके उस समय की बात सुनने के लिए बदले हुए समय में बात करने को नहीं मिलता,अगर कोई उनकी बात सुने तो उस बुडे व्यक्ति को भावनात्मक सुख मिलता है, यह बात अलग है अगर उस बुडे व्यक्ति को उसी की आयु के समीप के लोग मिल जाएँ तो उसको भावनात्मक सुख मिलेगा,क्योंकि उनकी रुचि और बातें कमोवेश एक सी ही होंगी |
आज कल के समय के अनुसार सयुंक्त परिवार टूटते जा रहे हैं, परन्तु सयुंक्त परिवार की यही तो विशेषता थी की छोटे, बड़े सब मिल जुल के रहते थे,और एक दूसरे को समझते थे,भावनात्मक सुख एक दूसरे को मिल जाता था,आज कल के एकाकी जीवन की तरह नहीं था |
अगर आमने सामने बात हो रही है,तो सुनने वाले और सुनाने वाले के हाव भाव एक दूसरे पर प्रभाव डालते ही हैं, अगर सुनने वाले के हाव भाव ऐसे हैं,जिससे सुनाने वाले को ऐसा लगे कि सुनने वाला उसकी बातों को समझने का प्रयत्न कर रहा है,तो सुनने वाले को भावनात्मक सुख मिलता है,नहीं तो विपरीत प्रभाव पड़ता है |
जो कलाकार होतें है,बेहद संवेंदन शील होते हैं,चाहें चित्रकार हों,कवी हों,किसी के पास कैसी भी कला हो,वोह अपने भावों को कला में प्रदर्शित करतें हैं,और उनको समझने वाला उस कला को उसी प्रकार से समझे तो यही कलाकार का पुरुस्कार होता है,जो उनको आत्मसंतुष्टि दे करके उनको भावनात्मक सुख देता है |
किसी की बात सुन कर उसको भावनात्मक सुख दिया जा सकता है |

3 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

नमस्ते,

आपका बलोग पढकर अच्चा लगा । आपके चिट्ठों को इंडलि में शामिल करने से अन्य कयी चिट्ठाकारों के सम्पर्क में आने की सम्भावना ज़्यादा हैं । एक बार इंडलि देखने से आपको भी यकीन हो जायेगा ।

Udan Tashtari ने कहा…

आभार सदविचारों का.

Dev ने कहा…

Bahut Sunder Article....BAhut Prabavi Rachana aur aisi hi rachanoo ki jarurat hai aaj ke maujota samay me...Regards

Lines Tell the Story of Life "Love Marriage Line in Palm"

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अभी तो एक प्रश्न चिन्ह ही छोड़ा है ? (1) आत्मा अंश जीव अविनाशी (1) इन्ही त्योहारों के सामान सब मिल जुल कर रहें (1) इश्वर से इस वर्ष की प्रार्थना (1) इसके उज्जवल भविष्य की कामना करता हूँ | (1) उस अविनाशी ईश्वर का स्वरुप है | (1) एक आशियाना जिन्दगी का (1) कब बदलोगे अपनी सोच समाज के लोगों ? (1) कहाँ गया विश्व बंधुत्व और सदभावना? (1) कहीं इस कन्या का विवाहित जीवन अंधकार मय ना हो | (1) किसी का अन्तकरण भी बदला जा सकता है (1) किसी की बात सुन कर उसको भावनात्मक सुख दिया जा सकता है | (1) कैसे होगा इस समस्या का समाधान? (1) चाहता हूँ इसके बाद वोह स्वस्थ रहे और ऑपेरशन की अवयाक्ष्ता ना पड़े | (1) जय गुरु देव की (1) जीत लो किसी का भी हिर्दय स्नेह और अपनेपन (1) डाक्टर साहब का समर्पण (1) पड़ोसियों ने साथ दिया (1) बच्चो में किसी प्रकार का फोविया ना होने दें (1) बस अंत मे यही कहूँगा परहित सम सुख नहीं | (1) बुरा ना मानो होली है | (1) मानवता को समर्पित एक लेख (1) मित्रों प्रेम कोई वासना नहीं है (1) में तो यही कहता हूँ (1) यह एक उपासना है । (1) राधे (2) राधे | (2) वाह प्रभु तेरी विचत्र लीला (1) वोह ना जाने कहाँ गयी (1) शमादान भी एक प्रकार का दान है | (1) सब का नववर्ष सब प्रकार की खुशियाँ देने वाला हो | (1) समांहुयिक प्रार्थना मैं बहुत बल है | (1)